एक छोटी सी गलती ने अरमान सारे बिखेर दिए जिस हिमालय पर नाज़ है वही प्रलय के पंख खोल दिए ग्लेशियर पिखल रहा है पहाड़ की जड़े कमजोर है स्वार्थ में उलझा मानव अब मनमानी पहाड़ से कर रहा पेड़ काटकर पहाड़ के वह कमजोर पहाड़ को कर रहा विकास के नाम पर सरकार ने सड़को का जाल बिछा दिया पेड़ कट गए पहाड़ उखड़ गए प्रकृति का विनाश हो रहा नदियों तक मे पिलर खड़े है वन्य जीवों को आश्रय नही भूख-प्यास में जीव भटक रहे आम जन तक सुरक्षित नही इंद्र देव भी कुपित हो गए प्रलय पहाड़ पर मची हुई बस्तियां तक ध्वस्त हो गई जिंदगियां बहुत दफन हो गई सड़के बह गई,पहाड़ दरक गए नदियों में उफान मचा है देवभूमि में कयामत आई कुदरत क्यो हमसे खफ़ा है काश!पहाड़ को पहाड़ समझते पेड़ो की रक्षा मिलकर करते नदियों के रास्ते बंद न करते ऐसा अगर हमने किया होता स्वर्ग सा सुख हमने पाया होता। ईएमएस / 18 अगस्त 25