भोपाल,(ईएमएस)। कचरे से ऊर्जा बनाने की दिशा में आईआईएसईआर भोपाल के वैज्ञानिकों ने बड़ी सफलता हासिल की है। यहां के वैज्ञानिकों ने केले के छिलके और प्लास्टिक कचरे को मिलाकर बायो-डीजल बनाने की तकनीक विकसित की है। इससे न सिर्फ सस्ता और पर्यावरण-अनुकूल ईंधन तैयार होगा, बल्कि यह शोध स्वच्छ भारत मिशन को भी नई गति देगा। जानकारी अनुसार यह शोधकार्य केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शंकर चाकमा के नेतृत्व में हुआ। टीम में शोधकर्ता बबलू अलावा और अमन कुमार भी शामिल थे। वैज्ञानिकों ने को-पायरोलीसिस तकनीक का उपयोग करते हुए 25:75 के अनुपात में केले के छिलके और प्लास्टिक कचरे को एक साथ गर्म किया, जिससे उन्हें पायरो-आयल नामक तरल ईंधन प्राप्त हुआ। इस ईंधन को डीजल में 20प्रतिशत तक मिलाकर वाहनों में प्रयोग किया जा सकता है। इसमें मौजूद हाइड्रोकार्बन जैसे ओलेफिन, पैराफिन, एरोमैटिक्स, एस्टर और अल्कोहल इसे उच्च गुणवत्ता वाला ईंधन बनाते हैं। इसकी ऊष्मा क्षमता लगभग 55 मेगाजूल प्रति किलोग्राम है, जो पारंपरिक डीजल से अधिक है। इस प्रक्रिया से 850 ग्राम तरल ईंधन यानी पायरो ऑईल के साथ ही 140 ग्राम गैस – जिसका उपयोग रसोई गैस के रूप में किया जा सकता है, 10 ग्राम चारकोल, जिसका प्रयोग पानी को साफ करने में हो सकता है। यह तकनीक कचरे को ऊर्जा में बदलने की दिशा में बड़ी सफलता है। खास बात यह है कि इससे दोहरी समस्या हल होती है—कचरे का निपटान और वैकल्पिक ईंधन की आपूर्ति। यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स ‘जर्नल ऑफ द एनर्जी इंस्टिट्यूट और ‘एनर्जी नेक्जा’ में प्रकाशित भी हुआ है। इस प्रकार आईआईएसईआर भोपाल की यह खोज पर्यावरण, ऊर्जा और स्वच्छता के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है। हिदायत/ईएमएस 02अगस्त25