ज़रा हटके
06-Aug-2025
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लंदन (ईएमएस)। हैल्थ विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों की नींद का सीधा संबंध उनकी मानसिक और शारीरिक वृद्धि से जुड़ा होता है। दरअसल, नींद की गुणवत्ता और समय दोनों बच्चों की बुद्धिमत्ता, सीखने की क्षमता और एकेडमिक प्रदर्शन पर असर डालते हैं। इन दिनों डॉक्टरों के पास कई पेरेंट्स इस शिकायत के साथ पहुंच रहे हैं कि उनके बच्चे देर रात तक नहीं सोते, दिन में सोते नहीं या फिर सुबह देर तक उठते हैं। डॉक्टर बताते हैं कि हर उम्र में बच्चों की नींद की जरूरत अलग होती है और उसका प्रभाव उनके व्यवहार, सीखने की क्षमता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर भी पड़ता है। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार नवजातों को 14 से 17 घंटे तक, 1-2 साल के बच्चों को 11 से 14 घंटे, 6-13 साल के बच्चों को 9 से 11 घंटे और 14-17 साल के किशोरों को 8 से 10 घंटे तक की नींद जरूरी होती है। अक्सर देखा गया है कि स्कूल जाने वाले बच्चों को पर्याप्त नींद नहीं मिल पाती क्योंकि माता-पिता उन्हें 8 घंटे से अधिक सोने पर आलसी समझते हैं। जबकि विशेषज्ञों की मानें तो यह सोच गलत है। पर्याप्त नींद न लेने वाले बच्चे दिनभर सुस्त, चिड़चिड़े और अनफोकस रहते हैं। ऐसे बच्चों को पढ़ाई में परेशानी होती है और उनकी एकेडमिक परफॉर्मेंस भी प्रभावित होती है। लंबे समय तक नींद की कमी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डाल सकती है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों की उम्र के अनुसार उन्हें भरपूर नींद लेने दी जाए। अगर आपका बच्चा 13 घंटे भी सो रहा है, और वह निर्धारित स्लीप रेंज के भीतर आता है, तो चिंता की कोई बात नहीं। भरपूर नींद लेने वाले बच्चे न केवल बेहतर तरीके से सीखते हैं, बल्कि खेल और दूसरी गतिविधियों में भी शानदार प्रदर्शन करते हैं। नींद उनकी ग्रोथ का अहम हिस्सा है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। अक्सर यह सवाल उठता है कि कम सोने वाले बच्चे ज्यादा होशियार होते हैं या फिर ज्यादा सोने वाले? आम धारणा है कि जो बच्चे कम सोते हैं, वे अधिक सक्रिय होते हैं और इसलिए उन्हें अधिक बुद्धिमान मान लिया जाता है, जबकि ज्यादा सोने वाले बच्चों को अक्सर आलसी समझा जाता है। सुदामा/ईएमएस 06 अगस्त 2025