लेख
18-Aug-2025
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भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग को संवैधानिक रूप से सबसे निष्पक्ष और स्वतंत्र संस्था का दर्जा प्राप्त है। चुनाव आयोग का काम न केवल चुनाव कराना है। प्रत्येक नागरिक के मतदान का अधिकार सुरक्षित रखना भी उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है। चुनावी प्रक्रिया पर जनता और सभी राजनीतिक दलों के विश्वास को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी चुनाव आयोग की है। बीते कुछ वर्षों में बार-बार चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। चुनाव मे ईवीएम की कार्य प्रणाली को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता संदेह की दृष्टि से देखी जा रही है। यही कारण है, अब विपक्ष ने मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर मंथन शुरू कर दिया है। जल्द ही अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी की जा रही है। विपक्ष का आरोप है, चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है। चुनावी बांड, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने एवं राजनीतिक दलों को मान्यता पर कई सवाल खड़े हुए। मतदाता सूची की विसंगतियों, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर उठते सवाल, सत्ता पक्ष द्वारा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन, विपक्ष द्वारा की गई शिकायतों पर कार्यवाही नहीं करना, विपक्ष की शिकायतों पर चुनाव आयोग द्वारा स्पष्ट और भरोसेमंद जवाब नहीं देने से विपक्ष का चुनाव आयोग पर विश्वास खत्म हो गया है। चुनाव आयोग न्यायालय प्रक्रिया की आड़ में विपक्ष को उलझाकर सत्ता पक्ष को जिस तरह का फायदा पहुंचा रहा था। इसका भंडाफोड़ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कर दिया है। उसके बाद से विपक्ष को जरा भी विश्वास, चुनाव आयोग पर नहीं रहा। विपक्ष का सीधा आरोप चुनाव आयोग के ऊपर है। चुनाव आयोग ने समय-समय पर कई संवेदनशील मामलों पर सत्ता पक्ष को फायदा पहुचाने में गड़बड़ी की उसके बाद खामोशी ओढ़ ली। विपक्ष की शिकायतों को नज़रअंदाज़ करते हुए सत्ता पक्ष को फायदा पहुंचाया है। जिस तरह से चुनाव आयोग मानमाने ढंग से नियम बदल रहा है। सरकार कानून बदल रही है। मनमाने ढंग से चुनाव आयोग मे आयुक्तों की नियुक्ति सरकार द्वारा की गई है। उससे विपक्षी दलों का अविश्वास चुनाव आयोग पर बढ़ता ही जा रहा है। अब सवाल यह है, क्या मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से स्थिति मैं सुधार होगा? संवैधानिक प्रावधानों के तहत चुनाव आयोग को काफी सुरक्षा मिली हुई है। मोदी सरकार ने जो नया चुनाव कानून बनाया है। उसमें चुनाव आयुक्तों के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है। यह सुरक्षा इसलिए है, ताकि चुनाव आयोग पर राजनीतिक रूप से कोई दबाव नहीं बना सके। अगर विपक्ष, संसद में इस मुद्दे को उठाकर अविश्वास प्रस्ताव पेश करता है। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग को संसद के अंदर विपक्ष के सभी सवालों का जवाब देना होगा। सीधे तौर पर लोकतांत्रिक विमर्श से संसद के अंदर नई दिशा मिलेगी। भले बहुमत के आधार पर प्रस्ताव पास होना कठिन हो। विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से आयोग की जवाबदेही तय करना चाहता है। विपक्ष का यह कदम लोकतंत्र की कसौटी चुनाव आयोग को कसे जाने का महत्वपूर्ण कोशिश है। चुनाव आयोग पर जनता का विश्वास एक बार डगमगा गया, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आधार ही खत्म हो जाएगा। विपक्ष की यह पहल केवल राजनीतिक प्रतिरोध नहीं मानी जा सकती है। संविधान और लोकतंत्र को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। विपक्ष अभी बिहार से जो जन यात्रा निकाल रहा है। उसमें वह संविधान मे मिले नागरिकों के मूल अधिकार, मताधिकार और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ने की बात कह रहा है। हर नागरिक को अपने मताधिकार और चुनावी प्रक्रिया मैं नागरिक अधिकार सुरक्षित करने की बात कह रहा है। इसका प्रभाव मतदाताओं के बीच देखने को मिल रहा है। यह मुद्दा सत्ता और विपक्ष से बड़ा है। भारत में संविधान एवं लोकतंत्र की विश्वसनीयता का सवाल खड़ा हो गया है। अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष ,बहस का रास्ता खोलने की तैयारी में है। आयोग को अपनी पारदर्शिता एवं निष्पक्षता साबित करने का यह एक अवसर भी हो सकता है। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विचार विमर्श लोकतंत्र की दृष्टि से एक सकारात्मक कदम साबित होगा। चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठना भारत के लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी के रूप में देखा जाना चाहिए। चुनाव आयोग जिस तरह से राजनीतिक दलों को पिछले कुछ वर्षों से नजर अंदाज करता है। जिस तरह से एक शासक की तरह विपक्षियों के साथ व्यवहार कर रहा है। विपक्ष का कहना है चुनाव आयोग का पलड़ा सरकार की तरफ झुका हुआ है। चुनाव आचार संहिता और नियमों को लेकर अब यह बात आम आदमी भी करने लगा है। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग को कार्य प्रणाली इस तरीके से करनी होगी। जिससे आम लोगों और सभी राजनीतिक दलों का विश्वास उसके ऊपर बना रहे। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो सरकार और चुनाव आयोग दोनों के लिए ही आगे चलकर मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो सकता है। ईएमएस/ 18 अगस्त 25