-आज राजनेता लोकप्रियता पाने भड़काऊ या विवादित बयान देने से भी नहीं चूकते नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत समेत दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक बहस का स्तर गिरता जा रहा है। जहां कभी विचारधारा, नीतियों और जनहित के मुद्दों पर चर्चाएं होती थीं, वहीं आज व्यक्तिगत हमले, अपशब्दों का प्रयोग और आपसी कटाक्ष सामान्य बात हो गई है। यह प्रवृत्ति केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और एशिया के अन्य देशों में भी राजनीतिक संवाद की मर्यादा टूटती नजर आ रही है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया ने इस गिरावट को और तेज कर दिया है। पहले नेताओं की बहस और वक्तव्य संसद या सभाओं तक सीमित थे, लेकिन आज हर बयान तुरंत वायरल हो जाता है। इसके चलते राजनेता लोकप्रियता पाने के लिए अक्सर भड़काऊ या विवादित बयान देने से भी नहीं चूकते। जनता का ध्यान गंभीर मुद्दों से हटाकर भावनात्मक विषयों पर केंद्रित करना अब इन नेताओं की एक रणनीति बन गई है। भारत में भी संसदीय कार्यवाही के दौरान शालीनता और मर्यादा की परंपरा क्षीण होती नजर आ रही है। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच स्वस्थ बहस की जगह आरोप-प्रत्यारोप और व्यक्तिगत कटाक्ष देखने को मिलते हैं। यह स्थिति लोकतंत्र की उस बुनियादी भावना के विपरीत है जिसमें मतभेदों को संवाद और तर्क से सुलझाने की अपेक्षा की जाती है। वहीं अमेरिका में भी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान डिबेट्स में अपशब्दों का इस्तेमाल, प्रतिद्वंद्वी की निजी जिंदगी पर टिप्पणी और नीतिगत सवालों से बचने की प्रवृत्ति देखने को मिली है। इसी तरह ब्रिटेन में ब्रेग्ज़िट के समय हुई बहसों ने भी यह दिखाया कि राजनीतिक संवाद किस तरह समाज में ध्रुवीकरण बढ़ा सकता है। फ्रांस और जर्मनी में भी चुनावी बहसें अक्सर कटाक्षों और भावनात्मक मुद्दों तक सीमित रह जाती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह रुझान लोकतंत्रों के लिए खतरनाक संकेत है, क्योंकि इससे जनता का भरोसा घटता है और संस्थाओं की विश्वसनीयता कमजोर होती है। नैतिकता और मर्यादा केवल नेताओं के व्यक्तिगत गुण नहीं हैं, बल्कि लोकतांत्रिक ढांचे की मजबूती के लिए जरूरी आधार है। यदि राजनीतिक बहस का स्तर इसी तरह गिरता रहा तो आम नागरिक नीतिगत मुद्दों से दूर होते जाएंगे और लोकतंत्र केवल चुनाव जीतने की जंग तक सिमटकर रह जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या राजनीतिक दल और उनके नेता इस गिरावट को रोकने के लिए आत्ममंथन करेंगे? समाधान इसमें है कि बहस को मुद्दों पर केंद्रित किया जाए, व्यक्तिगत कटाक्षों से बचा जाए और जनता को सार्थक विकल्प दिए जाएं। तभी राजनीतिक संवाद का स्तर सुधर सकेगा और लोकतंत्र की असली ताकत सामने आ पाएगी। सिराज/ईएमएस 17 सितंबर 2025