लेख
21-Oct-2025
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अमेरिका, जो पूरी दुनिया में लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता है, इन दिनों एक नए जन आंदोलन का साक्षी बन रहा है। नो किंग्स डे के रूप में इस विरोध आंदोलन में अमेरिका के सभी राज्यों के लगभग 70 लाख लोग सड़कों पर उतर आए। यह आंदोलन किसी एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि सत्ता के अहंकार और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के उल्लंघन के खिलाफ है। इस आंदोलन ने सारी दुनिया को चौंका दिया है। इस बार करीब 70 लाख से अधिक नागरिकों ने सड़कों पर उतरकर यह संदेश दिया है, लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली और लोकप्रिय क्यों न हो, वह जनता जनार्दन से बडा नहीं हो सकता है। दरअसल अमेरिका के दूसरी बार बने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर पिछले कई महीनो से यह आरोप लग रहा है, कि वह अमेरिका के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने की साजिश कर रहे हैं। नियमो और कानून का उल्लंघन करके वह मनमाने निर्णय ले रहे हैं। उनका राजनीतिक व्यवहार अहंकार और बयानबाज़ी ने अमेरिका के साथ-साथ सारी दुनिया में अमेरिका की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को एक राजा या अभिजात नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। अमेरिका के नागरिकों ने इस मानसिकता को पूरी तरह से नकारते हुए जबरदस्त विरोध करना शुरू कर दिया है। नो किंग्स डे आंदोलन की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, यह किसी हिंसा या अराजकता का आन्दोलन नहीं है। बल्कि शांतिपूर्ण विरोध का प्रतीक बनकर सारी दुनिया के सामने यह आंदोलन है। लोग तख्तियां लिए, झंडे थामे, सड़कों पर उतरे, एक ही सुर में बुलंद आवाज में नारे और स्लोगन के माध्यम से कहा, “ट्रंप, तुम राजा नहीं हो।” लोकतंत्र में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि हो। अमेरिका की जनता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर सजग है। ट्रंप ने इस आंदोलन को “राजाओं की हरकत” बताकर आलोचना की है। इस प्रदर्शन के तुरंत बाद डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें वह लड़ाकू विमान उड़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। विमान पर लिखा था, “किंग ट्रंप” यह दृश्य जितना व्यंग्यपूर्ण था, उतना ही प्रतीकात्मक भी था। इससे यह संदेश गया कि ट्रंप का राजनीतिक अंदाज़ अब लोकतांत्रिक आदर्शों, बेशर्मी ओर बेहआई के साथ अहंकार का प्रदर्शन कर रहा है। अमेरिकी जनता का यह जनजागरण बताता है, यायावर अमेरिका में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हैं। अमेरिका के नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर हमेशा सजग रहते हैं। जनता यह नहीं चाहती, कोई भी नेता संविधान और जनता की इच्छा से ऊपर उठकर खुद को शासक या राजा माने। अमेरिका की सड़कों पर उमड़ी यह भीड़ सिर्फ ट्रंप के खिलाफ नहीं, बल्कि तानाशाही सोच के खिलाफ शासको और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए एक चेतावनी भी है। यह आंदोलन अमेरिका से दुनिया के उन लोकतांत्रिक देशों के लिए स्पष्ट संदेश है, लोकतंत्र में कोई राजा नहीं होता है। सिर्फ जनता ही शासक होती है। जनता ही अपने ऊपर नियंत्रण करने के लिए निर्वाचित ढंग से शासक चुनती है। जनता विश्वास करके अपने अधिकार अपने नेताओं को सौंपती है। जब नेता अपनी ही जनता के साथ विश्वासघात करने लगते हैं, ऐसी स्थिति में जब जनता जागती है, तो कोई भी शक्ति जनता की ताकत के सामने टिक नहीं पाती है। यही, लोकतंत्र की असली ताकत है। श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों में जहां-जहां पर लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है वहां पर इस तरीके का विरोध इस बात का प्रतीक है कि जब-जब लोकतंत्र में सत्ता में बैठे हुए लोग जनता के अधिकारों पर कुठाराघात करेंगे तब यह जनता स्वयं सड़कों पर आकर इसका विरोध करेगी। जनता जब तक विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को स्वीकार करती है तभी तक इनका अस्तित्व है। जब जनता इनका अस्तित्व नकार देती है, तब सड़कों पर यही दृश्य देखने को मिलते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि अमेरिका का इतना बड़ा आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण था। महात्मा गांधी ने दुनिया में जो अहिंसा का संदेश और मार्ग दिखाया था अमेरिका इस मार्ग पर चलता हुआ दिख रहा है। ईएमएस / 21 अक्टूबर 25