भारत में आम आदमी भारी टैक्स देने को मजबूर है। जबकि बड़े-बडे उद्योगपतियों को बिना टैक्स दिए करोड़ों रुपए की कमाई और काली कमाई को सफेद करने के लिए नियमों में संशोधन कर विशेष अवसर मिल रहा है। सरकार ऐसी नीतियाँ बना रही है, जो सीधे तौर पर अमीरों को फायदा पहुंचा रही हैं। जबकि देश के गरीब से गरीब नागरिकों से भारी टैक्स वसूल किया जा रहा है। गरीब और मध्यम वर्ग टैक्स के कारण अपने बच्चों को पोषण आहार भी नहीं दे पा रहा है वहीं शिक्षा देने के लिए उसके पास पैसे नहीं रहते हैं। गरीब एवं मध्यम वर्ग परिवारों को आर्थिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ रही हैं। वहीं अमीर बिना कोई टैक्स दिए हर साल करोड़ों-अरबों रुपए सरकार की टैक्स नीति के कारण यहां कमाई कर रहे और विदेश में निवेश कर रहे हैं। अमीरों के लिए सरकार की दो योजनाएं सरकारी खजाने के लिए सबसे खतरनाक साबित हो रही हैं। एक योजना, जीएआर (जनरल एंटी अवॉयडेंस रूल) और दूसरी गिफ्ट सिटी (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी) योजना है। इन दोनों योजनाओं में बड़े-बड़े उद्योगपति और कारोबारी करोड़ों तथा अरबो रुपए की कमाई कर रहे हैं। वहीं सरकार को टैक्स के रूप में 1 रुपये भी नहीं दे रहे हैं। जीएआर के माध्यम से सरकार ने अल्टीमेट बेनिफिशरी ओनर (अंतिम लाभार्थी मालिक) का खुलासा करने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि बड़े उद्योगपति अपने निवेश के असली स्रोत को छुपाकर बड़ी आसानी से काला धन सफेद कर रहे हैं। पहले काले धन को संभालना मुश्किल होता था, लेकिन अब काला धन सफेद धन में परिवर्तित हो रहा है तथा इससे लगातार कमाई भी हो रही है। उदाहरण स्वरूप, अडानी समूह और चंदा कोचर के मामले में इस कानून के माध्यम से इसी तरह से लेन-देन किया गया। इससे साफ है, कि कानून के सहारे बड़े उद्योगपति बिना टैक्स चुकाए अरबों रुपये का लाभ कमा रहे हैं। दूसरी योजना, गिफ्ट सिटी, एक विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में कार्य करती है। यहाँ पर विदेशी निवेशकों और कंपनियों को ऐसा वातावरण दिया गया है, जहाँ वे 10 वर्षों तक पूरी तरह से टैक्स फ्री होकर व्यवसाय कर सकते हैं। जीएसटी, स्टैम्प ड्यूटी, सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स आदि में छूट मिलती है। इस सिस्टम में कंपनियों को बस एक ऑफिस खोलना होता है। बिना कोई व्यापारिक गतिविधि किए भारी निवेश करना शुरू कर देते हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि रोजगार सृजन के बजाय, केवल टैक्स बचाने के लिए यह पैसा घुमाया जाता है। विदेश से जो धन भारत से भेजा गया था वही धन भारत लौटकर आ जाता है। सरकार को टैक्स का लाभ नहीं मिलता है। वही कोई कारोबार ना होने से युवाओं को रोजगार और नौकरी भी नहीं मिलती है। सरकार ने केवाईसी नियमों मे भी ढील दी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि धनशोधन आसानी से होता रहे। मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के स्थान पर अब इन दो कानूनों के कारण बिना टैक्स दिए करोड़ों रुपए का अवैध रूप से लेनदेन हो रहा है। विदेशी निवेश के नाम पर जो पैसा टैक्स हेवन देशों में जाता है उसका उद्देश्य केवल कर बचाना होता है, नाकि वास्तविक निवेश के रूप में होता है। सरकार ने बड़े-बड़े अमीरों को टैक्स न देना पड़े शायद इसी के लिए योजना बनाई है। भारत में टैक्स के लिए गरीबों एवं मध्यम वर्ग के लिए अलग कानून है, बड़े-बड़े धन्ना-सेठ और कारोबारियों के लिए अलग कानून है। सरकार पिछले कुछ वर्षों से मनी बिल के तहत समय-समय पर नियमों मे बदलाव कर देती है। जो नए नियम बनाकर लागू किये गए हैं, वे संसद में पेश भी नहीं हुए। एडमिनिस्ट्रेटिव आर्डर के जरिए नियमों में बदलाव किया गया है। इस असमान व्यवस्था का सीधा असर सरकार के खजाने पर पड़ रहा है। आम जनता से सैकड़ों किस्म के टैक्स और शुल्क वसूल किए जाते हैं। टैक्स एवं शुल्क के आतंक से आम जनता परेशान है। वहीं बड़े कारोबारी उद्योगपति और भ्रष्ट कमाई वाले टैक्स-फ्री होकर भी रोजाना काले और सफेद धन को दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ा रहे हैं। भारत का पैसा विदेशों में ले जाकर निवेश कर रहे हैं। भारत में जो अरबपति हैं उनके परिवार के कई लोग विदेश में जाकर नागरिकता ले रहे हैं। भारत की पूंजी को विदेश में निवेश कर रहे हैं। अब समय आ गया है, इन भ्रष्ट और अनियमित अनैतिक योजनाओं पर गंभीरता से विचार किया जाए। देश के विकास का लाभ तथा सभी वर्गों के लिए एक समान टैक्सेशन हो। समाज के सभी वर्गों तक सरकार के नियम कानून और सरकारी खजाने का लाभ हर नागरिक तक समान रूप से पहुंचे इस दिशा में काम करने की जरूरत है। संविधान इस तरह से अलग-अलग कानून बनाने की अनुमति भी नहीं देता है। न्यायपालिका की चुप्पी और अनदेखी की अब खुलेआम आलोचना भी होने लगी है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों को इस मामले में गंभीरता के साथ विचार करते हुए अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी। पिछले एक दशक में जिस तरीके से गरीबों और अमीरों के बीच में असमानता बढ़ रही है, भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, घोटाले दर घोटाले हो रहे हैं। उन सब पर रोक लगाने की जरूरत है। ना कि उन्हें संरक्षण देने की। उपरोक्त दोनों कानून को तुरंत समाप्त किए जाने की जरूरत है। ताकि भ्रष्टाचार और आर्थिक घोटालों पर रोक लग सके। एसजे/ 17 सितम्बर /2025