लेख
18-Aug-2025
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- आत्म निर्भर भारत के सपने को साकार करता है, आरडब्लूएफ की ऐतिहासिक सफर देश ने विगत दिनों अपना 79 वें स्वतंत्रता दिवस मनाया है। इस के पावन पुनीत अवसर पर हमारे यशस्वी प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐतिहासिक लालकिले के प्राचीर से देश की जनता को सम्बोधित करते हुए स्वदेशी अपनानें की मार्मिक अपील की है। जो प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। आज हम इससे मिलती जुलती वाक्या से आप सभी को अवगत कराने वाले है। विश्व की सबसे बड़े लोकतंत्र की भारतीय रेल प्रणाली जो सबसे सस्ती व सुरक्षित मानी जाती है। बल्कि भारत के विकाश यात्रा में बहुमूल्य योग्यदान कर रही है। उसी रेलगाड़ी में दशकों से अपनी अहंम भुमिका निभाने वाली पहिया(व्हील)व धुरा(एक्सल) की निर्माता कम्पनी है। आत्म निर्भर भारत के सपने को साकार करता है । आर डब्लू एफ की ऐतिहासिक सफर, जिसकी पृष्टभुमि सन1970 के दशक के आरंभ है। जब रेलवे पहिये के लिए टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी तथा हिन्दुस्तान स्टील, दुर्गापुर पर निर्भर थी। टाटा का संयंत्र से रेलवे की आवश्यक ताओ की पूर्ति ना होने के कारण दुर्गापुर व्हील एंड एक्सल संयंत्र की योजना बनाई गई। हाँलाकि इन दोनों इकाइयों से रेलवे की आवश्यकताओं को पुर्ति नही होने के कारण भारतीय रेलवे को पहियों, धुरों काफी हद तक विदेशों से आयात करना पड़ रहा था, जिसकी लागत अधिक थी। वही वैश्विक बाजारों में आयें दिनों कीमतें लगातार बढ़ने के हमारा विदेशी मुद्रा का भंडार खाली हो रही थीं। पहियों के आयात का वित्त पोषण और विदेशों से आपूर्ति में देरी ने वैगन निर्माण और रोलिंग स्टॉक रखरखाव पर प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए तत्कालीन रेल मंत्री के.हनुमंतैया ने1972-73 के अपने रेल बजट (सालाना बजट से पूर्व रेल बजट रेल मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता था)भाषण में घोषणा की कि हमें कुछ शक्तिशाली देश द्वारा विदेशी सहायता बंद होने या बंद होने की धमकी मिल रही है। अतःभारत सरकार ने आत्म निर्भरता की नीति को प्रोत्साहन देगा। इस आत्म निर्भरता की नीति को रेलवे पहियों और धुरी और कर्षण गियर के निर्माण के लिए दो नई परियोजना ओं का प्रस्ताव रहते हुए कहा कि अभी तक हम पहियों और धुरी की हमारी आवश्यकताएं केवल स्वदेशी उत्पादन से आंशिक रूप से पूरी होती है। हम अपने आवश्यकता को विदेशों से 5.8 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की लागत से खरीद रहे हैं। पहियों और धुरी की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। इस नए प्रस्तावित संयंत्र एक और रेलवे उत्पादन इकाई होगी और प्रति वर्ष लगभग 20, 000 पहिए और 25, 000 ढीले पहिये का उत्पादन करेगी, जिससे रेलवे वस्तुतः आत्म निर्भर हो जाएगी। इसके लिए एच.एस.कपूर की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, जिसमें कास्ट व्हील, फोर्ज्ड एक्सल और असेंबल व्हीलसेट बनाने की क्षमता वाले व्हील और एक्सल प्लांट की आवश्यकता की पुष्टि की गई। इसके अलावा, स्क्रैप और कच्चे माल के परिवहन में आसानी, फोर्जिंग एक्सल के लिए ब्लूम की उपलब्धता, औजारों व उपकरणों की आवश्यक ताओं की आपूर्ति के लिए औद्योगिक क्षेत्रों की निकटता, ऑक्सीजन और एसिटिलीन गैस, इलेक्ट्रोड और ग्रेफाइट मोल्ड, बिजली शुल्क आदि जैसे विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए एक विस्तृत अध्ययन किया गया। नए प्लांट की स्थापना के लिए पंजाब और मैसूर(अब कर्नाटक)राज्यों में विभिन्न स्थानों का सर्वेक्षण किया गया, जहाँ बिजली शुल्क सबसे कम था। इसके बाद नागपुर, नवलूर, पापिनयाकन हल्ली, येलहंका, रायचूर और मैसूर को सूची में शामिल किया गया। अतंतःयह येलहंका, जो बैंगलोर शहर का एक उपनगर को सबसे अच्छा स्थान माना गया, जो व्हील और एक्सल प्लांट की स्थापना के लिए अधिकांश शर्तों को पूरा करता था। बाद में, इसके लिए बोर्ड कार्यालय में एक मुख्य परियोजना अधिकारी और एक उप परियोजना अधिकारी की सदस्यता वाली एक परियोजना टीम का गठन किया गया, जिसने येलहंका में एक संयंत्र की स्थापना के लिए विस्तृत अध्ययन करने और कदम उठाने का काम किया। सन 1972 के अंत में, विशेष कार्य अधिकारी (परियोजना औरउत्पादन इकाईयाँ) और मुख्य परियोजना अधिकारी (व्हील और एक्सल प्लांट)की एक उच्च स्तरीय टीम को उपकरणों और प्रक्रियाओं का विशिष्ट अध्ययन और मूल्यांकन करने के लिए यूरोप, अमेरिका और कनाडा में प्रतिनियुक्त किया गया था। इस टीम के दौरों के दौरान ग्रिफिन व्हील कंपनी, अमेरिका से कास्ट व्हील तकनीक और ऑस्ट्रिया से जीएफएम प्रकार की लांग फोर्जिंग मशीन द्वारा एक्सल की फोर्जिंग के विचारों को अपनाया गया। इस नई परियोजना हेतु विश्व बैंक से वित्तीय सहायता ली गई। 