सनातन आध्यात्म की परम्परा एवं संस्कृति पर आक्षेपों का उन्मूलन एवं संदेह निवारण करने वाले ग्रंथ क्यों? के अध्ययन उपरांत विषयवस्तु के उद्देश्य की मीमांसा करने की जिज्ञासा मुझे सदैव उचित एवम् सुखद अनुभूति प्रदान करती है। संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियों की यह युक्ति संघे शक्ति: कलौ युगे शाश्वत है । कलयुग में एकता ही सर्वोपरि बल है । यह तथ्य भी युक्तियुक्त एवम् पुष्टिकारक है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य समूह में ही रहकर स्वस्थ्य एवम् प्रफुल्लित होता है । संस्कृत का यह वाक्यांश वसुदेव कुटुंबकम अर्थात सम्पूर्ण धरती या विश्व एक परिवार है। मनुष्यों में सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं (मर्यादाओं) से परे आपस में संबंध हैं । प्राचीन भारतीय महा उपनिषद में इस अवधारणा के मुख्य बिंदु हैं- सार्वभौमिक एकता,सहानुभूति एवं साझा उत्तरदायित्व । इससे उपजी वैश्विक सहयोग, सांस्कृतिक आदान,प्रदान एवं दार्शनिक एकीकरण की अवधारणा भारतीय दर्शन का एक मूलभूत मंत्र है । भारत द्वारा G–20 में की गई अध्यक्षता का विषय एक पृथ्वी,एक परिवार,एक भविष्य इसी अवधारणा की परिणीति है । महात्मा बुद्ध ने अधिकाधिक लोगों के कल्याण एवं सुखों के लिए अपने शिष्यों को बहुजन सुखाय,बहुजन हिताय का सूत्र दिया था जो यह सामुदायिक उत्थान की भावना को इंगित करता है । इस सूत्र को स्वामी विवेकानंद एवं श्री अरविंदो जैसे महामानवों ने भी पोषित किया था । मध्य प्रदेश को भौगोलिक सौभाग्यवश 207 नदियों की पवित्र उद्गम भूमि होने के कारण नदियों का मायका भी कहा जाता है । पुण्य सलीला माँ नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक जिला अनूपपुर ( म.प्र.) है,जो विंध्य एवं सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के पूर्वी संधि स्थल नर्मदाकुण्ड,मैकाल पर्वतमाला पर स्थित है । जहां उद्गम एवम् संधि होती है,वहां अपार ऊर्जा होती है एवम् जहाँ संगम होता है,वहाँ जीवन की संभावना प्रबल होती है,भले ही ऐसा संगम या मिलन नदियों, पर्वतों,स्त्री-पुरुष के अतिरिक्त मनुष्यों के संगठन के रूप में ही हो । संदर्भ है विगत सप्ताह जबलपुर में गठित सेवानिवृत्त राजपत्रित पुलिस अधिकारियों का धनात्मक एवं सकारात्मक संगठन । जिसमें मध्यप्रदेश के महाकौशल,विंध्य,बुंदेलखंड एवं बघेलखंड क्षेत्र के 26 जिले सम्मिलित किये गये हैं । संगठन की सदस्यता हेतु संपूर्ण मध्य प्रदेश के पुलिस विभाग की विभिन्न शाखाओं व अनुसचिवीय बल से सेवानिवृत राजपत्रित अधिकारियों को पात्रता होगी । मध्यप्रदेश में निवासरत केंद्रीय बल के सेवानिवृत राजपत्रित अधिकारियों का भी इस संगठन में सदस्यता हेतु स्वागत होगा । यक्ष प्रश्न यह है कि संगठनों की आवश्यकता क्यों होती है ? संगठन समाज की एक आवश्यक इकाई ही नहीं अपितु रीढ़ होती है। व्यक्तियों का यह समूह,सामूहिक शक्ति एवं सामूहिक संकल्प का प्रतीक है । इस संगठन का उद्देश्य सेवानिवृत पुलिस अधिकारी एवं उनके परिवार जनों को संबल प्रदान करना,उनके सामान्य व वैधानिक हितों का संरक्षण