नई दिल्ली(ईएमएस)।ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट एक बार फिर विवादों के घेरे में है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार इस परियोजना को वनाधिकार कानून, 2006 के प्रावधानों को दरकिनार करते हुए आगे बढ़ा रही है। उल्लेखनीय है कि गत 18 अगस्त, 2022 को अंडमान एवं निकोबार प्रशासन जो सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है ने प्रमाणित किया था कि ग्रेट निकोबार परियोजना के लिए भूमि हस्तांतरण हेतु सभी व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकारों का निपटारा कर लिया गया है और प्रभावित समुदायों की सहमति प्राप्त कर ली गई है। लेकिन इस निर्णय को 18 दिसंबर, 2024 को कलकत्ता उच्च न्यायालय में पूर्व वरिष्ठ आईएएस अधिकारी मीना गुप्ता ने चुनौती दी। गुप्ता पहले केंद्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय में सचिव रह चुकी हैं। उनका कहना है कि यह प्रमाणन वनाधिकार कानून, 2006 के मूल प्रावधानों का उल्लंघन है और संसद द्वारा पारित कानून की गंभीर अवमानना है। सूत्रों ने बताया कि फरवरी, 2025 को जनजातीय कार्य मंत्रालय ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एक हलफ़नामा दाखिल कर स्वयं को इस मामले से हटाने का अनुरोध कर दिया, लेकिन 8 सितंबर, 2025 को मंत्रालय ने अचानक अंडमान एवं निकोबार प्रशासन से इस मामले पर विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी। इसमें विशेष रूप से लिटिल और ग्रेट निकोबार द्वीप के जनजातीय परिषद द्वारा उठाए गए मुद्दों और प्रशासन द्वारा कानून की अनदेखी पर जवाब तलब किया गया। कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष और सांसद जयराम रमेश का कहना है कि यह मंत्रालय की दुविधापूर्ण और विरोधाभासी भूमिका को दिखाता है। इस परियोजना को दी गई पर्यावरणीय स्वीकृति को भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई है। सूत्रों में बताया कि इसके बावजूद अंडमान एवं निकोबार आइलैंड्स इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने परियोजना क्षेत्र में पेड़ों की गणना, कटाई और ढुलाई के लिए इच्छुक कंपनियों से प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं। जमीन पर परियोजना क्षेत्र का सीमा-चिह्नन भी शुरू हो चुका है। इस परियोजना का सबसे संवेदनशील हिस्सा गैलेथिया खाड़ी है, जिसे पहले ही एक प्रमुख बंदरगाह क्षेत्र घोषित किया जा चुका है।विशेषज्ञों का कहना है कि यह क्षेत्र न केवल जैवविविधता और दुर्लभ प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यहाँ की आदिवासी आबादी के जीवन और संस्कृति पर भी गंभीर असर डालेगा।आरोप है कि केंद्र सरकार इस पूरे मुद्दे में वनाधिकार कानून, 2006 और पर्यावरणीय मानकों की खुलेआम अनदेखी कर रही है। जयराम रमेश ने कहा है कि उन्होंने इस मुद्दे पर पहले भी कई बार पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री को पत्र लिखकर चेतावनी दी है। लेकिन मोदी सरकार “इकोलॉजिकल डिजास्टर” साबित होने वाली इस परियोजना को किसी भी कीमत पर आगे बढ़ाने पर आमादा है। वीरेंद्र/ईएमएस/15सितंबर2025