मुंबई (ईएमएस)। छोटे परदे की अभिनेत्री काम्या पंजाबी ने अभिनय की नई मिसाल पेश करते हुए मेनोपॉज जैसे विषय पर बेस्ड एक ऐसी फिल्म मी नो पॉज मी प्ले में काम किया है, जिस तरह के विषय को बड़े पर्दे पर शायद ही कभी दिखाया गया हो। भारत की मेनोपॉज पर यह पहली हिंदी फीचर फिल्म भी है। भारतीय सिनेमा के लिए एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए मी नो पॉज मी प्ले का पोस्टर भी 18 अक्टूबर 2025 को वर्ल्ड मेनोपॉज डे पर ही जारी किया गया। मी नो पॉज मी प्ले महिला-केंद्रित कहानी कहने की दिशा में एक साहसिक कदम भी है। इस फिल्म के जरिये निर्माता ने समाज से सदियों से मासिक धर्म को लेकर व्याप्त रूढ़िवादिता को तोड़ने, जागरूकता का प्रचार प्रसार करने के साथ महिलाओं की समझ और सहानुभूति को बढ़ावा देने की कामयाब कोशिश की है। बता दें कि मनोज कुमार शर्मा की प्रशंसित पुस्तक पर डिजिफिल्मिंग और मिररो फिल्म्स की इस फिल्म में काम्या पंजाबी के अलावा दीपशिखा नागपाल, सुधा चंद्रन, एमी मिसोब्बा भी दमदार मुख्य भूमिकाओं में हैं। ये सभी फिल्म में ऐसी महिलाओं का किरदार निभा रही हैं, जो ताकत, स्वीकृति और बदलाव की नई परिभाषा गढ़ती हैं। साथ ही रूढ़िवादिता में जकड़े समाज से मासिक धर्म के बारे में चुप्पी की नहीं, बल्कि बेहतर और सुलझे हुए समझ की मांग करती है। इसके साथ ही फिल्म में मनोज कुमार शर्मा, करण छाबड़ा और अमन वर्मा भी अहम किरदारों में नजर आएंगे। फिल्म मी नो पॉज मी प्ले सहानुभूति, जागरूकता और स्वीकृति के बारे में है और हर उस महिला के लिए है, जो इस बदलाव का सामना चुपचाप और साहस के साथ करती है। 28 नवंबर, 2025 को रिलीज होने जा रही मनोज कुमार शर्मा द्वारा लिखित—निर्मित और समर के. मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म मी नो पॉज मी प्ले एक ऐसे विषय पर आधारित है, जिसे इससे पहले बड़े पर्दे पर कभी नहीं दिखाया गया है। मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति, एक महिला के जीवन का एक अपरिहार्य, लेकिन अक्सर अनकहा अध्याय है और मेनोपॉज के विषय पर आधारित यह भारत की पहली हिंदी फिल्म है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के स्वास्थ्य, भावनात्मक बदलावों और आत्म-स्वीकृति के इर्दगिर्द बातचीत को सामान्य बनाना है। फिल्म की पटकथा और संवाद शकील कुरैशी और मनोज कुमार शर्मा ने लिखे हैं, जबकि छायांकन अकरम खान ने किया है। दुर्भाग्य की बात है कि भारत जैसे विकासशील देश में मासिक धर्म आज भी एक वर्जित विषय ही बना हुआ है। यह अलग बात है कि कुछ समय से समाज में इसके बारे में भी चर्चाएं शुरू हुई हैं, लेकिन आज भी यह एक ऐसा विषय ही है, जो खामोशी और बेचैनी में लिपटा हुआ है, जबकि यह हर महिला के जीवन का एक अपरिहार्य और महत्वपूर्ण अवस्था है, जिससे उसके हार्मोन्स, मानसिक स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और यहां तक कि पहचान भी प्रभावित होती है। यह फिल्म वास्तविक अनुभवों से प्रेरित कहानियों को समाज के समक्ष लाती हैं। लेखक ने यह सुनिश्चित करते हुए कि फिल्म मनोरंजन से आगे बढ़कर सामाजिक प्रभाव और जागरूकता पैदा करे, इसकी कहानी में प्रामाणिकता और गहराई लाने का हरसंभव प्रयास किया है, जिसके लिए वह अलग से बधाई के पात्र हैं। फिल्म के बारे में इसमें मुख्य किरदार निभाने वाली अभिनेत्री काम्या पंजाबी कहती हैं, यह एक सहज खुशी की बात है कि आज हमारे समाज में लोग धीरे-धीरे ही सही, फुसफुसाकर ही सही, लेकिन मासिक धर्म के बारे में बात करने लगे हैं, लेकिन इसके बावजूद मासिक धर्म को अभी भी महिलाओं के लिए एक रहस्य की तरह ही देखा जाता है। ऐसा तब है, जब यह हर महिला को प्रतिमाह अनिवार्य रूप से होता है, फिर भी उससे उम्मीद की जाती है कि वह इसके बारे में चुप रहे, किसी से कुछ न बोले। सुदामा/ईएमएस 22 अक्टूबर 2025