वैश्विक स्तरपर भारत मान्यताओं प्रथाओं परंपराओं और गहरी आध्यात्मिकता में आस्था रखने वाले देश के रूप में प्रसिद्ध है।अनेक कारणों में से यह भी एक कारण है की पूरी दुनियां से सैलानी भारत भ्रमण पर आते है जो इन प्रथाओं परंपराओं आध्यात्मिकता को देख उनसे प्रेरणा लेने की कोशिश करते हैं।आधुनिक विज्ञान के इस डिजिटल युग में जहां मानव चांद पर मानव कॉलोनी बनाने की ओर बढ़ गए हैं, सूर्य को अपनी मुट्ठी में लेने के प्रयास हो रहे हैं,मानव का स्थान अब रोबोट ले रहा है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनियां हदें पार कर रही है,परंतु भारत एक ऐसा देश है जिसकी सभ्यता और संस्कृति की जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं।यहाँ का जीवन- दर्शन केवल वर्तमान तक सीमित नहीं है बल्कि अतीत और भविष्य को भी जोड़ता है। इसी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का एक गहरा उदाहरण है पितृपक्ष, जिसे हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है। वर्ष 2025में यह पवित्र कालखंड 7 सितंबर से 21 सितंबर तक रहेगा। यह समय भारतीय समाज में पूर्वजों की स्मृति, उनके प्रति कृतज्ञता और उनकी आत्मा की शांति के लिए किए जाने वाले कर्मकांड का प्रतीक है। इस पर्व का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है,बल्कि यह मनुष्य को उसकी जड़ों से जोड़ने और सामाजिक सामंजस्य बनाए रखने की प्रेरणा भी देता है। आज भारत के परिवार सच्चे मन से एवं श्रद्धा से श्राद्ध मनाकर अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त कर रहा है। मान्यता के अनुसार इस दौर में हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में धरती पर आते हैं और श्राद्ध को ग्रहण कर हमें आशीर्वाद देते हैं। भारतीय संस्कृति में पितृपक्ष को केवल कर्मकांड का पर्व नहीं माना गया है, बल्कि इसे आस्था और श्रद्धा का जीवंत प्रतीक समझा गया है।श्रद्धया इदं श्राद्धम् का शास्त्रीय उद्घोष यही बताता है कि जब किसी कार्य को श्रद्धा, निष्ठा और कृतज्ञता से किया जाता है तो वह श्राद्ध कहलाता है।इसीलिए पितृपक्ष केवल आचार-विचार का विषय नहीं है, बल्कि यह भावनाओं, रिश्तों और पारिवारिक मूल्यों का उत्सव है। जब मनुष्य अपने पूर्वजों का स्मरण करता है,उन्हें तर्पण, पिंडदान और भोजन अर्पण करता है, तो यह उसकी आत्मा को भी शांति प्रदान करता है।चूंकि यह 15 दिवसीय श्राद्ध 7 सितंबर 2025 से शुरू हैं, इसलिएआज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से,चर्चा करेंगे, श्रद्धया इदं श्राद्धम् - जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है। साथियों बात अगर हम पितृपक्ष का मूल उद्देश्य को समझने की करें तो, यही है कि मनुष्य अपने जीवन में यह स्वीकार करे कि उसका अस्तित्व केवल उसकी मेहनत का परिणाम नहीं है। उसकी रगों में उसके माता-पिता और पूर्वजों का रक्त बह रहा है, उसकी संस्कृति और संस्कार उसके पूर्वजों की धरोहर हैं। इसलिए यह पर्व केवल मृतकों को याद करने का माध्यम नहीं है बल्कि यह जीवितों के जीवन को भी अनुशासित और संतुलित करने का अवसर है। यह हमें यह स्मरण कराता है कि परिवार, समाज और संस्कृति की जड़ों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।भारतीय धर्मग्रंथों में यह स्पष्ट कहा गया है कि हर मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं,देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। इनमें से पितृ ऋण सर्वोपरि माना गया है क्योंकि माता-पिता और पूर्वजों के बिना किसी का अस्तित्व संभव नहीं है। देव ऋण हमें प्रकृति और देवताओं के प्रति कृतज्ञ बनाए रखता है,ऋषि ऋण हमें ज्ञान और परंपरा की याद दिलाता है, जबकि पितृ ऋण हमें जीवनदाता और हमारी जड़ों की स्मृति कराता है।