08-Sep-2025


लाइसेंस रद्द करने और परियोजना रोकने की मांग - जन संघर्ष समन्वय समिति, मध्यप्रदेश भोपाल (ईएमएस)। मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले के धिरौली कोल ब्लॉक में अडानी समूह की सहायक कंपनी स्ट्रेटाटेक मिनरल रिसोर्सेस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित कोयला परियोजना के खिलाफ संघर्षरत आदिवासियों और स्थानीय ग्रामीणों की मांगों का जन संघर्ष समन्वय समिति, मध्यप्रदेश पुरजोर समर्थन करती है। समिति मध्यप्रदेश सरकार से बिना उचित पुनर्वास के आदिवासियों को उजाड़ने और पेड़ कटाई जैसे अवैध व पर्यावरण-विरोधी प्रयासों पर तत्काल रोक लगाने की मांग करती है। साथ ही भारत सरकार से कंपनी का लाइसेंस रद्द करने और कोल आवंटन निरस्त करने की अपील करती है, क्योंकि कंपनी ने पर्यावरण नियमों, भूमि अधिग्रहण नीति तथा आदिवासी अधिकारों का खुला उल्लंघन किया है। समिति मध्यप्रदेश सरकार से मांग करती है कि संघर्षरत आदिवासियों की आवाज दबाने के लिए लगाए जा रहे फर्जी मुकदमे तत्काल वापस लें। जन संघर्ष समन्वय समिति, मध्य प्रदेश से जुडी और प्रभावित ग्राम पंचायत मझौलीपाट की सरपंच चंदा पनिका ने कहा कि धिरौली कोल ब्लॉक 586.39 मिलियन टन कोयले के विशाल भंडार वाला मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा ब्लॉक है, जहां प्रति वर्ष 6.5 मिलियन टन कोयला उत्खनन प्रस्तावित है। यह खुले खदान विधि से 40 वर्षों तक चलेगा, जो 87 वर्षों तक लगभग 398.27 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष राजस्व उत्पन्न करेगा। कोयला मंत्रालय, भारत सरकार ने 3 मार्च 2021 को 2672 हेक्टेयर क्षेत्र (जिसमें 549.975 हेक्टेयर निजी भूमि शामिल) को कोयला खनन के लिए आवंटित किया था जिसका प्रभावितों ने शुरू से ही विरोध किया है। स्ट्रेटाटेक कंपनी के लोगों ने कंबल और शराब बांटकर अवैध तरीके से ग्राम सभाओं की सहमति हासिल की थी। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर एवं पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम (LARR Act) की धारा 12 के तहत भौतिक चिह्नांकन और मूल्यांकन नहीं हुआ, जबकि धारा 16 के अनुसार जठाटोला में पूर्ण विकसित पुनर्वास कॉलोनी का वादा खोखला साबित हुआ। वहां न प्लॉट व्यवस्थित हैं, न सड़कें; पानी-बिजली, स्कूल-हॉस्पिटल, बाजार या खेल मैदान जैसी सुविधाओं का अतापता नहीं है। उन्होंने आगे बताया कि इस परियोजना से आठ गांव—आमडांड, अमरईखोह, बेलवार, सिरसवाह, बासी बेरदहा, झलरी, धिरौली और फाटपानी —प्रभावित हो रहे हैं, जहां 600 से अधिक परिवार और हजारों ग्रामीण विस्थापन की आशंका से जूझ रहे हैं। पहले भी, 4 मई 2022 को ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना बासी बेरदहा में पर्यावरणीय सुनवाई आयोजित की गई, जिसका ग्रामीणों ने काले झंडे दिखाकर विरोध किया था। स्थानीय पंच, सरपंच और जनपद सदस्यों के विरोध के बावजूद स्थानीय प्रशासन अडानी की सेवा में लगा हुआ है, जिससे क्षेत्र में भय और आतंक का माहौल है। जन संघर्ष समन्वय समिति, मध्यप्रदेश की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में विजय कुमार ने कहा कि यह संघर्ष न केवल स्थानीय मुद्दा है, बल्कि कॉर्पोरेट हितों के नाम पर पर्यावरण व आदिवासी संस्कृति के विनाश का मामला है। भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कार्बन उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता जताती है, वैश्विक जलवायु संकट पर चिंता व्यक्त करती है, लेकिन धड़ल्ले से कोयला ब्लॉक आवंटित कर रही है, जो कार्बन उत्सर्जन का मुख्य स्रोत है। यह दोहरा चरित्र पर्यावरण के प्रति लापरवाही है और सदियों से जंगलों की रक्षा करने वाले लाखों आदिवासियों की संस्कृति व पहचान को नष्ट करने की कोशिश है। मोदी सरकार अपने चहेते कॉर्पोरेट मित्रों (अडानी-अंबानी) को प्राकृतिक संसाधनों से अकूत मुनाफा कमाने के लिए कौड़ियों के दाम पर कोयला खदानें सौंप रही है। धिरौली इसका जीवंत प्रमाण है, जहां जल, जंगल, जमीन का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है। समिति सभी पर्यावरण प्रेमियों, जनपक्षधर ताकतों, आम जनता से अपील करती है कि धिरौली के संघर्षरत आदिवासियों व ग्रामीणों की आवाज को मजबूत करें, यह केवल धिरौली का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे देश के आदिवासी समुदायों के अस्तित्व, पर्यावरण और विकास के मॉडल का सवाल है। हमें विकास के नाम पर विनाश स्वीकार्य नहीं है। हरि प्रसाद पाल / 08 सितम्बर, 2025