लेख
07-Oct-2025
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बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही एक बार फिर ओपिनियन पोल का बाजार गर्म हो गया है। जैसे ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने तारीखों की घोषणा की, कुछ ही घंटों में प्रमुख चैनलों पर “एनडीए की बंपर जीत” के दावे चलने लगे। सवाल यह है, आखिर ये सर्वे इतने जल्दी कैसे तैयार हो जाते हैं? क्या सचमुच ग्राउंड पर इतने पुख्ता आंकड़े इकट्ठे हो जाते हैं या फिर यह सब एक “पूर्व नियोजित स्क्रिप्ट” का हिस्सा होता है? बीते वर्षों में देश के मतदाताओं ने देखा है, ओपिनियन पोल किस तरह एक राजनीतिक औज़ार के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं। चैनलों पर दिखने वाले “एनडीए 400 पार” जैसे नारे सिर्फ आंकड़े नहीं होते, बल्कि मतदाताओं की मानसिकता को मन माफिक चुनाव परिणाम पाने के लिए तैयार करने वाले होते हैं। इसका सीधा असर उन वोटरों पर पड़ता है, जो आखिरी समय तक निर्णय नहीं ले पाते हैं। जब मीडिया यह माहौल बना देता है, फला-फला की लहर चल रही है। तो कई बार आम मतदाता उसी दिशा में झुक जाता है। यही ओपिनियन पोल का असली खेल है। जनता का नहीं, बल्कि इसे चुनाव जीतने के प्रबंधन के रूप में देखा जाना चाहिए। इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है। बिहार में जब नीतीश कुमार की साख पर सवाल उठ रहे हैं। जब युवाओं और महिलाओं में आक्रोश दिखाई दे रहा है। तब चैनलों पर दिखाया जा रहा है, एनडीए एकतरफा बढ़त बनाए हुए है। इसके लिए एक करोड़ महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये दिए जाने को जीत के रूप में बताया जा रहा है। यह विसंगति बताती है, ग्राउंड की हकीकत और स्टूडियो की कहानी में बहुत बड़ा फर्क है। अब ओपिनियन पोल केवल सर्वे नहीं रहे, ये अरबों रुपए के “नैरेटिव मार्केट” का हिस्सा बन चुके हैं। जैसे शेयर बाजार में अफवाहों पर निवेश होता है, वैसे ही राजनीतिक बाजार में इन पोल्स पर सट्टा चलता है। बड़े-बड़े उद्योग समूह और कॉरपोरेट हाउस चैनलों को फंड करते हैं। उन्हें पता होता है, कौन-सी खबर चलाने से किसे लाभ होगा। मीडिया की यह भूमिका बेहद चिंताजनक है। लोकतंत्र में मीडिया का दायित्व जनता को सूचना देना, सवाल उठाना और सत्ता को जवाबदेह बनाना है। नाकि सत्ता के पक्ष में माहौल बनाना है। जब मीडिया जनता के बजाय सत्ताधारियों के लिए काम करने लगे। तब लोकतंत्र कमजोर पड़ता है। पिछले कुछ महीनो में जिस तरह से चुनाव आयोग की गड़बड़ियों को उजागर किया गया है। एक राज्य का मतदाता दूसरे राज्य में भेज दिया जाता है। मतदान होने के कई दिनों तक लगातार मतदाताओं के परसेंटेज घटाए और बढाये जाते हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम की गड़बड़ियां सामने आ चुकी है। उसके बाद वोट चोर गद्दी छोड़ जैसे आंदोलन शुरू हो गए हैं। चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। जो चुनाव परिणाम आए हैं उनमें किस तरह की गड़बड़ी हुई है यह उजागर हो चुका है। ऐसे में ओपिनियन पोल के जरिए परिणाम पर लोगों को विश्वास हो जाए इसके लिए भी ओपिनियन पोल सत्ता पक्ष के लिए बड़े कारगर साबित हो रहे हैं। बिहार के मतदाताओं को यह समझना होगा, टीवी स्क्रीन पर दिखाया जाने वाला हर आंकड़ा सच्चाई नहीं होता। असली ओपिनियन पोल तो गांवों, कस्बों और गलियों में होता है। जहां जनता अपने अनुभव से वोट डालती है। बिहार के विधानसभा चुनाव में अभी से यह ओपिनियन बनाया जाने लगा है कि सरकार द्वारा जो 10000 रुपये महिलाओं के खाते में डाले गए हैं चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद भी यह मतदाताओं के खाते में डलते रहेंगे। महिलाओं का समर्थन एनडीए के पक्ष में जा रहा है। इसलिए बिहार विधानसभा के चुनाव में एनडीए भारी बहुमत से जीतेगी इसका काम टेलीविजन चैनलों द्वारा ओपिनियन पोल के जरिए शुरू कर दिया गया है। सरकारी पैसा है और सरकार द्वारा वोट पाने के लिए चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए यह रेवड़ी बांटी जा रही है। जो चुनाव आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन है। चुनाव आयोग ने चुप्पी-साध रखी है। एसआईआर को लेकर इतना विरोध हो रहा है। चुनाव आयोग विधानसभा और लोकसभा के आंकड़े उपलब्ध नहीं करा रहा है। बड़ी संख्या में लोगों के नाम काट दिए गए हैं। लोग आंदोलित हैं। इसके बाद भी कथित ओपिनियन पोल वाले टीवी चैनलों के आंकड़ों पर बड़ी जीत बताई जा रही है, जिस पर लोगों को हैरानी हो रही है। ओपिनियन पोल का खेल जारी है। असली जनादेश जनता के पास है। विपक्ष ने किस तरह से चुनाव आयोग को बेनकाब किया है। विपक्षी दल चुनाव के दौरान कैसे गड़बड़ियों को रोक पाते हैं, यह विपक्षी दलों पर निर्भर करेगा। पहली बार बहुत कम समय पर दो चरणों में बिहार विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है। जिस तरह से भाजपा और एनडीए गठबंधन ने ओपिनियन पोल के माध्यम से हवा बनाना शुरू कर दिया है। उस पर मतदाता विश्वास करेंगे या नहीं यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता लगेगा। चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर जो लोगों के मन में संशय पैदा हो चुका है, लाखों ऐसे लोगों के वोट काटे गए हैं जो किसी धर्म विशेष के हैं। जिंदा लोगों को भी मृत बताकर मतदाता सूची से उनका नाम हटाया गया है। इसे लेकर विपक्ष और आम जनता आक्रामक मुद्रा में है। ऐसी स्थिति में बिहार के विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के पूर्व और पश्चात क्या होगा, कहना मुश्किल है। ओपिनियन पोल का खेल मध्य प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र में सफलतापूर्वक खेला जा चुका है। बिहार में भी यही खेला होने जा रहा है। उस समय तक विपक्ष और आम जनता को यह पता नहीं था कि यह चुनाव परिणाम किस तरीके से लाये गए हैं, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। ओपिनियन पोल का यह खेल बिहार में कितना असरदार साबित होगा आम मतदाता इसे स्वीकार करेगा या नहीं। इसके लिए प्रतीक्षा करनी होगी। ईएमएस / 07 अक्टूबर 25