आज हिंदी का प्रचार जोर शोर से चल रहा है और हिंदी हेतु सरकार द्वारा राजभाषा हेतु उपनिदेशक ( राजभाषा ) व अनुवाद अधिकारी की नियुक्ति होती है अच्छी बात है अभी हिंदी दिवस भी सामने आ रही है और अभी से ही लोग हिंदी लेख और उससे जुड़े प्रतियोगिता में भाग लेने को इक्छुक है हिंदी में कर्मचारी को ट्रेनिंग भी दि जा रही है लेकिन हिंदी को अनुसन्धान संस्थान पर थोपना सही नहीं है क्योंकि विज्ञान या इंजीनियरिंग को हिंदी में कितने लोग पढ़े है यदि पढ़े भी है तो संस्थान में काम करने वाले सभी लोग पढ़े हैं क्या? क्योंकि कुछ लोगों के विज्ञान को हिंदी में पढ़ाई करने से अनुसन्धान का कार्य पूर्ण रूप से नहीं होता है क्योंकि टीम वर्क के साथ काम करना होता है अनुसन्धान संस्थान में देश के टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे आईआईटी, एनआईटी आदि के स्टूडेंट रहते हैं वहाँ सारा पढ़ाई इंग्लिश में होता है तकनिकी हिंदी और सिर्फ हिंदी में काफी अंतर है वहाँ हिंदी अनुवादक कार्मिक होते हैं जिसे विज्ञान और इंजीनियरिंग की पकड़ कितनी होती है वो सबको पता है नतीजा यह होता है कि टेक्निकल या इंजीनियरिंग शब्दों का हिंदी में कैसे इस्तेमाल किया जाए अंत में गूगल ट्रांसलेशन की मदद लेते हैं और कार्मिक द्वारा हिंदी ट्रांसलेशन में गलत अर्थ आता है जैसे आप फिजिकल प्रोग्रेस को हिंदी में गूगल ट्रांसलेशन करेंगे तो शारीरिक प्रगति आती है जिसे भौतिक प्रगति होना चाहिए उसी तरह परचेज ऑर्डर का गूगल ट्रांसलेट करते हैं तो खरीद आदेश आता है जबकी क्रय आदेश होना चाहिए इसी तरह प्रोक्योरमेंट को गूगल से ट्रांसलेशन करेंगे तो भी खरीद ही आता है जबकी उसका सही अर्थ प्रापण होना चाहिए आरटीडी जो एक इलेक्ट्रिकल यन्त्र है उसे गूगल से ट्रांसलेशन करने पर सेवानिवृत हो जाता है और एक ऐसा ही शब्द Ti जिसे जिसे टाईटेनियम कहा जाता है गूगल उसे तिवारी पकड़ लेता है ऐसे अनगिनत शब्द हैं जो विज्ञान में हिंदी में गूगल कभी सही अर्थ जो उसमें फिट होना चाहिए वो नहीं बतलाता है अतः यदि अनुसन्धान संस्थान में हिंदी को अनिवार्य करना जरुरी नहीं है नहीं तो वहाँ के साइंटिस्ट को शोध करने में कई कठिनाई का सामना करना पड़ता है ऐसे भी वैज्ञानिक खोज देश या विदेश पर निर्भर नहीं करती है वह सिद्धांत को प्रैक्टिकल के सफलता पर निर्भर करती है और जब आईआईटी और लगभग सभी इंजीनियरिंग कॉलेज में इंग्लिश में पढ़ा होता है तो अनुसन्धान संस्थान में वैज्ञानिक हिंदी में कैसे काम करेंगे अतः अनुसन्धान संस्थान में देश के विकास हेतु टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है जो समय से कार्य को पूर्ण करना उसका उद्देश्य होता है तकनीकी लेखन से आशय तकनीकी और व्यावसायिक क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले तकनीकी संचार को लिखने से है। उदाहरण के लिए कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग, रसायन विज्ञान, वैमानिकी, रोबोटिक्स, वित्त, चिकित्सा, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, जैव प्रौद्योगिकी और वानिकी जैसे तकनीकी और व्यावसायिक क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले तकनीकी संचार को लिखना। अतः आज हिंदी में तकनिकी लेखन यदि शुरुआत से ही की जाए तभी इसका फायदा होगा मंगलवार (5 अगस्त, 2025) को लोकसभा को सूचित किया गया कि सरकार ने आधिकारिक संचार, केंद्रीय सेवाओं या शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को अनिवार्य बनाने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया है।गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने डीएमके सांसद कलानिधि वीरस्वामी के एक लिखित प्रश्न के उत्तर में यह बात कही। इस प्रश्न में पूछा गया था कि क्या सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने के लिए कोई निर्देश जारी किए हैं। मंत्री ने उत्तर दिया, नहीं, महोदय। डीएमके सांसद मथेश्वरन वी.एस. द्वारा 2014 से हिंदी के प्रचार-प्रसार पर खर्च की गई धनराशि के बारे में पूछे गए एक अलग प्रश्न का उत्तर देते हुए, मंत्री ने आँकड़े प्रस्तुत किए जिनसे पता चला कि 2014-15 और 2024 के बीच राजभाषा विभाग को आवंटित बजट से ₹736.11 करोड़ खर्च किए गए हैं।लेकिन हिंदी अपने देश की भाषा है खुसबू बिखेरती है अतः हिंदी के साथ साथ क्षेत्रीय भाषा का भी सम्मान होएक प्रसिद्ध और शिक्षाप्रद दोहा है। करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।