नई दिल्ली(ईएमएस)। यूएन की सुरक्षा परिषद की बैठक में पाकिस्तान को इजरायल ने आतंकवाद को लेकर जिस तरह सुनाया है, वो 1980 के दशक की याद दिला रहा है। ये वो दौर था, जब इजरायल ने भारत को ऑफर दिया था कि वो चाहे, तो पाकिस्तान पर वो बम गिराकर कहानी ही खत्म कर सकता है। तत्कालीन इंदिरा सरकार ने काफी हद तक इस ऑफर पर विचार किया था और इसे मान भी लेती लेकिन अंतिम समय पर वो अंतरराष्ट्रीय दबाव में आ गई। एड्रियन लेवी और कैथरीन स्कॉट-क्लार्क की लिखी किताब डिसेप्शन में इस बात का जिक्र किया गया है। 1980 के दशक की शुरुआत में इजरायल ने पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को खतरे के रूप में देखा। ये ठीक वैसा ही था, जैसा इजरायल, ईरान को लेकर स्टैंड लेता है। ऐसे में इजरायल की ओर से भारत को 1984 में एक ज्वाइंट ऑपरेशन का प्रस्ताव दिया गया। योजना कुछ इस तरह थी कि इजरायल के एफ-16 और एफ -15 फाइटर जेट्स भारत के जामनगर एयरबेस से रिफ्यूलिंग कर उड़ेंगे और पाकिस्तान के काहुटा न्यूक्लियर सेंटर पर बमबारी कर इसे उड़ा देंगे। भारतीय जगुआर विमान इसमें उसकी सहायता करेंगे। तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी पहले इसके लिए राजी भी हुई थीं लेकिन बाद में अंतररराष्ट्रीय दबाव, खासकर अमेरिका और पाकिस्तान के साथ चौथे युद्ध की आशंका से पीछे हट गईं। इजरायल चाहता था कि वो 1981 में जैसे इराक के ओसिरक न्यूक्लियर रिएक्टर पर हमला करके आया था, वैसे ही पाकिस्तान में भी करे। उस वक्त भारत के पीछे हटने के बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और उनके बेटे राजीव गांधी ने पीएम का पद संभाला। फिर ये योजना पूरी तरह ठंडे बस्ते में चली गई। ऐसा नहीं है कि इजरायल ने पहली बार पाकिस्तान के आतंकियों को समर्थन देने की बात उठाई है। पाकिस्तान के कुख्यात तानाशाह जिया उल हक के नेतृत्व में वहां चल रहे न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर उसने कई बार अंतरराष्ट्रीय ताकतों को आगाह किया था। 1979 में इसे लेकर उसने ब्रिटिश पीएम मारग्रेट थैचर को चिट्ठी भी लिखी थी। इसके बाद उसने भारत को ये ऑफर दिया था लेकिन भारत में आंतरिक अशांति की वजह से वो युद्ध नहीं चाहता था। इसके अलावा पाकिस्तान को अफगानिस्तान के खिलाफ अमेरिका का समर्थन मिल रहा था और अमेरिका अपने एफ-16 एयरक्राफ्ट भी उसे दे रहा था। ऐसे में भारत को उस वक्त पीछे हटना ही बेहतर लगा। वीरेंद्र/ईएमएस 17 सितंबर 2025