करना,उनकी उपयुक्त समस्याओं का समाधान करना,उन्हें विभाग एवं शासन-प्रशासन द्वारा अधिकृत मूलभूत सुविधाओं का लाभ उपलब्ध करवाना,पुलिस परिवारों से संबंधित कल्याणकारी गतिविधियों का क्रियान्वयन करना,निरंतर सामूहिक विमर्श कर सभी के उत्तम स्वास्थ्य एवं तनाव मुक्ति का प्रबंधन करना होगा । संगठन में परिक्रमा को नहीं अपितु पराक्रम को वरियता प्रदान की जावेगी । पुलिस के सेवा निवृत्त अधिकारियों ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष देशभक्ति,जन सेवा के लिये समर्पित कर दिये।अपनी व्यस्थता के चलते वे सभी त्यौहारों,मेलों, मनोरंजन स्थलों,परिवार,रिश्ते नातेदारों के वैवाहिक कार्यक्रमों एवम् समाज के महत्वपूर्ण आयोजनों से वंचित रह गये एवं गर्व सहित स्वेच्छा से अपने जीवन के इस स्वर्णिम दीर्घ काल की समाज व शासन की एकनिष्ठ सेवा यज्ञ मे आहूती दे दी। ऐसे साथियों को एकाकीपन एवं अवसादग्रस्त होने से रक्षित, उपचारित व उन्मुक्त करना संगठन का सर्वोपरि लक्ष्य होगा। यह संगठन समाधान कारक, निर्मोहम,निरहंकारम होगा। हम ऐसा शून्य है जो रिक्ति नहीं अपितु पूर्णता का प्रतीक है । जहाँ देने-लेने का हिसाब बराबर हो जाता है,। जहाँ न अपेक्षा शेष होती है,न मोह,न आकांक्षा। शून्य की तो प्रकृति ही है कि जिस संख्या के आगे लगे उसे 10 गुना कर दे व जिससे गुणित हो जाए उसे अपने में समाकर शून्य कर दे। जीवन के इस पड़ाव पर स्वभाव सूर्य जैसा हो जाये कि- न उगने का अभिमान,न डूबने का गम। मनुष्य को चींटी,हाथी,गिलहरी एवं अन्य थलचर,जलचर,नभचर प्राणियों के अनेकानेक उदाहरणों का स्मरण कर यह भ्रम मिटाना होगा कि हम ईश्वर की एकमात्र बुद्धिमान कृति ( रचना ) हैं । वरिष्ठ नागरिक,पारिवारिक सामाजिक एवं संगठनात्मक ढांचे में सदैव मार्शमैलो टेस्ट (1960s)- के परीक्षण मानदंड यथा आत्मनियंत्रण,आवेग पर नियंत्रण,देरी से सुख स्वीकार करने की क्षमता में तो उत्तीर्ण रहते हैं किंतु मिसिंग टाइल्स सिंड्रोम की कसौटी पर यदा- कदा चिन्हित भी कर लिए जाते हैं । अतएव संगठन को सतर्क होकर मांग पत्र की राजनीति से यथोचित दूरी बनाए रखना होगा । शिकायतें तो बहुत हैं इंसान की फ़ितरत में । कल बारिश से परेशान था, आज धूप से है .... संगठन के सामूहिक आचरण में अनुशासन,उत्तरदायित्व,उचित समय पर उचित तर्क,संतुलित व्यवहार की महती भूमिका है । शासकीय संसाधन सीमित है । सदैव मांगते रहने से शासन एवं संगठन के मध्य संतुलन एवं सहयोग की भावना समाप्त हो जाती है । संगठन तभी सम्मान पाते हैं जब मानवता के विकास में योगदान प्रदान करने की भावना को धारयति इति धर्म:की भांति आत्मसात कर लेते हैं । हमारा यह संगठन सशक्त बनेगा,उत्तरोत्तर श्रेष्ठ होकर अभिनव आयाम स्थापित करेगा,इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है। तनाव,अवसाद, अभाव,रिक्तता से स्वच्छंद होकर उल्लास,प्रसन्नता,पूर्णता,की प्राप्ति करना एवम् भूले-बिसरे रिश्तों को जीवंतता प्रदान करना ही हमारा परम ध्येय होगा । मसरूफियत के दौर में खबर ही नहीं हुई । उठकर बड़े करीब से कुछ रिश्ते चले गये ।। पं.नरेश शर्मा /ईएमएस/24सितंबर2025