अंतर्राष्ट्रीय
11-Sep-2025
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बोले-लिपुलेख, कालापानी जैसे मुद्दों से पीछे हट जाता है मुझे कई लाभ मिलते काठमांडू,(ईएमएस)। नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली कहां हैं? हर कोई यह जानना चाहता है। गुस्साए प्रदर्शकारियों ने उनके घर और संसद को आग के हवाले कर दिया था। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक ओली का इस्तीफा देश के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने मंजूर कर लिया है और कथित तौर पर उन्हें तब तक कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करने का काम भी सौंपा है। इस बीच खबर आई है कि उन्होंने तख्तापलट के बाद पहली बार ओपन लेटर लिखकर जेन-जेड को संबोधित किया है। इस इमोशनल लेटर में उन्होंने अपनी लोकेशन का भी जिक्र किया है। इस पत्र की हमारी संस्था स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं करती है। पत्र में उन्होंने भारत से सीमा विवाद के मुद्दे का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के हैं और अगर इस मुद्दे को न उठाया हो तो मुझे कई फायदे मिलते। पत्र में उन्होंने लिखा आज, शिवपुरी में नेपाल सेना के सैनिकों से घिरे एक सुरक्षित और अलग क्षेत्र में बैठकर, मैं आप सभी को याद कर रहा हूं। आपके चेहरे मेरे दिमाग में जीवंत रूप से हैं। जहां भी मैं जाता हूँ, छोटे बच्चों को देखता हूं, वे तुरंत मेरी बांहों में दौड़ आते हैं। उनकी मासूम हंसी, उनके छोटे-छोटे शरीर की गर्माहट, मुझे अपार खुशी देती हैं बच्चों के बीच रहना हमेशा मुझे उत्साह और संतुष्टि देता रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक ओली ने अपने पिता न बन पाने के दर्द को भी साझा किया है। उन्होंने लिखा कि शायद आप नहीं जानते, जब देश में शासन परिवर्तन की कठिन लड़ाइयां चल रही थीं, उस समय सरकार की ओर से किए गए अत्याचारों के कारण मैं अपने बच्चों का पिता नहीं बन सका। फिर भी पिता बनने की इच्छा मेरे अंदर कभी नहीं मरी। जब मुझे पता चला कि पुलिस की गोलियों ने मेरे बेटों और बेटियों की जान ले ली है, उसी दिन मेरी जिंदगी के कई हिस्से खत्म हो गए। उस दर्द के घाव आज भी ताजे हैं। फिर भी मैंने हमेशा विश्वास किया कि समाज में शांति बनी रहे। आप याद कर सकते हैं, जब मैं 1994 में गृह मंत्री था, मेरे कार्यकाल में एक भी गोली नहीं चली थी। मैंने हमेशा शांति का पक्ष लिया, क्योंकि मैंने खुद हिंसा की क्रूरता झेली है। नेपाल में हुए प्रदर्शन में भारी हिंसा देखी गई है, जिसे लेकर ओली ने कहा कि वह नहीं मानते कि बच्चों ने ये हिंसा की है। उन्होंने लिखा- आंदोलन के दूसरे दिन, चाहे वह कितना भी विनाशकारी क्यों न हो, मुझे पूरा विश्वास है कि ये कार्य आपके नाजुक हाथों से नहीं हुए। आपके मासूम चेहरे दिखाकर, आपके भावनाओं के साथ गंदी राजनीति करने की कोशिश की जा रही है। अपने पत्र में ओली ने कहा कि वह बेहद जिद्दी हैं। अगर यह जिद नहीं होती, तो मैं कठिनाइयों में बहुत पहले ही हार मान लेता। इसी जिद की वजह से मैंने सोशल मीडिया कंपनियों से कहा कि वे नेपाल के नियमों का पालन करें और यहां रजिस्टर हों। इसी जिद की वजह से मैंने घोषणा की कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के हैं। इसी जिद की वजह से मैंने शास्त्रों में बताए अनुसार कहा कि भगवान राम का जन्म भारत में नहीं बल्कि नेपाल में हुआ था। यदि मैं इन मतों से पीछे हट जाता, तो मुझे कई लाभ और अवसर मिल सकते थे। यदि मैंने लिम्पियाधुरा सहित नेपाल का संशोधित नक्शा संयुक्त राष्ट्र को नहीं भेजा होता, या किसी और को मुझे निर्देश देने दिया होता, तो मेरी जिंदगी का रास्ता अलग होता, लेकिन मैंने राज्य को अपनी सारी ताकत दे दी। मेरे लिए पद और प्रतिष्ठा कभी मायने नहीं रखते। उन्होंने आगे कहा कि चाहे मैं पद पर रहूं या नहीं, इससे मुझे कभी फर्क नहीं पड़ा। सबसे अहम है इस व्यवस्था की रक्षा करना। बता दें केपी ओली लगातार बॉर्डर को लेकर भारत से विवाद करते रहे हैं। वहीं 2020 में उन्होंने एक बयान में कहा था कि भगवान राम नेपाल में जन्मे थे। इसका भारत समेत नेपाल में विरोध हुआ था। उन्होंने नया नक्शा जारी किया था, जिसका भारत ने विरोध किया था। सिराज/ईएमएस 11सितंबर25