लेख
04-Sep-2025
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जीएसटी परिषद का हालिया निर्णय भारतीय कर ढांचे में एक ऐतिहासिक सुधार है। परिषद ने 12 और 28 प्रतिशत वाले स्लैब को खत्म कर केवल दो मुख्य दरें - 5 और 18 प्रतिशत - लागू करने का फैसला किया है। वहीं, लग्जरी और ‘सिन गुड्स’ पर 40 प्रतिशत का विशेष स्लैब रहेगा। यह नई व्यवस्था 22 सितंबर से लागू होगी और इसका असर उपभोक्ताओं से लेकर उद्योग जगत और सरकार के राजस्व तक हर स्तर पर महसूस होगा। सबसे सीधा फायदा उपभोक्ताओं को मिलेगा, खासकर देश के मध्य वर्ग को, जिसकी आबादी करीब 35–40 करोड़ है और जो कुल खपत का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा रखता है। रोजमर्रा की वस्तुएं जैसे कपड़े, जूते, साबुन, शैम्पू और साइकिल अब सस्ते होंगे। पनीर, रोटी और पराठा जैसी खाने-पीने की चीजें शून्य कर श्रेणी में आ चुकी हैं। स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम पर कर खत्म कर दिया गया है, जबकि जीवन रक्षक दवाएं भी अब टैक्स से मुक्त होंगी। इससे न केवल मासिक बजट हल्का होगा बल्कि बीमा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी आसान होगी। यह बदलाव ऐसे समय आया है जब भारत में जीवन बीमा कवरेज अभी भी महज 4 प्रतिशत आबादी तक सीमित है। उद्योग जगत के लिए यह सुधार नई संभावनाएं खोलता है। वस्त्र उद्योग, जो 4.5 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देता है और निर्यात में 11 प्रतिशत योगदान करता है, घटे कर से प्रतिस्पर्धात्मक बनेगा। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सौर पैनल और उपकरण सस्ते होने से हरित ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा। ऑटोमोबाइल सेक्टर, जो भारत के जीडीपी में 7 प्रतिशत और कुल विनिर्माण में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है, छोटे वाहनों पर टैक्स में कमी से डिमांड में इजाफा देखेगा। इन तीनों क्षेत्रों में रोजगार और उत्पादन की नई लहर उठ सकती है। सरकार का यह कदम वैश्विक परिदृश्य में भी रणनीतिक महत्व रखता है। अमेरिका ने हाल ही में भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का निर्णय लिया है। इससे निर्यात दबाव में आ सकता है। ऐसे समय में घरेलू मांग को मजबूत करना और आंतरिक खपत को प्रोत्साहित करना भारत की सबसे बड़ी ताकत साबित हो सकता है। यही वजह है कि जीएसटी सुधार को केवल कर ढांचे का सरलीकरण नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था को वैश्विक दबाव से सुरक्षित करने की कोशिश भी माना जा रहा है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि टैक्स दरों में कमी से शुरुआत में राजस्व पर दबाव पड़ सकता है, लेकिन खपत बढ़ने और कर अनुपालन सरल होने से यह घाटा लंबे समय में संतुलित हो जाएगा। कर चोरी की गुंजाइश घटेगी और टैक्स कलेक्शन स्थिर होगा। उद्योग संगठनों का आकलन है कि यह बदलाव कारोबारी माहौल को पारदर्शी बनाएगा और Ease of Doing Business को मजबूती देगा। जीएसटी सुधार का सामाजिक पहलू भी उल्लेखनीय है। स्वास्थ्य और बीमा को करमुक्त करना एक ऐसी नीति है जो आम नागरिक की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करती है। इससे समाज में आर्थिक असमानता घटेगी और अधिक से अधिक लोग बुनियादी सेवाओं से जुड़ पाएंगे। कुल मिलाकर, जीएसटी स्लैब में यह बदलाव तीन स्तरों पर असर डालेगा - आम उपभोक्ता को राहत, उद्योगों को अवसर और सरकार को स्थायी राजस्व। यह केवल टैक्स स्लैब का सरलीकरण नहीं, बल्कि विश्वास, पारदर्शिता और आत्मनिर्भरता का नया अध्याय है, जो भारत की आर्थिक यात्रा को नई ऊर्जा और स्थायित्व प्रदान करेगा। (लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार हैं) ईएमएस/4 सितम्बर 2025