बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले में एक अहम टिप्पणी की मुंबई (ईएमएस)। महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 में हुए विस्फोट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी कर कहा है कि किसी भी आरोपी के बरी होने के फैसले के खिलाफ हर कोई अपील नहीं कर सकता। अपील दायर करने का अधिकार केवल उन्हीं लोगों को है जो मामले की सुनवाई के दौरान गवाह रहे हों या सीधे तौर पर पीड़ित पक्ष से जुड़े हों। मालेगांव ब्लास्ट में मारे गए 6 लोगों के परिवारों ने विशेष एनआईए अदालत के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें सभी सात आरोपियों को बरी किया था। परिवारों का कहना है कि यह फैसला कानून के खिलाफ है और फैसले को रद्द किया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपील करने वालों से पूछा कि क्या वे ट्रायल के दौरान गवाह थे। अदालत ने विशेष रूप से निसार अहमद के मामले का जिक्र किया, जिनके बेटे की मौत इस धमाके में हुई थी। उनके वकील ने बताया कि निसार अहमद गवाह नहीं थे, जिस पर कोर्ट ने कहा कि अगर उनके बेटे की मौत हुई थी, तब उन्हें गवाह होना चाहिए था। मामले में पीड़ित परिवारों का आरोप है कि जांच एजेंसियों की खामियों या कमियों को आरोपियों को बरी करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। उनका कहना है कि जब मामला एनआईए को सौंपा गया, तब एजेंसी ने आरोपियों पर लगे गंभीर आरोपों को कमजोर कर दिया। अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट को केवल मूक दर्शक नहीं बने रहना चाहिए था। मामले पर बुधवार को दोबारा सुनवाई होगी। मालेगांव विस्फोट 29 सितंबर, 2008 की शाम को हुआ था, जब महाराष्ट्र के नासिक जिले के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहर मालेगांव में भिक्कू चौक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे बम में विस्फोट हुआ था। रमजान के दौरान और नवरात्रि से कुछ दिन पहले हुए इस हमले में छह लोग मारे गए थे और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। आशीष दुबे / 16 सिंतबर 2025