18 जनवरी1980को भारत के तत्का लीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी ने कास्ट व्हील, फोर्ज्ड एक्सल और असेंबल व्हीलसेट के निर्माण के लिए व्हील एंड एक्सल प्लांट(अब रेल व्हील फैक्ट्री, आर डब्लु एफ को राष्ट्र को समर्पित किया। जिसका पहला ट्रायल व्हील 30 दिसंबर1983 को कास्ट किया गया था और पहला एक्सल मार्च 1984 में फोर्ज किया गया था। इस कारखाना के सफल परीक्षणों के बाद, प्लांट का औपचारिक उद्घाटन15 सितंबर1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा किया गया। जिसकी उत्पादन 56, 700 कास्ट व्हील और 23, 000 फोर्ज्ड एक्सल की वार्षिक प्लांट क्षमता से शुरू होकर, आज इस कारखाना की उत्पादन क्षमता सेअधिक है। वर्तमान के वित्तीय वर्ष 2024-2025 -2, 01, 150अच्छे व्हील का निर्माण किया जो रेपका के इतिहास में सर्वाधिक निष्पादन है। वही 2024-2025 में93880 धुरों (एक्सल)विनिर्माण किया जो रेपका का दूसरा सर्वाधिक निष्पादन है। 2024-2025 में 98350 व्हीलसेट पेषण किया गया, जो एक रिकार्ड है। यहाँ पर अपवर्ड प्रेशर पोरिंग प्रक् प्रक्रिया द्वारा दो मिनट में एक पहिये डाले (ग्रिफिन प्रौद्योगिकी)जाते है। धुरों (एक्सल)को गढ़ाकर 4-1/2 मिनट में मशीन द्वारा तैयार तथा प्रत्येक 4 मिनट में एक पहिया (व्हील)सेट एसेंबल किया जाता है। आरडब्ल्यूएफ का वार्षिक उत्पादन स्तर स्थापना के बाद से प्रत्येक वर्ष रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित लक्ष्य से अधिक रही है। आज तक आर डब्ल्यू एफ ने 36 लाख से अधिक व्हील, 17लाख एक्सल और 12लाख व्हील सेट का निर्माण किया है। बेंगलूरू के ऐलहंका रेल पहिया कारखाना के परिसर जिसके पूर्व में पहिया व धुरा कारखाना स्थित है। यह एक अत्याधुनिक कारखाना है। जो भारतीय रेल के लिए भारी मात्रा में जरूरी पहियों, धुरों व पहिया सेटों की आपूर्ति करता है। साथ ही उपलब्ध अतिरिक्त क्षमता को गैर- रेलवे ग्राहकों से प्राप्त घरेलू माँगों को पूरा करने व निर्यात के लिए लाभपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाता है। रेपकाअपने ग्राहकों को लगातार उनके उम्मीदों से बढकर सेवा प्रदान करने के माध्यम से रेपका अपने ग्राहकों के साथ सफल और चिर संबंध स्थापित करने का प्रयास करता रहा है। यहाँ सुर्ख लाल पिघली लोह धातु के रासायनिक संघटन से लेकर अत्याधुनिक अंतिम निरीक्षण तक, सभी उत्पादों का चरणबद्ध व अंतिम रूप से निरीक्षण किया जाता है। इसमें सामग्री के माइक्रो/मेक्रो गुण, चुँबकीय कण परीक्षण अल्ट्रासॉनिक परीक्षण, कठोरता, वारपेज, डॉयमेंशनल पैरामीटर, सर्फेस फिनिश आदि शामिल है। विगत अप्रैल 3जुन 2024 में मेसर्स इंडियन रजिस्टर क्वालिटी सिस्टम द्वारा एकीकृत प्रबंधन प्रणाली (आईएमएस) के आधुनिक संस्करण के तहत पुन: प्रमाणित किया गया है जिसमें(1)पहियों, धुरों और पहिया सेटों के विनिर्माण के लिए आईएसओ -9001: 2008 मानकों के अनुरूप गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली (2) आईएसओ-14001: 2004 के मानकों के अनुरूप पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली (3) पहिया, धुरा एवं पहिया सेटों के विनिर्माण से संबंधित सभी गति विधियों, कैंटीन, अस्पताल, केंद्रीय विद्यालय जैसे आधार गतिविधियों व टाउनशिप की मूलभूत सुविधाओं के रखरखाव के लिए ओएसएचएएस18001: 2007मानकों के अनुरूप व्यावसायिक स्वास्थ्य और संरक्षा प्रबंधन प्रणाली शामिल है। यहाँ के सभी उत्पाद गुणवत्ता आश्वासन प्रमाण-पत्र सहित होते हैं। रेल पहिया कारखाना(रेपका) के पास अपने प्रत्येक ग्राहकों के आवश्यकताओं अनुसार किसी भी आकार के पहियों, धुरों और पहिया सेटों को डिज़ाइन करने व निर्मित करने की पूरी क्षमता है। (फिलहाल आप से यह कहते हुए विदा लेते है किना काहुँ से दोस्ती, ना ही काहुँ से बैर। खबरीलाल तो माँगें, सबकी खैर॥ फिर मिलेंगे, तीरक्षी नजर से तीखी खबर के संग तब तक के लिए अलविदा।) (आलेख-विनोद तकियावाला, स्वतंत्र पत्रकार, स्तम्भकार) ईएमएस / 18 अगस्त 25