कैनबरा,(ईएमएस)। ऑस्ट्रेलिया में अमेरिका के साथ हुए 368 अरब डॉलर के न्यूक्लियर पनडुब्बी सौदे को लेकर हड़कंप मच गया है। दावा किया गया है कि इस सौदे में जासूसी का साया है। अमेरिका और ब्रिटेन के साथ ऑस्ट्रेलिया ने अकुस मंच के तहत आठ परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के निर्माण को लेकर समझौता किया है। ऑस्ट्रेलिया का मकसद इंडो-पैसिफिक में चीन को काउंटर करना है। रिपोर्ट के मुताबिक इस समझौते के दो स्तंभ हैं। पहले स्तंभ के तहत ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका से 3-5 वर्जीनिया-क्लास की एसएसएन पनडुब्बी खरीदना है और स्तंभ-2 के तहत ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम को संयुक्त रूप से एक नई एसएसएन-अकुस पनडुब्बी को डेवलप करना है। इसमें अमेरिका अपनी टेक्नोलॉजी देगा और इस प्रोजेक्ट के तहत साल 2040 के दशक की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया की नौसेना को पनडुब्बियों की सप्लाई शुरू कर दी जाएगी। हालांकि करीब 4 साल पहले ही पनडुब्बियों के डेवलपमेंट के लिए तीनों देशों के बीच 368 अरब डॉलर का समझौता हुआ था, लेकिन अभी तक इसमें कुछ खास डेवलपमेंट नहीं हुआ है। वहीं, ट्रंप प्रशासन ने इस साल जून में इस कॉन्ट्रैक्ट की औपचारिक समीक्षा शुरू करने के भी आदेश दिए थे, लेकिन बाद में ट्रंप ने अक्टूबर महीने में समझौते को हरी झंडी दे दी और ऑस्ट्रेलिया को आश्वासन दिया कि उन्हें परमाणु पनडुब्बी मिल जाएगी। ट्रंप से हरी झंडी मिलने के कुछ ही हफ्तों बाद ऑस्ट्रेलिया में इस सौदे को लेकर नई चिंता का जिक्र किया जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में इन पनडुब्बियों को लेकर जासूसी की बात की जा रही है। ऑस्ट्रेलिया की कुछ एजेंसियों को आशंका है कि चीन समेत कुछ प्रतिद्वंद्वी देश संवेदनशील न्यूक्लियर प्रणोदन तकनीक हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि अकुस सबमरीन प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए योग्य आवेदकों में से हर दस में से एक व्यक्ति के एप्लीकेशन को सुरक्षा कारणों से खारिज कर दिया है। इसके पीछे बड़ी वजहों में संदिग्ध विदेशी संबंध और डुएल सिटिजनशिप को तो ध्यान में रखा जा रहा है, खासकर ऐसे एप्लीकेशन खास तौर पर खारिज किए जा रहे हैं, जिनके संबंध चीन या भारत से हैं। बता दें इस प्रोजेक्ट के लिए कम से कम 20 हजार योग्य इंजीनियरों और टेक्निकल लोगों की जरूरत है लेकिन अमेरिका के सख्त नियम और सख्त सुरक्षा जांच की वजह से भर्ती प्रक्रिया काफी मुश्किल हो गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा संस्थान ने चेतावनी दी है, कि विदेशी एजेंसियां लिंक्डइन जैसी साइटों पर फर्जी जॉब पोस्ट डालकर रक्षा-क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स के जरिए संवेदनशील जानकारी निकालने की कोशिश कर रही हैं। बर्गेस ने कहा कि करीब 7,000 ऑस्ट्रेलियाई डिफेंस प्रोफेशनल्स ने अपने प्रोफाइल लिंक्डइन पर शेयर किए हैं, जिनमें से 400 से ज्यादा ने अकुस प्रोजेक्ट का खुलकर जिक्र किया है। इसीलिए वे जासूसी नेटवर्क के आसान लक्ष्य बन जाते हैं। ऑस्ट्रेलियन मीडिया में चीन के साथ भारत का नाम आना चौंकाने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत और ऑस्ट्रेलिया खुद क्वाड पार्टनर्स हैं और दोनों देशों के बीच गहरे संबंध हैं, जिस वक्त ऑस्ट्रेलियन मीडिया ने इसका खुलासा किया है, उस वक्त भी भारत और ऑस्ट्रेलिया की नौसेना जापान की नौसेनाओं के साथ गुआम में युद्धाभ्यास कर रही हैं। हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स में भारत से संदिग्ध लोगों के नामों को लेकर अस्पष्ट जिक्र किया है। लेकिन ये मामला कुछ ऐसा है, जब कतर में भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को उसकी पनडुब्बी के रहस्यों की जासूसी करने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। बाद में उन्हें वापस भारत भेज दिया गया था। इसीलिए सवाल ये है कि क्या कोई निजी एजेंसी जासूसी की फिराक में है, क्योंकि ऐसे आरोप दो देशों के संबंध को गहराई से प्रभावित करते हैं। भारत और ऑस्ट्रेलिया की सरकारों को इन रिपोर्टों की जांच करनी चाहिए और अगर ये आरोप सही हैं, तो ये दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और यहां तक कि अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति और क्वाड गठबंधन को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। सिराज/ईएमएस 20 नवंबर 2025