अंतर्राष्ट्रीय
25-Nov-2025
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बीजिंग(ईएमएस)। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच सोमवार को एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटना घटी। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फोन किया। यह कॉल ताइवान जलडमरूमध्य के आसपास संवेदनशील स्थिति और चीन-जापान के बीच उफान पर तनाव के समय हुई। चीनी सरकारी मीडिया ने इसकी पुष्टि की, जिसमें शी ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का हवाला देते हुए ताइवान को चीन का अभिन्न अंग बताया। व्हाइट हाउस ने कॉल की पुष्टि की, लेकिन विवरण साझा नहीं किए। ट्रंप ने इसे बहुत अच्छा बताते हुए अप्रैल में बीजिंग यात्रा स्वीकार की। शी ने ट्रंप से कहा कि चीन और अमेरिका ने कभी फासीवाद व सैन्यवाद के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी थी। अब दोनों को युद्ध के परिणामों को ध्यान में रखते हुए सहयोग करना चाहिए। ताइवान का चीन में विलय द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वैश्विक व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कॉल ट्रंप की सौदेबाजी वाली नीति को पुनर्जीवित करने, जापान की मिसाइल तैनाती से संतुलन बनाने और अमेरिका को संदेश देने की कोशिश है। कॉल में व्यापार, यूक्रेन युद्ध और फेंटेनिल जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई। चीन ताइवान को अपना क्षेत्र मानता है और बल प्रयोग से नियंत्रण की संभावना से इनकार नहीं करता। ताइवान सरकार इसे खारिज कर कहती है कि भविष्य का फैसला उसके लोग ही करेंगे। इधर, जापान के साथ संबंध सबसे बुरे दौर में हैं। जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने कहा था कि यदि चीन ताइवान पर हमला करता है, तो जापान सैन्य प्रतिक्रिया दे सकता है। इस बयान ने तनाव बढ़ा दिया। सोमवार को चीन ने जापान पर ताइवान के पास मिसाइल तैनाती का आरोप लगाया, इसे क्षेत्रीय तनाव पैदा करने वाला कदम बताया। जापान योनागुनी द्वीप (ताइवान से मात्र 110 किमी दूर) पर मीडियम-रेंज मिसाइल सिस्टम तैनात करने की योजना बना रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने जापान की दकियानूसी और दक्षिणपंथी सोच को क्षेत्रीय तबाही की ओर ले जाने वाला बताया। उन्होंने कहा, चीन अपनी संप्रभुता की रक्षा में सक्षम है। जापान के रक्षा मंत्री शिंजिरो कोइजूमी ने कहा कि योजना तेजी से आगे बढ़ रही है और यह द्वीप की सुरक्षा के लिए जरूरी है, जो युद्ध की संभावना घटाएगी। ताइवान ने पहली बार खुलकर समर्थन दिया। उप विदेश मंत्री फ्रांसुआ वू ने कहा, जापान संप्रभु देश है और अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठा सकता है, जो ताइवान जलडमरूमध्य में स्थिरता लाएगा। जापान के बयानों पर चीन ने कड़े कदम उठाए। जापानी सीफूड पर प्रतिबंध, फिल्म रिलीज रोकना, नागरिकों को यात्रा चेतावनी और सरकारी मीडिया में तीखी संपादकीय जारी। यह एशिया का कई वर्षों का सबसे बुरा कूटनीतिक विवाद बन चुका है। इधर, चीनी सेना पीएलए ने पिछले हफ्ते कई युद्ध चेतावनी वाले वीडियो जारी किए। युद्धपोत मिसाइलें दागते नजर आए, गाना बजता रहा- आओ दुश्मन, मुकाबला करो! इन्हें जापान व ताइवान को सीधा संदेश माना जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, पहला- ट्रंप की सौदेबाजी वाली राजनीति को पुन: सक्रिय करना। दूसरा- जापान की मिसाइल योजना से कूटनीतिक संतुलन। तीसरा- पीएलए वीडियो, जापान की चेतावनी और ताइवान समर्थन के बीच अमेरिका को बताना कि चीन बातचीत के द्वार खुले रखना चाहता है। क्या युद्ध का खतरा? फिलहाल संभावना कम, लेकिन स्थिति संवेदनशील। ताइवान चीन की रेडलाइन, जापान आक्रामक तैयारी कर रहा। वीडियो ड्रैगन के पीछे न हटने का संकेत। गलतफहमी या छोटी झड़प से क्षेत्र प्रभावित हो सकता। शी-ट्रंप कॉल दिखाता है कि बीजिंग सैन्य व कूटनीति दोनों मोर्चों पर सक्रिय। जापान की तैनाती, चीन की चेतावनियां, ताइवान की सक्रियता और पीएलए के उग्र वीडियो से तापमान चरम पर है। वीरेंद्र/ईएमएस/25नवंबर2025