07-Aug-2025
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वॉशिंगटन (ईएमएस)। अस्थमा आज गंभीर समस्या का रुप लेता जा रहा है। अस्थमा बच्चों में एक गंभीर और लगातार बढ़ती स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। अस्थमा बच्चों के फेफड़ों में सूजन पैदा करता है, और सांस लेने की प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है। आमतौर पर इनहेलर और दवाइयों से इलाज किया जाता है, लेकिन कई बार बच्चों की तबीयत अचानक बिगड़ जाती है जिसे ‘अस्थमा फ्लेयर-अप’ कहा जाता है। अब वैज्ञानिकों ने एक नए शोध में पाया है कि कुछ जैविक प्रक्रियाएं ऐसी सूजन को जन्म देती हैं, जो सामान्य इलाज से ठीक नहीं होती और बीमारी को और जटिल बना देती हैं। शिकागो स्थित एन एंड रॉबर्ट एच. लूरी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने हाल ही में किए गए अध्ययन में अस्थमा के पीछे मौजूद कारणों की गहराई से जांच की। उन्होंने पाया कि बच्चों में अस्थमा के अलग-अलग कारण हो सकते हैं और उनमें सूजन की कई जैविक प्रक्रियाएं सक्रिय रहती हैं। सबसे प्रमुख प्रक्रिया टाइप 2 इन्फ्लेमेशन है, जिसमें शरीर में इओसिनोफिल्स नामक सफेद रक्त कण बढ़ जाते हैं और फेफड़ों में सूजन पैदा करते हैं। लेकिन शोध में यह भी सामने आया कि कई बार इस सूजन को दबाने वाली दवाएं देने के बावजूद बच्चों को अस्थमा के अटैक आते रहते हैं। इससे पता चलता है कि टाइप 2 के अलावा भी अन्य सूजन के मार्ग अस्थमा को बढ़ा सकते हैं। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 176 बार अस्थमा से पीड़ित बच्चों के नाक से नमूने लिए और जांच की। इस दौरान तीन मुख्य सूजन की प्रक्रियाएं सामने आईं। पहली, एपिथेलियम इन्फ्लेमेशन पाथवे, जिसमें फेफड़ों की सतह पर सूजन देखी गई, खासकर उन बच्चों में जो मेपोलिजुमैब नामक दवा ले रहे थे। दूसरी, मैक्रोफेज-ड्राइवन सूजन, जो वायरस से जुड़ी सांस की बीमारियों में पाई गई। तीसरी प्रक्रिया म्यूकस हाइपरसेक्रेशन और सेलुलर स्ट्रेस रिस्पॉन्स थी, जिसमें फेफड़ों में बलगम अधिक बनने लगता है और कोशिकाओं पर दबाव बढ़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हर बच्चे में अस्थमा के अलग कारण हो सकते हैं और सभी को एक ही तरह के इलाज से राहत नहीं मिलती। सुदामा/ईएमएस 07 अगस्त 2025