नई दिल्ली,(ईएमएस)। सोनिया गांधी ने गुरुवार को फिलीस्तीन के मुद्दे पर केंद्र सरकार के रुख की आलोचना की और कहा कि अब भारत को नेतृत्व का परिचय देना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि इस मुद्दे पर सरकार की प्रतिक्रिया और ‘गहरी चुप्पी’ मानवता एवं नैतिकता, दोनों का परित्याग है। सोनिया गांधी ने अंग्रेजी अखबार में छपे लेख में कहा कि सरकार के कदम मुख्य रूप से भारत के संवैधानिक मूल्यों या उसके सामरिक हितों के बजाय इजराइली पीएम नेतन्याहू और पीएम मोदी की व्यक्तिगत मित्रता से प्रेरित प्रतीत होते हैं। सोनिया ने कहा कि व्यक्तिगत कूटनीति की यह शैली कभी भी स्वीकार्य नहीं है और यह भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक नहीं हो सकती। दुनिया के अन्य हिस्सों में खासकर अमेरिका में ऐसा करने के प्रयास हाल के महीनों में सबसे दुखद और अपमानजनक तरीके से विफल हुए हैं। सोनिया गांधी ने इजराइल-फिलीस्तीन संघर्ष पर पिछले कुछ महीनों में तीसरी बार लेख लिखा है, जिनमें उन्होंने हर बार इस मुद्दे पर मोदी सरकार के रुख की तीखी आलोचना की । सोनिया गांधी ने लेख में कहा कि फ्रांस, फिलीस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने में ब्रिटेन, कनाडा, पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया के साथ शामिल हो गया है। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 150 से ज्यादा देशों ने फिलीस्तीन को मान्यता दे दी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत इस मामले में अग्रणी रहा है, जिसने फिलीस्तीन मुक्ति संगठन को सालों के समर्थन के बाद 18 नवंबर, 1988 को औपचारिक रूप से फलस्तीनी राष्ट्र को मान्यता दी थी। सोनिया गांधी ने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे भारत ने आजादी से पहले ही दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का मुद्दा उठाया था और अल्जीरियाई स्वतंत्रता संग्राम (1954-62) के दौरान, भारत एक स्वतंत्र अल्जीरिया के लिए सबसे मजबूत आवाजों में से एक था। उन्होंने बताया कि 1971 में भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार को रोकने के लिए दृढ़ता से हस्तक्षेप किया था, जिससे आधुनिक बांग्लादेश का जन्म हुआ। सोनिया गांधी ने कहा कि इजराइल-फलस्तीन के महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर भी, भारत ने लंबे समय से एक संवेदनशील, लेकिन सैद्धांतिक रुख अपनाया है और शांति एवं मानवाधिकारों की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया है। सिराज/ईएमएस 25सितंबर25