अंगदान और प्रत्यारोपण हर वर्ष हजारों लोगों को जीवन का दूसरा अवसर प्रदान करता है। अमीर और गरीब के बीच भारी असमानता, मानव अंगों की मांग और देश में प्रौद्योगिकी की उपलब्धता जैसे कारणों से मानव अंगों का व्यापार जहां कुछ लोगों को धन प्रदान करता है वहीं अन्य लोगों को राहत पहुंचाता है। अंगों का व्यापार निश्चित रूप से निर्धनता से ग्रस्त लोगों के शोषण को बढ़ावा देता है क्योंकि वे तात्कालिक वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए धन के लालच में अंग बेचते हैं। मानव अंगों को एक वस्तु बना देना सामाजिक, नैतिक और शिष्टाचार संबंधी मूल्यों का ह्रास है और कोई भी सभ्य समाज अंगों की जरूरतें पूरी करने के लिए इस व्यापार को एक विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अंगों की बिक्री के बारे में एक बयान में स्पष्ट रूप से कहा है कि ऐसा करना मानवाधिकारों संबंधी सार्वभौम घोषणा और स्वयं के संविधान का उल्लंघन है: ‘‘मानव शरीर और इसके अंगों को व्यापारिक लेन-देन का विषय नहीं बनाया जा सकता। तदनुरूप, अंगों के लिए धन प्राप्त करने या अदा करने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।’’ हर वर्ष हजारों भारतीय अंग प्रत्यारोपण का इंतजार करते करते मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे लोगों की संख्या और दान किए गए अंगों की संख्या के बीच भारी अंतराल है। भारत किडनी प्रत्यारोपण के मामले में दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है, जहाँ 80% से ज़्यादा जीवित किडनी दान से होते हैं। हालाँकि हर साल 2,20,000 लोगों को प्रत्यारोपण की ज़रूरत होती है, लेकिन 250 केंद्रों पर केवल लगभग 7,500 किडनी प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं।हृदय प्रत्यारोपण के मामले में भी स्थिति भिन्न नहीं है। भारत में हर वर्ष करीब भारत में हर साल लगभग 50,000 लोगों को हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है।लेकिन,उपयुक्त दाता हृदय की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है, और केवल एक छोटा सा प्रतिशत लोगों को ही प्रत्यारोपण मिल पाता है। इसी तरह भारत में कार्निया की उपलब्धता और आवश्यकता के बीच एक बड़ा अंतर है। हर साल 1,00,000 कार्निया प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल 30,000 प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं। इसका मतलब है कि लगभग 70,000 लोग हर साल कार्निया प्रत्यारोपण के बिना रह जाते हैं। भारत में, कॉर्निया दान की कमी एक बड़ी समस्या है। हर साल लगभग 60,000 कॉर्निया एकत्रित होते हैं, लेकिन 28,000 से भी कम का प्रत्यारोपण हो पाता है। कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद, कॉर्निया की उपलब्धता और भी कम हो गई है। भारत में नेत्र बैंकों की संख्या भी अपर्याप्त है। आवश्यक मानकों के अनुरूप पर्याप्त नेत्र बैंक नहीं हैं। भारत में 12 लाख लोग कार्निया की अपारदर्शिता से पीड़ित हैं। इनमें से लगभग एक तिहाई लोगों को कार्निया प्रत्यारोपण की आवश्यकता है। यह समस्या 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में अंधेपन का दूसरा प्रमुख कारण है, और कम उम्र वालों में यह प्राथमिक कारण है। भारत में सालाना 1,00,000 कार्निया प्रत्यारोपण की आवश्यकता है। लेकिन, वर्तमान में, केवल 30% मांग ही पूरी हो पाती है। अंगों के काम करना बंद करने के मामलों में चिंताजनक वृद्धि हो रही है, जिससे जन स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव बढ़ रहा है। हर साल हज़ारों लोग अंग प्रत्यारोपण का इंतज़ार करते हैं। इस तात्कालिक आवश्यकता के बावजूद, प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षारत रोगियों और उपलब्ध दाताओं की संख्या के बीच एक बड़ा अंतर बना हुआ है। भारत में अंगदान की दर जनसंख्या के अनुपात में 1 प्रतिशत से भी कम है। वर्तमान में 63,000 से ज़्यादा लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट और लगभग 22,000 लोगों को लिवर ट्रांसप्लांट की ज़रूरत है। इसके बावजूद, जागरूकता बढ़ रही है, खासकर प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में इस मुद्दे पर बात करने के बाद। प्रधानमंत्री ने दुर्घटना पीड़ितों और हृदयाघात से पीड़ित लोगों के लिए समय पर अंगदान की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया। इसके जवाब में, सरकार जनभागीदारी बढ़ाकर, हर गाँव और घर में अंगदान को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है।केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और रसायन एवं उर्वरक मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के अनुसार , माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्व में, सरकार अंगदान और प्रत्यारोपण को निरंतर सुव्यवस्थित कर रही है ताकि अधिक से अधिक नागरिकों को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि शहरों के बीच अंगों की समय पर और सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने और सफल अंग प्रत्यारोपण सुनिश्चित करने के लिए हम बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षित जनशक्ति की उपलब्धता में सुधार के लिए प्रतिबद्ध हैं। 2023 में आधार आधारित नोट्टो ऑनलाइन प्रतिज्ञा वेबसाइट के शुभारंभ के बाद से, 3.30 लाख से अधिक नागरिकों ने अपने अंगदान का संकल्प लिया है, जो जनभागीदारी का प्रमाण है। प्रतिज्ञा पंजीकरण में यह वृद्धि इस साझा लक्ष्य के प्रति नागरिकों में बढ़ती जागरूकता और समर्पण को दर्शाती है। प्रत्यारोपण पेशेवरों के अटूट समर्पण के कारण, भारत ने 2024 में 18,900 से अधिक अंग प्रत्यारोपण करने का एक उल्लेखनीय मील का पत्थर हासिल किया, जो किसी एक वर्ष में दर्ज किया गया अब तक का सबसे अधिक रिकॉर्ड है। यह 2013 में 5,000 से भी कम प्रत्यारोपणों की तुलना में एक महत्वपूर्ण छलांग है। अंग प्रत्यारोपण की कुल संख्या के मामले में भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है, केवल संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन से पीछे। दधिचि देहदान समिति परिवार बिहार के संस्थापक महासचिव विमल जैन को इस नेक मुहिम को सफल बनाने के लिए पद्म सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। पद्मश्री डॉ. विमल जैन के अनुसार देश में अंगदान को लेकर जागरूकता अब पहले से ज्यादा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी रेडियो द्वारा पूरे भारतवासियों को अंगदान करने हेतु जोर दिया है। जब उन्होंने इस मुहिम की शुरूआत की थी तो तो बहुत कम लोग इसके बारे में जानते थे, परंतु अब बड़े पैमाने पर लोगों के बीच यह मिथ्य खत्म हुआ और लोग जागरूक होकर आगे आ रहे है कि मृत्यु पश्चात अंगदान करके किसी और के जीवन को बचाया व उनके जीवन में रौशनी लाई जा सकती है। लोग अंगदान के लिए आगे आये और अपने आसपास के लोगों को भी इसके बारे में जागरूक करें। दधिचि देहदान समिति परिवार बिहार के क्षेत्रीय संगठन मंत्री निर्मल जैन के अनुसार अंगों की आवश्यकता और उपलब्ध दाताओं के बीच अंतर के सवाल पर कहते हैं कि अधिक जागरूकता, अधिक जन संवाद, परिवारों की समय पर सहमति और रोगग्रस्त अंगदान को समर्थन देने के लिए एक मज़बूत प्रणाली की आवश्यकता है। प्रत्येक अंगदाता एक मूक नायक है, जिसका निस्वार्थ कार्य दुःख को आशा में और क्षति को जीवन में बदल देता है। एक व्यक्ति हृदय, फेफड़े, यकृत, गुर्दे, अग्न्याशय और आंतें दान करके 8 लोगों की जान बचा सकता है। इसके अतिरिक्त, ऊतक दान के माध्यम से अनगिनत जीवन बदल सकते हैं। उन्होने अंगदान को एक जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया, एक ऐसा जन आंदोलन जो वसुधैव कुटुम्बकम , यानी पूरी दुनिया एक परिवार है, के सार को प्रतिबिंबित करे ।