मुंबई, (ईएमएस)। बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी बड़ी गणेश मूर्तियों को समुद्र में विसर्जित करने की सशर्त अनुमति दिए जाने के बाद, राज्य सरकार ने इस संबंध में नए दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसके अनुसार, पीओपी मूर्ति निर्माताओं और विक्रेताओं के लिए मूर्ति के पीछे लाल रंग का गोल निशान लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। यह नियम मार्च 2026 तक सभी त्योहारों पर लागू होगा। पर्यावरण विभाग ने शुक्रवार दिनांक 1 अगस्त को ये दिशा निर्देश जारी किए। इसके अनुसार, पीओपी मूर्ति निर्माताओं और विक्रेताओं के लिए मूर्ति के पीछे तेल के रंग से स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला लाल रंग का गोल निशान लगाना अनिवार्य है। साथ ही, स्थानीय निकाय निर्माताओं और विक्रेताओं को इस संबंध में आवश्यक निर्देश दें और उसका कड़ाई से पालन करें। पीओपी मूर्तियाँ बनाने वाले मूर्ति निर्माताओं और विक्रेताओं के लिए मूर्ति बिक्री का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है। स्थानीय निकायों संस्थानों को मूर्ति निर्माताओं और विक्रेताओं को लाइसेंस जारी करते समय यह शर्त शामिल करनी चाहिए। * क्या हैं विसर्जन के संबंध में नए नियम ? - छह फीट से छोटी पीओपी मूर्तियों का विसर्जन केवल कृत्रिम झीलों में ही किया जाना चाहिए। छह फीट से बड़ी मूर्तियों के लिए, वैकल्पिक व्यवस्था न होने पर ही प्राकृतिक जल स्रोतों के उपयोग की अनुमति दी जाएगी, लेकिन अगले दिन अवशेषों की सफाई और संग्रहण की ज़िम्मेदारी स्थानीय निकायों की होगी। इस सामग्री का वैज्ञानिक तरीके से पुनर्चक्रण किया जाना चाहिए। - स्थानीय निकायों को कृत्रिम झीलें स्थापित करनी चाहिए, एक स्वच्छ संग्रहण प्रणाली बनानी चाहिए, विसर्जन के सात दिनों के भीतर पानी को चूने या फिटकरी से संसाधित करके प्रसंस्करण केंद्र (एसटीपी/ईटीपी) भेजना चाहिए। झील में जमा गाद को कम से कम 15 दिनों तक पर्यावरण के अनुकूल तरीके से संग्रहित करके पुनर्चक्रण के लिए भेजना चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (एनसीएल) या राजीव गांधी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आयोग के साथ समझौता किया जाना चाहिए, ऐसा पर्यावरण विभाग ने आदेश दिया है। - कृत्रिम झीलों, जन जागरूकता, दिशा-निर्देश बोर्ड और विसर्जन योजना के लिए प्रत्येक शहर में एक अलग तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। सार्वजनिक मंडलों में दर्ज करते समय, मूर्ति पीओपी की है या नहीं, इसका उल्लेख किया जाना चाहिए और विसर्जन की योजना बनाई जानी चाहिए। सलाह दी गई है कि बड़ी मूर्तियों का पुन: उपयोग किया जाए या छोटी प्रतिकृतियों का उपयोग किया जाए। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) को इन सुझावों के आधार पर एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करनी चाहिए और उसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना चाहिए। साथ ही, सोशल मीडिया, समाचार पत्रों और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाने का भी निर्देश दिया गया है। स्वेता/संतोष झा- ०२ अगस्त/२०२५/ईएमएस