अंतर्राष्ट्रीय
19-Nov-2025
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मॉस्को,(ईएमएस)। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की प्राइम मिनिस्टर्स काउंसिल की बैठक में ऐसा बयान दिया जिसने वैश्विक आर्थिक संतुलन को हिलाकर रख दिया है। पुतिन ने साफ कहा कि रूस और एससीओ सदस्य देशों के बीच अब 97प्रतिशत व्यापार डॉलर में नहीं, बल्कि अपनी-अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं में हो रहा है। यह न सिर्फ डॉलर की वैश्विक पकड़ को चुनौती है, बल्कि भारत और चीन जैसे बड़े देशों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता का संकेत भी माना जा रहा है। भारत और चीन के लिए यह बदलाव कई स्तरों पर फायदेमंद है। भारत रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल, उर्वरक और रक्षा उपकरण खरीदता है। अब रुपये या रूबल में भुगतान होने से डॉलर की उपलब्धता का दबाव खत्म हो गया है और लेन-देन आसानी से हो रहा है। चीन पहले से ही रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है और युआन-रूबल ट्रेड उसे अमेरिकी वित्तीय दबाव से दूर रहने का अवसर देता है। स्थानीय मुद्राओं में भुगतान से ट्रांजैक्शन लागत कम होती है और राजनीतिक जोखिम भी घटता है। रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के बाद बैंकिंग चैनल और डॉलर ट्रांजैक्शन पर रोक लग गई। इसके जवाब में रूस ने अपने प्रमुख साझेदार देशों—भारत और चीन—को संदेश दिया कि व्यापार डॉलर पर निर्भर किए बिना भी चल सकता है। रूस ने रूबल, युआन और रुपये में ट्रेड बढ़ाकर यह साबित भी कर दिया। पुतिन के अनुसार, अमेरिका और यूरोप की पाबंदियों ने मास्को को वैकल्पिक वित्तीय ढांचे की ओर बढ़ने के लिए मजबूर किया, और इसका नतीजा यह हुआ कि स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन नई सामान्य प्रक्रिया बन चुकी है। दुनिया में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। ब्रिक्स देशों ने पहले ही डॉलर निर्भरता कम करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। सऊदी अरब भी अब तेल व्यापार में डॉलर पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहा। ऐसे में पुतिन का यह बयान वैश्विक आर्थिक ढांचे में बदलाव का संकेत है। उन्होंने बताया कि एससीओ अपना खुद का पेमेंट सिस्टम और डिपॉजिटरी नेटवर्क तैयार कर रहा है, जो भविष्य में स्वीफ्ट स्वीफ्ट जैसे अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का विकल्प साबित हो सकता है। यह व्यवस्था उन देशों को आर्थिक आजादी देगी जो अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से दबे रहते हैं। भारत के लिए यह बदलाव खास मायने रखता है। स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ने से सस्ते ऊर्जा सौदे जारी रहेंगे और डॉलर की कमी का असर नहीं पड़ेगा। रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्थिति भी मजबूत होगी और भारत-रूस रक्षा सौदे पहले से अधिक सरल होंगे। आने वाले समय में यह मॉडल भारत-ईरान, भारत-सऊदी और अफ्रीकी देशों के साथ भी लागू हो सकता है। रूस और भारत पहले से ही रुपये-रूबल ट्रेड मॉडल पर काम कर रहे हैं और कई ऊर्जा सौदों में डॉलर का इस्तेमाल लगभग समाप्त हो चुका है, हालांकि कुछ तकनीकी चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं। लेकिन दिशा साफ है-दुनिया धीरे-धीरे डॉलर के दबदबे से बाहर निकल रही है। अगर यह रुझान तेज हुआ, तो अमेरिका की आर्थिक शक्ति और उसकी प्रतिबंध नीति कमजोर पड़ सकती है, जिससे वैश्विक व्यापार व्यवस्था का नया रूप सामने आएगा। वीरेंद्र/ईएमएस/19नवंबर2025