० राजभाषा दिवस समारोह में सांसद बृजमोहन अग्रवाल का सम्मान—छत्तीसगढ़ी भाषा को दिया नई दिशा का संदेश ० छत्तीसगढ़ी भाषा के गौरव, विरासत और भविष्य पर सांसद बृजमोहन की प्रेरक बातों ने जीता सबका मन ० हमारी भाषा ही हमारी पहचान’—राजभाषा आयोग के भव्य आयोजन में गूँजी सांसद बृजमोहन की छत्तीसगढ़ी चेतना रायपुर,(ईएमएस)। छत्तीसगढ़ी भाषा नई नहीं, बल्कि हमारी विरासत का वह स्वर्णिम अध्याय है जिसका इतिहास अत्यंत पुराना और गौरवशाली है। यह बात सांसद एवं वरिष्ठ भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ राजभाषा दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा आयोजित भव्य समारोह में कही। जहां छत्तीसगढ़ी भाषा की गौरवशाली परंपरा, उसकी विरासत और उसके संवर्धन पर सार्थक विमर्श हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लोकसभा सांसद बृजमोहन अग्रवाल की गरिमामयी उपस्थिति ने पूरे आयोजन को एक विशिष्ट ऊँचाई प्रदान की। छत्तीसगढ़ी भाषा को राजकीय सम्मान दिलाने और राजभाषा आयोग के गठन में निर्णायक भूमिका निभाने वाले सांसद बृजमोहन अग्रवाल का मंच पर विशेष रूप से स्वागत और सम्मान किया गया। छत्तीसगढ़ी भाषा के संवर्धन के लिए उनका दृष्टिकोण, प्रयास और सतत संघर्ष आज प्रदेश के सांस्कृतिक इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय माना जाता है। सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि “छत्तीसगढ़ी केवल भाषा नहीं, हमारी अस्मिता है। इसे जन-जन की भाषा बनाने के लिए हमें इसे अपने व्यवहार, आचार और विचार में आत्मसात करना होगा। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने राजभाषा आयोग द्वारा प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन किया तथा छत्तीसगढ़ी साहित्य की सेवा में अविस्मरणीय योगदान देने वाले प्रतिष्ठित साहित्यकारों पद्मश्री धर्मलाल सैनी, श्रीमती सरला शर्मा, एस. पी. जायसवाल, हेमलाल साहू ‘निर्मोही’, डॉ. प्रकाश पतंगीवार, काशी साहू को सम्मानित किया। सांसद ने छत्तीसगढ़ी भाषा को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले महान साहित्यिक पुरोधाओं स्वर्गीय सुरेंद्र दुबे और स्वर्गीय सुरजीत नवदीप को भी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने आवाहन करते हुए कहा कि अब समय है कि छत्तीसगढ़ी भाषा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए समाज सामूहिक संकल्प ले कि, “हमारी भाषा ही हमारी पहचान है, और छत्तीसगढ़ का भविष्य उसकी अपनी मातृभाषा की मजबूती में ही सुरक्षित है।” कार्यक्रम का सफल आयोजन छत्तीसगढ़ी भाषा के समृद्ध इतिहास, उसकी व्यापक स्वीकार्यता और भविष्य की दिशाओं पर एक प्रभावशाली विमर्श के रूप में याद किया जाएगा। कार्यक्रम में प्रख्यात इतिहासकार रामेंद्रनाथ मिश्र, रामेश्वर, शशांक शर्मा, राजभाषा आयोग की सचिव श्रीमती अभिलाषा बेहार सहित बड़ी संख्या में लेखक, साहित्यकार व भाषा प्रेमी उपस्थित रहे। सत्यप्रकाश /चंद्राकर/ 28 नवंबर 2025