जन जागरण के कारण समाज इसके महत्व को समझने लगा है। इसी का नतीजा है कि बिहार में 1700 बच्चे, जो जन्मजात अंधत्व से पीड़ित थे, उन्हें नई रोशनी मिली है। दधीचि देहदान समिति के लगातार प्रयास के कारण बिहार के 9 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आई बैंक की स्थापना हो सकी है। इसके अलावा बिहार के मेडिकल कॉलेज के छात्रों को 24 शव उपलब्ध कराए है,ताकि वे चिकित्सा शोध कर सकें। उनके मुताबिक कैंसर पीड़ित छोड़ कर कोई भी व्यक्ति अंगदान कर सकता है। सरकार की ओर से अंग प्रत्यारोपण को और अधिक सुलभ बनाने के लिए, राष्ट्रीय आरोग्य निधि के अंतर्गत गरीब मरीजों को किडनी, लिवर, हृदय और फेफड़ों के प्रत्यारोपण के लिए ₹15 लाख तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। गरीब मरीजों को प्रत्यारोपण के बाद चिकित्सा व्यय को पूरा करने के लिए प्रति माह ₹10,000 तक की सहायता प्रदान की जाती है। किडनी प्रत्यारोपण पैकेज को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में भी शामिल किया गया है। अधिकतर भारतीय आमतौर पर यह मानते हैं कि अंग छेदन धर्म और प्रकृति के खिलाफ है। कुछ लोगों को यह संदेह रहता है कि अंगों को प्राप्त करने के लिए अस्पताल का स्टाफ उनकी जान बचाने के लिए कठिन परिश्रम नहीं करेगा। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अंगों के लालच में उन्हें वास्तविक रूप में मरने से पहले मृत घोषित किया जा सकता है। भारत में गुर्दा प्रत्यारोपण की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी और उसके बाद से एशियाई उप महाद्वीप में भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख राष्ट्र है। पिछले छह दशकों में भारत में अंग प्रत्यारोपण में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। 1994 में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम पारित होने के बाद से, अंगदान और प्रत्यारोपण की संख्या में वृद्धि हुई है। हालांकि, अंग प्रत्यारोपण की मांग और उपलब्धता के बीच अभी भी एक महत्वपूर्ण अंतर मौजूद है, जिससे अंग प्रत्यारोपण के लिए इंतजार कर रहे मरीजों की संख्या बढ़ रही है। टीएचओ अधिनियम के बावजूद न तो अंगों का व्यापार रुका। भारत सरकार ने 2011 में ‘मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम’ पारित किया, जिसमें मानव अंग दान के लिए प्रक्रिया को आसान बनाने के प्रावधान किए गए। इन प्रावधानों में रिट्रिवल सेंटर और मृतक दान कर्ताओं से अंगों के रिट्रिवल के लिए उनका पंजीकरण, स्वैप डोनेशन और गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती संभावित दानकर्ता के निकट संबंधियों से सहमति प्राप्त करने के लिए प्रत्यारोपण समन्वयकर्ता (यदि उपलब्ध हो) की सलाह से अस्पताल के पंजीकृत मेडिकल प्रेक्टिशनर द्वारा अनिवार्य जांच करना और यदि उनकी सहमति हो तो अंगों के रिट्रिवल के लिए रिट्रिवल सेंटर को सूचित करना शामिल है। भारत में मृतक अंगदान की संभावनाएं व्यापक हैं क्योंकि देश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या बहुत अधिक है। इस पूल का इस्तेमाल अभी किया जाना है। किसी भी समय प्रत्येक बड़े शहर में विभिन्न गहन चिकित्सा यूनिटों में 8 से 10 व्यक्तियों की मृत्यु ब्रेन डेथ के रूप में होती है। सभी अस्पतालों में होने वाली कुल मौतों में से करीब 4-6 प्रतिशत मस्तिष्क मृत्यु के रूप में सामने आती हैं। भारत में सड़क दुर्घटनाओं में करीब 1.4 लाख मृत्यु हर वर्ष होती हैं। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार इनमें से करीब 65 प्रतिशत मौतें सिर में गंभीर चोट लगने से होती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि करीब 90 हजार रोगियों की मृत्यु मस्तिष्क आघात से होती है। ऐसा नहीं है कि लोग अंगदान नहीं करना चाहते। लेकिन अस्पतालों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे ब्रेन डेथ की पहचान करके उन्हें प्रमाणित किया जा सके। इसके अलावा मस्तिष्क मृत्यु वाले व्यक्ति के संबंधियों को कोई यह अधिकार प्रदान नहीं करता कि वे उसके अंग दान कर सकें। बच्चे से लेकर बड़े व्यक्ति तक कोई भी अंग दान कर सकता है। मस्तिष्क मृत्यु से अंग दान, जिसे शव संबंधी अंग दान भी कहा जाता है, के मामले भारत में अपेक्षाकृत बहुत कम हैं। स्पेन में प्रति दस लाख आबादी पर 35 व्यक्ति अंग दान करते हैं, ब्रिटेन