माता-पिता,दादा-दादी और उन सभी बुजुर्गों को पितृ ऋण के अंतर्गत माना गया है जिन्होंने हमें जीवन का आधार दिया। इसलिए पितृपक्ष में पितरों का स्मरण और उनका तर्पण करना केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि जीवन का नैतिक दायित्व भी है। साथियों बात अगर हम पितृपक्ष के दौरान किए जाने वाले कर्मकांडों की करें तो,उसमें तर्पण पिंडदान और ब्राह्मण भोजन प्रमुख हैं। शास्त्रों के अनुसार, तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष और तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों का स्मरण करना आवश्यक है। इन्हीं को ‘पितर’ कहा गया है। तर्पण के माध्यम से व्यक्ति जल अर्पण करके यह भावना व्यक्त करता है कि वह अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित है। पिंडदान के रूप में अन्न का अर्पण उनके प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। यही कारण है कि इस काल में घर-घर में श्रद्धा और भक्ति का वातावरण रहता है और लोग अपने पूर्वजों के नाम से विशेष रूप से ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराते हैं। साथियों बात अगर हम पितृपक्ष का एक महत्वपूर्ण पहलू पितृ दोष की करें तो, ज्योतिष और धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब परिवार में पूर्वजों की आत्मा को उचित संतुष्टि नहीं मिलती या उनके लिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं किया जाता, तो इसे पितृ दोष कहा जाता है। इसका प्रभाव परिवार के जीवन पर पड़ता है और इसे अपूर्ण कार्यों, अशांति, असफलता, आर्थिक संकट या मानसिक तनाव से जोड़ा जाता है। पितृ दोष के कारण घर में प्रगति रुक सकती है और परिवारिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है। इस दोष को दूर करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं, जैसे,पितृपक्ष में विधिवत तर्पण करना, पिंडदान करना, गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना तथा ब्राह्मणों को दान देना। इसके अतिरिक्त, गीता पाठ, विष्णु सहस्रनाम, नारायण बलि और रुद्राभिषेक जैसे अनुष्ठान भी पितृ दोष को शांत करने में सहायक माने गए हैं। साथियों बात अगर हम आधुनिक संदर्भ में पितृपक्ष का महत्व और भी बढ़ जाने की करें तो,आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अक्सर अपने पूर्वजों और पारिवारिक मूल्यों को भूल जाते हैं। लेकिन यह पर्व उन्हें यह स्मरण कराता है कि हमारी जीवनशैली और हमारे संस्कार किसी व्यक्तिगत उपलब्धि का परिणाम नहीं हैं, बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित धरोहर है। इसी कारण पितृपक्ष को मानव सभ्यता की कृतज्ञता का पर्व कहा जा सकता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि आधुनिकता के बीच भी परंपराओं को जीवित रखना उतना ही आवश्यक है, जितना प्रगति करना।पितृपक्ष का एक गहरामनोवैज्ञानिक महत्व भी है। जब लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं, तो यह उन्हें आत्मिक संतोष और भावनात्मक स्थिरता प्रदान करता है। यह प्रक्रिया मानसिक शांति और परिवार के भीतर सामंजस्य लाने में सहायक होती है। पूर्वजों का स्मरण करने से व्यक्ति को अपने जीवन के संघर्षों में भी यह प्रेरणा मिलती है कि जैसे उनके पूर्वजों ने कठिनाइयों का सामना किया, वैसे ही वे भी चुनौतियों को पार कर सकते हैं। साथियों बातें अगर हम पितृपक्ष केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय प्रवासी समाज के माध्यम से पूरी दुनिया में फैल चुका है, इसको समझने की करें तो, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अफ्रीका में बसे भारतीय समुदाय इस काल में विशेष श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं। वैश्विक स्तर पर यह पर्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मनुष्य को उसकी जड़ों से जोड़े रखता है, चाहे वह कहीं भी रह रहा हो। जब प्रवासी भारतीय अपने घरों में पितरों का स्मरण करते हैं और अपने बच्चों को यह परंपरा बताते हैं, तो इससे भारतीय संस्कृति की निरंतरता बनी रहती है। इस प्रकार पितृपक्ष सांस्कृतिक पहचान और वैश्विक भारतीयता का भी प्रतीक बन चुका है।