रसरी आवत जात के सिल पर परत निशान।। इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है अभ्यास। अगर मान लिया जाए अभ्यास ही गलत हो, या गलत दिशा में किया जा रहा हो। तो सफलता मिलने की संभावना लगभग शून्य ही हो जाएगी। इसलिए हर कार्य या अभ्यास के पीछे भी गंभीरता बहुत जरूरी है। गंभीरता और मन से किया गया कार्य ही सार्थक होता है। इसके अभाव में अभ्यास निरर्थक साबित हो जाएगा। हम जो भी प्रश्नों के जवाब देते हैं वह जवाब कहीं न कहीं मौजूद भी होते हैं। अगर उस जवाब में हम अपने अनुभव द्वारा, उनमें नए उदाहरण नहीं जोड़ेंगे। तो मेरे जवाब का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा यानी मेरा जवाब गंभीरता पूर्वक नहीं लिया जाएगा। उसे एक तरह का कॉपी-पेस्ट ही माना जाएगा। स्कूल के दिनों में एक कहानी पढ़ी थी कि किस तरह एक जादुई बांसुरी वाला व्यक्ति पूरे शहर के लोगों को चूहे के आतंक से आजादी दिलाता है। उस बांसुरी की आवाज में इतना खिंचाव था कि शहर के सारे चूहे उस आवाज के पीछे खींचते चले गए और शहर के बाहर दूरदराज गुफा में बंद कर दिए गए। कहीं न कहीं यह तकनिकी हिंदी का प्लेटफार्म भी लोगों को जादुई बांसुरी वाले व्यक्ति की तरह ही अपनी ओर आकर्षित करता है और विज्ञान लेखक बगैर पारिश्रमिक के ही लगातार मेहनत करते रहते हैं। जो एक सच्चाई भी है।मेरे हिसाब से विज्ञान लेखन का जो नाता है वह कहीं न कहीं एक आकर्षण से भी जुड़ा हुआ मालूम पड़ता है। पुरातात्विक अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि आज से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व ही मनुष्य ने फसल पैदा करना सीखा था । वेदों में भी इस काल के कृषि विकास का महत्वपूर्ण वर्णन मिलता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में कृषि, गोपालन आदि का विशद विवेचन मिलता है। इनमें फसल उत्पादन के लिये आवश्यक भूमि, भूमि की तैयारी, जल तथा सिंचाई, पादप-पोषण, फसल सुरक्षा और मौसम के बारे में बहुत कुछ पढ़ने को मिलता है । साथ ही उस समय के गोपालन के बारे में भी जानकारी मिलती है। जिसका आधुनिक विज्ञान के आधार पर परीक्षण करके बहुत लाभ उठाया जा सकता हैं। इन्हीं जानकारियों को यहाॅं क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया हैं। अलग-अलग भाषाओं के लिए अलग-अलग लिपियों का भी प्रयोग मिलता है। यूरोपीय देशों की भाषाओं के लिए रोमन लिपि का प्रयोग मिलता है। ईरान और इराक आदि देशों की भाषाओं के लिए फारसी लिपि का प्रयोग होता है। अरब देशों की भाषाओं और बोलियों के लिए अरबियन लिपि का प्रयोग होता है। भारत में संस्कृत, प्राकृत और अपभं्रश प्राचीन भाषों का प्रयोग मिलता है। हिन्दी, मराठी, गुजराती और पंजाबी आदि आर्य भाषा- परिवार की भाषाओं के लिए अलग-अलग लिपियों का प्रयोग होते हुए भी नागरी लिपि का प्रयोग होता है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मराठी, कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी भाषाओं की अभिव्यक्ति के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग होता है। बांग्ला, उड़िया, असमिया आदि पूर्वी क्षेत्र की भाषाओं की अलग-अलग लिपियां हैं। परन्तु इन भाषाओं का देवनागरी लिपि के निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।हिन्दी एक व्यापक भाषा है, जो सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें सम्पूर्ण भारत एक साथ बोलता है। इसके एक-एक शब्द के उच्चारण में हमारी आत्मा, हमारी संस्ड्डति समाई हुई है। भारतीय संस्ड्डति को जीवित रखने के महान् उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए मनीषियों ने हिन्दी को प्रतिनिधि भाषा घोषित करनें में भारत का और अपना गौरव समझा है। यह निर्विवाद सत्य भी है कि जिस दिन ‘हिन्दी’ व्यावहारिक रूप में प्रतिनिधि भाषा का रूप धारण कर लेगी और ‘अंग्रेजी’ का मोह भंग हो जायेगा, उस दिन हमारा देश भाषा के दृष्टिकोण से एक हो जायेगा, विज्ञान के क्षेत्र में अंग्रेजी का कार्य अनायास ही समाप्त हो जायेगा। हिन्दी देश की एकता की कड़ी है। हिन्दी सहज, सरल एवं सम्पूर्ण भाषा है, पर्याप्त शब्द कोष है।इसमें हमारी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने का सामथ्र्य है, भरपूर-साहित्य है, जिसके संवाद अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। हिन्दी ने अपनी मौलिकता एवं सुबोधता के बल पर ही राष्ट्र की सभ्यता, संस्ड्डति और साहित्य को जीवन्त बनाए रखा है सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बंधा महसूस कराते रहती है एवं अनेकता में एकता के दर्शन कराती है।हिन्दी के द्वारा ही सारे देश को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। ईएमएस / 31 अगस्त 25