ज़रा हटके
27-Sep-2025
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लदन (ईएमएस)। सितंबर से दिसंबर के बीच मौसम में बदलाव के साथ पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं। मौसम बदलने का असर इंसानी मनोभावों पर भी देखने को मिलता है। शरद ऋतु का आगमन गर्मी से सर्दी की ओर बढ़ने का संकेत देता है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि इस दौरान कई लोगों के मूड पर नकारात्मक असर पड़ता है। दिन छोटे और रातें लंबी होने के साथ ही थकान, नींद की गड़बड़ी और उदासी महसूस होना आम हो जाता है। इस स्थिति को विज्ञान की भाषा में सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) कहा जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, मौसम बदलने पर धूप की कमी से दिमाग में सेरोटोनिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर घटने लगता है। यह हार्मोन मूड को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाता है। वहीं अंधेरा और ठंड बढ़ने पर शरीर में मेलाटोनिन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे नींद अधिक आती है और ऊर्जा घट जाती है। इस बदलाव से शरीर की सर्केडियन रिद्म भी बिगड़ जाती है, जिससे नींद और जागने का प्राकृतिक पैटर्न प्रभावित होता है। अध्ययन बताते हैं कि उत्तरी और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों पर सैड का प्रभाव अधिक होता है क्योंकि वहां धूप का समय सीमित होता है। महिलाओं और 18 से 30 वर्ष के युवाओं में इसके मामले ज्यादा पाए जाते हैं। एक अध्ययन में खुलासा हुआ था कि अर्बन इंडिया में 12 से 15 प्रतिशत लोग हल्के या गंभीर मौसमी डिप्रेशन का सामना करते हैं। इसके लक्षण पहचानना अपेक्षाकृत आसान है। लगातार थकान रहना, अधिक नींद आना, उदासी और चिड़चिड़ापन, काम में रुचि कम होना, ज्यादा मीठा और कार्बोहाइड्रेट खाने की इच्छा, तथा सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाना सैड के प्रमुख संकेत माने जाते हैं। कई देशों में लाइट थेरेपी का उपयोग किया जाता है, जिसमें विशेष लाइट बॉक्स का इस्तेमाल प्राकृतिक धूप जैसी रोशनी देने के लिए किया जाता है। संतुलित आहार और नियमित व्यायाम भी इस समस्या को कम कर सकते हैं। ताजे फल-सब्जियां और ओमेगा-3 युक्त भोजन मूड को बेहतर बनाने में मददगार हैं। यदि लक्षण लगातार बने रहें तो मनोचिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बचाव के लिए कुछ साधारण उपाय कारगर साबित हो सकते हैं। रोजाना कम से कम 20 से 30 मिनट धूप में समय बिताना सबसे प्रभावी तरीका है। सुदामा/ईएमएस 27 सितंबर 2025