नई दिल्ली,(ईएमएस)। कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हुए हैं। इस बार सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाते हुए अनुरोध किया गया है कि धर्म के आधार पर जज बनाने के लिए सिफारिश पर तत्काल रोक लगना चाहिए। ये धर्म निरपेक्ष देश में संविधान के खिलाफ है। एक नई जनहित याचिका में इस कोटे को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत के खिलाफ है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया है। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि धर्म के आधार पर आरक्षण संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से सरकार को धर्म के आधार पर सिफारिश किए गए लोगों को न्यायाधीश बनाने से रोकने का अनुरोध किया है। यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत के संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों और न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित है। एससी का फैसला इस मामले में एक मिसाल कायम करेगा और भविष्य में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को प्रभावित करेगा। याचिका में दिसंबर 2024 में लोकसभा में केंद्रीय कानून मंत्री के बयान का उल्लेख किया गया है। मंत्री ने कहा था कि सरकार ने हाई के मुख्य न्यायाधीशों से एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों के नाम एससी कॉलेजियम को भेजने का अनुरोध किया है। ऐसा एससी न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह का अनुरोध असंवैधानिक है क्योंकि संवैधानिक पदों पर चयन किसी व्यक्ति के धर्म के आधार पर नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब है कि याचिकाकर्ताओं के अनुसार, सरकार का यह अनुरोध संविधान के खिलाफ है। बता दें कि कालेजियम भारत के मुख्य न्यायाधीश और दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक समूह है। कॉलेजियम का काम हाई कोर्ट के रूप में चुनने के लिए वकीलों के नामों की सिफारिश करना है। यह एससी,एसटी,ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के वकीलों के नामों की भी सिफारिश करता है। वीरेंद्र/ईएमएस/06सितंबर2025