यह सच है कि हमारा प्यारा हिंदुस्तान आज समुद्र के गर्त में छुपे रहस्यों को जानने और चांद में क्या चल रहा है इसकी जानकारी वहीं पहुंचकर हासिल करने में सक्षम हो चुका है। यह हमारे वैज्ञानिक जगत की सफलता का चरम पक्ष है। इस गौरवमयी उपलब्धियों से हमें और आगे जाना है, क्योंकि आसमान नापना अभी भी दुनियां के कथिततौर पर चौधरी बनने वाले देशों के वश की भी बात नहीं। हॉं, भारत इसे पूरा करके जरुर दिखा सकता है। इसकी सीधी और सच्ची वजह यह है कि हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की है। जो हमें सिखाती है कि पृथ्वी को परिवार मानकर विश्व का कल्याण करना सबसे महत्वपूर्ण है। पर यह सब तभी संभव होगा जबकि हम वैश्विक चुनौतियों से पहले अपने देश में मौजूद अजगर के समान बढ़ रहीं समस्याओं से निजाद पा लें। वर्तमान में देश कई जटिल समस्याओं और चुनौतियों से जूझ रहा है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती देश में मौजूद आर्थिक असमानता है। देश का संपन्न वर्ग लगातार और धनवान होता चला जा रहा है, जबकि अधिकांश लोग गरीबी रेखा के ईद-गिर्द ही बने हुए किसी तरह से अपना जीवनयापन करते नजर आ रहे हैं। अमीर और गरीब के बीच की यह चौड़ी खाई यदि और बढ़ती है तो देश की सुख-शांति को भी यह खा सकती है। इसलिए इसका समाधान समय रहते करना ही होगा। इससे हटकर पढ़े-लिखे वर्ग में बेरोजगारी का जो प्रतिशत बढ़ रहा है वह भी गंभीर बात है। वहीं देश का प्रत्येक तबका बढ़ती महंगाई से परेशान नजर आ रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य की कमजोर व्यवस्था अपने आप में समस्या बनी हुई है। भ्रष्टाचार चरम पर है, रिश्वतखोरी बदस्तूर जारी है, अपराध का रेशो लगातार बढ़ रहा, जिसे आंकड़ों की बाजीगरी से घटाने की कोशिश भी की जा रही है। आतंकियों की घुसपैठ और आमजन के साथ ही हमारे जवानों का शहीद होना कोई छोटी-मोटी समस्या का हिस्सा नहीं है। इन सब में जलवायु संकट, कृषि संकट और लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति देशवासियों का घटता भरोसा किसी ज्वलंत समस्या से कम नहीं है। इन सब के लिए किसे दोषी ठहराया जाए, क्योंकि मुल्क के असली मालिकों ने यदि सत्ता चलाने के लिए स्थिर सरकारें दीं हैं तो सिर्फ इसलिए कि देश का कल्याण हो, न कि मनमर्जी से उन्हीं पर शासन करने के लिए बहाने-बहाने से कोड़े बरसाए जाएं। मौजूदा सरकार जिस विकास की बात कर रही है वह चंद लोगों के लिए है, जबकि देश की आमजनता उससे अछूती ही है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी बन जाती है कि वो महज चुनावी जीत तक सीमित न रहें, बल्कि इन समस्याओं के समाधान की दिशा में ठोस नीतियां और कार्ययोजनाएं बनाएं। मगर अफसोस कि भारतीय राजनीति की दिखावटी एकजुटता भी असली मुद्दों से दूर नजर आ रही है। इनके पास ज्यादा सुर्खियां बटोरने वाले मुद्दे जो हैं, जिनके दम पर ये अपना हित साधने में लगे रहते हैं। थोड़ी देर के लिए इन सब से हटकर विचार करें कि अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का एलान क्या किया, भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में तनाव आ गया। इस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने जो कहा वह वाकई विचारणीय है। दरअसल उनका कहना है कि आज दुनिया में जो देश दादागिरी कर रहे हैं, वे ऐसा इसलिए कर पा रहे क्योंकि वे आर्थिक तौर पर मजबूत हैं और उनके पास बेहतर टेक्नोलॉजी है। ऐसे में उन्होंने निर्यात बढ़ाने और आयात घटाने का सजेशन दे दिया है। इस पर तो वो खुद भी अमल कर सकते हैं, क्योंकि वर्तमान सरकार का वो हिस्सा हैं। सरकार में रहते हुए नीतियां बनाना और उन्हें अमल में लाना आसान होता है, जबकि विपक्ष में रहते हुए सरकार के काम-काज की खामियां गिनाना आसान होता है, लेकिन उन्हें दूर करने के लिए रास्ता सुझाते हुए उसे मनवा लेना बहुत कठिन काम होता है। यह सच है कि हम आत्मनिर्भर बनकर दुनिया में अग्रणी भूमिका निभाते हुए विश्वगुरु का सच्चा तमगा हासिल कर सकते हैं, पर यह तभी संभव होगा जबकि राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत होगी। इसी बीच खबर है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 11 अगस्त को इंडिया ब्लॉक के सांसदों को डिनर पार्टी देने जा रहे हैं। इससे पहले राहुल गांधी ने भी विपक्षी नेताओं को डिनर पर बुलाया था, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किए जाने के साथ ही वोट चोरी मॉडल के खिलाफ लड़ने की शपथ भी ली गई थी। यदि यह डिनर डिप्लोमेसी इतनी ही कारगर साबित हो रही है तो इसे वाकई आगे भी जारी रखा जाना चाहिए, वर्ना यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी देश में एक तबका ऐसा मौजूद है जिसे दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है। इस सिस्टम को सुधारने के साथ ही उसकी चिंता करने की भी आवश्यकता है। .../ 10 अगस्त /2025