में ऐसे व्यक्तियों की संख्या 27, अमरीका में 26 और आस्ट्रेलिया में 11 है जबकि भारत में प्रति दस लाख आबादी पर मात्र 0.16 व्यक्ति अंग दान करते हैं। अंग दान की जानकारी के बारे में सबसे पहला कदम डोनर कार्ड पर हस्ताक्षर करना है। डोनर कार्ड कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है लेकिन किसी व्यक्ति की दान करने की इच्छा की अभिव्यक्ति है। डोनर कार्ड पर हस्ताक्षर करके अंग दान की इच्छा प्रकट करने के बाद यह भी महत्वपूर्ण है कि अपने निर्णय की जानकारी परिवार या मित्रों को अवश्य दी जाए। ऐसा करना इसलिए जरूरी है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों की सहमति अंग दान के लिए ली जाती है। परिवार की स्वीकृति मिलने के बाद ही अंग दान के निर्णय को अंतिम समझा जाता है। महत्वपूर्ण अंग जैसे हृदय, लीवर (यकृत), लंग्स (फेफड़े), किडनी (गुर्दे), पेनक्रियाज़ (पाचन ग्रंथि), हार्ट वाल्व्स, स्किन, हड्डियां, लिगामेंट्स (अस्थिबंध), टेंडन्स (शिराएं), वेन्स (पसलियां) आदि का दान मस्तिष्क मृत्यु के मामले में किया जा सकता है। भारत में अंगदान की दर अभी भी प्रति दस लाख जनसंख्या पर एक से भी कम है।भारत में प्रत्यारोपणों की संख्या 2013 में 4990 से बढ़कर 2023 में 18378 हो गई है और जनवरी से दिसंबर 2024 तक नोट्टो को 18911 प्रत्यारोपणों की सूचना दी गई है, इसके बाद भी अंगदान की दर प्रति मिलियन जनसंख्या पर 1 से भी कम है। राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट 2024-25 में कहा गया है, भारत कुल अंग प्रत्यारोपण के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है और कुल जीवित दाता अंग प्रत्यारोपण के मामले में पहले स्थान पर है। निर्मल जैन कहते हैं कि दान के बारे में जागरूकता बढ़ाना, विशेष रूप से सरकारी संस्थानों में प्रत्यारोपण के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ाना और जनशक्ति और अनुसंधान के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना जरूरी है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में मृत प्रत्यारोपणों की स्थिति 2013 में 837 मृत प्रत्यारोपणों से, भारत में पिछले कुछ वर्षों में मृतक प्रत्यारोपणों की संख्या में इजाफा देखा गया है।2023 में 2935 मृत प्रत्यारोपणों के साथ, 2024 में 16 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 3403 मृत प्रत्यारोपण दर्ज किए गए। मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम , 1994 मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 (2011 में संशोधित) के प्रावधानों के अनुसार, भारत में अंगदान और प्रत्यारोपण एक सरकारी विनियमित गतिविधि है. इस कानून का उद्देश्य चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए मानव अंगों के निष्कासन, भंडारण और प्रत्यारोपण को विनियमित करना है, साथ ही किसी भी व्यावसायिक लेनदेन पर सख्त प्रतिबंध लगाना है। मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम वर्ष 1994 में अधिनियमित किया गया था, जो राज्यों द्वारा अपनाए जाने के बाद, जम्मू-कश्मीर और तत्कालीन आंध्र प्रदेश जैसे अपवादों को छोड़कर, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू हो गया, जिनके अपने विशिष्ट कानून थे। इस अधिनियम में 2011 में संशोधन किया गया और मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम 2011, 10 जनवरी, 2014 को गोवा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू हुआ। अन्य राज्य जिन्होंने अब तक संशोधन अधिनियम को अपनाया है, वे हैं राजस्थान, सिक्किम, झारखंड, केरल, ओडिशा, पंजाब, महाराष्ट्र, असम, हरियाणा, मणिपुर, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु।संशोधित अधिनियम का नाम अब मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम , 1994 रखा गया है।पूर्ववर्ती जम्मू एवं कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद, 1994 अब जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों में भी लागू है। ईएमएस/09/08/2025