लेख
10-Sep-2025
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नेपाल बड़े राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। नेपाल का सत्ता संघर्ष, सरकार बदलने की निरंतरता और राजनीतिक दलों के बीच अविश्वास और सत्ता संघर्ष ने वहां लोकतंत्र को कमजोर कर दिया है। हाल ही में नेपाल में जिस तरीके से युवा सड़कों पर आ गए। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार से त्रस्त युवा सोशल मीडिया को प्रतिबंधित कर देने की घटना से इतने उत्तेजित हो गए कि वह सड़कों पर उतरकर संसद भवन में घुस गए। संसद भवन,राष्ट्रपति भवन, तथा मंत्रियों के बंगलो को आग के हवाले कर दिया गया। नेपाल में कर्फ्यू लगाना पड़ा, पुलिस ने गोली चालान किया, जिसमें दो दर्जन से ज्यादा युवा मारे गए। उसके बाद भी नेपाल की जन क्रांति को ‎नियं‎त्रित नहीं ‎किया जा सका। नेपाल में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद, बेरोजगारी, महंगाई को लेकर इस कदर परेशान हो गई थी। वह राजनीतिक दलों के नेताओं एवं उनके परिवार जनों के खिलाफ सड़कों पर लड़ाई लड़कर अपने अ‎धिकारों के ‎लिये लड़ रही है। जिस ढंग से नेपाल के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रियों को भागकर अज्ञातवास में जाना पड़ा। सेना को सत्ता सौंपने की बात नेपाल में होने लगी। देखते ही देखते एक झटके में नेपाल में सत्ता में परिवर्तन हो गया। इसने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है। नेपाल की जन क्रांति ने इतिहास की रूसी जन क्रांति की याद दिला दी। 1917 में जार शासन के खिलाफ जनता ने विद्रोह कर जार शासको को मारकर सत्ता पर कब्जा जमा लिया था। रूस की जार क्रांति का नेतृत्व भीड़ कर रही थी। इस भीड़ का नेतृत्व लेनिन कर रहे थे। बाद में जनता ने उन्हें अपना नेता मान लिया। रूस की उस जन क्रांति के बाद रुस में कम्युनिस्ट विचारधारा की स्थापना हुई। सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले। दोनों ही घटनाओं में जनता ने अपने अ‎स्तित्व को बचाने सत्ता के केंद्रीकरण और जनता के बीच के असंतोष की झलक समान रूप से दिखाई देती है। भुखा-प्यासा आदमी अपने जीवन को बचाने के ‎लिये ‎किसी भी स्तर पर जा सकता है। इस भीड़ के सामने पु‎लिस और सेना ज्यादा देर ‎टिक नहीं पाती है। नेपाल का राजनीतिक परिदृश्य बीते दो दशकों से अस्थिरता से भरा है। राजशाही की समाप्ति के बाद से वहां लोकतंत्र मजबूत होने के बजाय दलगत स्वार्थ और गठबंधन की राजनीति और भ्रष्टाचार का शिकार होता चला गया। सत्ता के लिए बार-बार अनैतिक सत्ता प‎रिवर्तन, नेताओं के निजी स्वार्थ हितों को सर्वोपरि रखना नेपाल में अराजकता का कारण बना। नेपाली नेताओं ने जनता के हितों की उपेक्षा की। जनता बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के कारण परेशान होती रही। राजनेताओं ने जनता कि मूलभूत सुविधाओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। नेपाली नेता भ्रष्ट तरीके से कमाई कर रहे थे, अपने बच्चों को विदेश में पढ़ा रहे थे। उनके बच्चे और परिवार के लोग ऐश कर रहे थे, जनता भुखमरी और बदहाली का जीवन जी रही थी। रूस के जार शासन के समय जनता भूख से मर रही थी। शाही परिवार और उससे जुड़े हुए लोग एश्वर्य पूर्ण जीवन जी रहे थे, उसका प्रदर्शन कर रहे थे। भूख, गरीबी और शोषण ने जनता को सड़कों पर उतरने को मजबूर ‎किया। वहां की जनता भूख से इतनी प्रताड़ित थी कि उसने राज परिवार के हर सदस्य को महल में घुसकर मार डाला। जार शासको की सेना उन्हें नहीं बचा पाई। वही स्थिति वर्तमान में नेपाल की है। जब सरकार मैं बैठे लोग अपने आप को सर्वशक्तिमान मान लेते हैं, तब इस तरह की जन क्रांति सामने आती है। श्रीलंका, बाग्लादेश और नेपाल में हुए जन विद्रोह मैं एक सी समानता है। सत्ता से जुड़े हुए लोग जब जनता की उपेक्षा करते हैं। अपने जीवन को बचाए रखने के लिए भीड़ सड़कों पर आती है। लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास घटता है। ऐसी ‎स्थिति में असंतोष भीड़ तंत्र के रुप में देखने ‎मिलता है। दुनिया के देशों को लोकतांत्रिक व्यवस्था है। उन्हें श्रीलंका, नेपाल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सबक लेना होगा। लोकतांत्रिक देशों के नेताओं को चाहिए, वह दलगत हितों से ऊपर उठकर स्थिर शासन की ओर कदम बढ़ाएं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता ही सरकार बनाती है। नेपाल, श्रीलंका बांग्लादेश की सत्ता में बैठे हुए लोगों को जिस तरह से भीड़ ने उन्हें देश छोड़ने के लिए विवश किया है। इस तरह की घटनाओं से सभी देशों को सबक लेने की जरूरत है। वर्तमान युग में जब सारी दुनिया डिजिटल तकनीकी और संचार माध्यमों के कारण एक दूसरे से जुड़ चुकी है। ऐसी स्थिति में आम जनता ‎विशेष रुप से युवाओं को उपेक्षित करके नहीं रखा जा सकता है। रूस की जार क्रांति इतिहास में दर्ज है। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल वर्तमान राजनीति एवं जन क्रांति की सच्चाई रेखांकित करती है। जब सत्ता निरंकुश और अहंकारी हो जाए तो ऐसी स्थिति में जन विद्रोह स्वभा‎विक प्र‎ति‎क्रिया है। नियम-कानून, सेना-पुलिस जन ‎‎विद्रोह का मुकाबला नहीं कर सकती है। .../ 10 ‎सितम्बर /2025