लेख
30-Oct-2025
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भारत सरकार द्वारा लेबर पॉलिसी 2025 का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। इस ड्राफ्ट में मनुस्मृति का भी उल्लेख किया गया है। दरअसल मनुस्मृति में इस बात का उल्लेख है, कि वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत मजदूरों की मजदूरी किस हिसाब से तय होनी चाहिए। किस तरह से समाज की सबसे कमजोर वर्ग के हितों की रक्षा करनी चाहिए। केंद्र द्वारा जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है उसमें कई हिंदू धर्म ग्रंथो का उल्लेख करते हुए मनुस्मृति के अनुसार मजदूरों के हितों का संवर्धन करने के साथ-साथ मजदूरी का भुगतान करने का नियम बनाया गया है। भारत सरकार ने ड्राफ्ट में नारद स्मृति, शुक्र नीति और अर्थशास्त्र के प्राचीन ग्रंथो को राजधर्म की अवधारणा के साथ जोड़कर उनका समावेश संवैधानिक व्यवस्था में किया है। भारत सरकार का मानना है श्रम कानून का उदय भारत के धार्मिक ग्रंथो के माध्यम से हुआ है। यह एक पवित्र और नैतिक कर्तव्य का प्रतीक है। सामाजिक एवं आर्थिक सद्भाव तथा सामूहिक समृद्धि के लिए यह धर्म ग्रंथ की भारतीय संस्कृति में व्यापक व्यवस्था की गई है। मनुस्मृति का दृष्टिकोण प्रत्येक नागरिक के गोत्र के अनुसार सामाजिक सृजन में सब की भूमिका बताई गई है। चाहे वह कारीगर हो, किसान हो, शिक्षक हो या औद्योगिक क्षेत्र का मजदूर हो सभी की व्यवस्था करने को मनुस्मृति ने स्वीकार किया है। शुक्र नीति भी कर्मचारी और नियोक्ता के बीच के संबंध किस तरीके के होने चाहिए इसके बारे में बताया गया है। भारतीय संविधान में पहली बार मनुस्मृति के नाम से लेबर पॉलिसी 2025 को तैयार किया जा रहा है। इसका आशय यह निकाला जा रहा है, कि केंद्र सरकार ने मनुस्मृति के सिद्धांतों की वापसी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडा को लागू करने के लिए अपना अंतिम कदम आगे बढ़ा दिया है। इस ड्राफ्ट की नीति के माध्यम से इतना तय हो गया है, कि जो संविधान अभी चल रहा है उसकी व्याख्या और उसमें परिवर्तन संघ और भाजपा अपने हिसाब से करेगी। भारत के न्यायालयों में पिछले 11 वर्षों में जिस तरह से एक ही विचारधारा के न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है, शासन के सभी प्रमुख पदों पर एक ही विचारधारा के लोगों को नियुक्त किया गया है, उसके बाद अब मनुस्मृति को लागू करना या हिंदू राष्ट्र बनाना ज्यादा दूर नहीं रह गया है। लेबर पॉलिसी के रूप में सरकार ने अपनी मनसा स्पष्ट कर दी है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी सरकार के अनुसार ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में धार्मिक आधार पर निर्णय करने लगी हैं। रामजन्म भूमि विवाद और अन्य कई मामले इसके उदाहरण हैं। पिछले एक दशक में जिस तरह से हर मोहल्ले, गांव और शहर में हिंदुत्व समर्थित धार्मिक आधार पर एक नेटवर्क खड़ा कर दिया गया है, उसके बाद मनुस्मृति को लागू करने में अब कोई बाधा भी नहीं रहेगी। राहुल गांधी जो आशंका व्यक्त कर रहे थे वह अब आशंका नहीं यथार्थ में बदल गई है। कहा जा रहा, कि पिछले कुछ वर्षों में चुनाव आयोग भी पूरी तरह से सरकार के निर्देश पर काम कर रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुसार अब भारत में चुनाव भी निष्पक्षता के साथ संभव नहीं रहे। सरकार जो परिणाम चाहेगी वहीं चुनाव आयोग घोषित करेगा। ऐसी स्थिति में भारत अब हिंदू राष्ट्र और मनुस्मृति से चलने वाला देश बनने जा रहा है। इसको रोक पाना वर्तमान स्थिति में किसी के लिए संभव नहीं है। जितनी भी संवैधानिक संस्थाएं थीं वह सरकार के अनुसार ही काम कर रही हैं। संविधान की व्याख्या अपने हिसाब से कर रहे हैं। सारी ताकत केंद्र सरकार के पास निहित हो गई है। न्यायपालिका और कार्यपालिका भी सरकार के अधीन लग रही हैं। ऐसी स्थिति में मनुस्मृति और हिंदू राष्ट्र को स्वीकार करने के अलावा शायद अन्य कोई विकल्प बचा भी नहीं है। जनता भी भयभीत नजर आती है, वह अपने हितों को सुरक्षित करने के बजाय किसी भी तरह से उसका जीवन सुरक्षित रह जाए इस मानसिकता में आ चुकी है। जिसके कारण इस सरकार का विरोध भी आम लोगों के लिए संभव नहीं रहा। सरकार भी अब कुछ छिपा नहीं रही है। लेबर पॉलिसी 2025 में सरकार ने अपनी मनसा स्पष्ट कर दी है। अब इसके बाद कहने-सुनने को कुछ रह भी नहीं गया है। ईएमएस / 30 अक्टूबर 25