यदि वैश्विक दृष्टिकोण से देखा जाए तो पितृपक्ष का भाव अन्य सभ्यताओं में भी दिखाई देता है। चीन में ‘किंग मिंग फेस्टिवल’(टॉब स्वीपिंग डे), जापान में ‘ओबोन उत्सव’, मैक्सिको में ‘डे ऑफ द डेड’, और यूरोप के कई हिस्सों में ‘ऑल सोल्स डे’ जैसे पर्व इसी बात का प्रतीक हैं कि पूरी दुनिया में मनुष्य अपने पूर्वजों को याद करने की परंपरा निभाता है। यह सांस्कृतिक समानता दर्शाती है कि चाहे भाषा, भूगोल और परंपराएँ अलग हों, लेकिन पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता की भावना वैश्विक स्तर पर समान है। इस दृष्टिकोण से पितृपक्ष केवल भारतीय पर्व नहीं बल्कि विश्व मानवता की साझा धरोहर के रूप में देखा जा सकता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि पितृपक्ष के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित न रखकर इसे एक मानव-धर्म और नैतिक कर्तव्य के रूप में देखा जाए। जब व्यक्ति अपने पूर्वजों को याद करता है तो वह यह भी सीखता है कि उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या धरोहर छोड़नी चाहिए। इस प्रकार पितृपक्ष केवल अतीत का उत्सव नहीं है बल्कि यह भविष्य के लिए जिम्मेदारी की याद दिलाने वाला पर्व भी है। साथियों बात अगर हम पितृपक्ष के 15 दिनों में हमारे पूर्वजों के हमारे आसपास होने के संकेतों की करें तो,(1) पितृ पक्ष में कौए का विशेष महत्व माना है, माना जाता है कि इन दिनों में पितर कौवों के रूप में धरती पर आते हैं और जल-अन्न ग्रहण करते हैं। पितृ पक्ष के दौरान अगर कौआ आपके घर में आकर भोजन ग्रहण करता है तो इसका मतलब है कि आपके पूर्वज आपके आसपास मौजूद हैं और आप पर उनकी दया दृष्टि है।(2)श्राद्ध के दिनों में अगर आपको अपने घर के आसपास अचानक से काला कुत्ता दिखाई देता है, तो यह आपके आसपास पितरों की मौजूदगी का संकेत हो सकता है।पितृ पक्ष के दौरान काले कुत्ते को पितरों का संदेशवाहक माना जाता है, इन दिनों में काले कुत्ते का दिखना एक शुभ संकेत माना जाता है, इसका मतलब है कि आपके पितृ आपसे प्रसन्न हैं।(3)पितृ पक्ष के दौरान आपको घर में बहुत सारी लाल चीटियां दिखाई दें तो यह भी पितरों के आसपास होने का संकेत है, माना गया है कि आपके पितृ चीटियों के रूप में आपसे मिलने आते हैं,ऐसे में आपको चीटियों को आटा खिलाना चाहिए इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।(4)पितृ पक्ष के दौरान अगर घर में लगी तुलसी अचानक से सुखने लगे तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आपके पूर्वज आपके आसपास ही कहीं हैं, तुलसी का सूखना इस बात का भी संकेत है कि आपके पूर्वज किसी बात पर आपसे नाराज हैं, ऐसे में पितरों की शांति के लिए उपाय करने चाहिए। (5) हिंदू मान्यताओं के अनुसार पीपल पर पितरों का भी वास होता है, आपके घर में अगर अचानक से पीपल का पेड़ निकल आए तो यह पितरों के आसपास मौजूद होने का संकेत होता है, ऐसे में आपको पीपल पर जल अर्पित करना चाहिए और पितृ दोष से मुक्ति के लिए उपाय करने चाहिए। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पितृपक्ष 07 से 21 सितंबर 2025 पर विशेष।श्रद्धया इदं श्राद्धम् - जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में धरती पर आते हैं और श्राद्ध को ग्रहण कर हमें आशीर्वाद देते हैं। (-संकलनकर्ता लेखक-कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र ) ईएमएस / 06 सितम्बर 25