लेख
03-Dec-2025
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अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय मुद्रा में गिरावट तथा भारत में अमेरिकी डॉलर की बढ़ती मजबूती ने देश की अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है। विदेशी निवेशकों की भारतीय बाजार से चिंताजनक निकासी के कारण भारतीय रुपया तेजी से गिर रहा है। 3 दिसंबर 2025 को रुपया डॉलर के मुकाबले लगभग 90 रूपये प्रति डॉलर के स्तर को पार कर चुका है। इस गिरावट की कई वजह हैं, जिनमें डॉलर की मांग में भारी वृद्धि, भारत में विदेशी पूँजी की आवक में गिरावट, निर्यात-आयात के बीच बढ़ता हुआ असंतुलन प्रमुख हैं। इस वजह से रुपया अब इतिहास की सबसे कमजोर मुद्रा बनता जा रहा है। यह हालत आज अचानक नहीं बनी है। 2013 में, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस समय वह तत्कालीन मनमोहन सरकार पर व्यंग्य करते हुए कहा करते थे, देखिए रुपया कितनी तेजी से गिर रहा है। कभी-कभी लगता है, रुपया और दिल्ली की सरकार में कोई मुकाबला चल रहा है। किसकी इज़्ज़त पहले गिरती है। 2013 में कसा हुआ यह तंज वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर भारी पड़ रहा है। उस समय मुद्रा गिरावट को गंभीर संकट बताया गया था। 2025 आते-आते वही रुपया आज मनमोहन सिंह के समय से दुगनी गति से गिर रहा है। जिसकी बड़ी आलोचना हो रही है। पिछले कई वर्षों से रिजर्व बैंक में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की नियुक्ति की गई। अर्थशास्त्रियों को वर्तमान सरकार ने अनदेखा किया और मनमाने तरीके से वित्तीय फैसले लिए। रिजर्व बैंक में भी सरकार का दबाव काम करने लगा, जिसके कारण स्थिति दिनों-दिन खराब होती रही है। पिछले एक दशक में सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा उठाए गए कदम वित्तीय स्थिति में सुधार कर पाने के लिए पर्याप्त नहीं रहे। रुपया गिरने का मतलब है, भारत में आयात महंगा होगा। आम आदमी पर महंगाई की मार झेलना पड़ेगी। इसका असर आयात और निर्यात पर बड़े पैमाने पर पड़ेगा। भारत में आयात ज्यादा हो रहा है। उसके मुकाबले निर्यात बहुत कम है। विदेशी निवेशकों द्वारा भारत में निवेश नहीं किया जा रहा है। प्रवासी भारतीयों द्वारा जो पैसा भारत भेजा जा रहा था उसमें भी भारी कमी देखने को मिल रही है। मुद्रास्फीति पर दबाव बन गया है। विदेशों से भेजे जाने वाले पैसों की कीमत गिर सकती है। निर्यात-आधारित सेक्टरों को अल्प-काल के लिए राहत मिल सकती है, लेकिन लंबे समय में वर्तमान रुपए की गिरावट के कारण आर्थिक अस्थिरता तेजी के साथ बढ़ेगी। सरकार को इस गंभीर स्थिति पर विशेष ध्यान देना होगा। सिर्फ बयानबाज़ी और भगवान भरोसे बैठकर यह मान कर चलेंगे, सब कुछ जल्द ठीक हो जाएगा, वर्तमान में यह संभव नहीं है। भारत सरकार के ऊपर कर्ज लगातार बढ़ रहा है। महंगाई बेरोजगारी और बाजार में मांग कम होने से संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्र में मांग घटती चली जा रही है। ऐसी स्थिति में सरकार को ठोस नीतिगत सुधार के कदम तुरंत उठाने चाहिए। रिजर्व बैंक में और सरकार के वित्त मंत्रालय में अच्छे अर्थशास्त्रियों की सलाह से ऐसे कठोर निर्णय लेने चाहिए, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आए और रुपए की गिरावट को रोका जा सके। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार को अपनी नीतियों में खुलापन लाना पड़ेगा। विदेशी पूँजी भारत में वापस आए इसके लिए निवेशकों के लिए भरोसेमंद माहौल को बनाना होगा। डॉलर के ऊपर निर्भरता कम करना होगी। अमेरिका की आर्थिक मंदी के बाद जिस तरह की स्थिति 2009 से 2014 के बीच में बनी थी, उससे कहीं ज्यादा खराब स्थिति आज सच होती दिख रही है। रुपया जिस तेजी के साथ गिर रहा है उससे विदेशी निवेशकों का विश्वास भारत के ऊपर से कम हो रहा है। भारत सरकार द्वारा पिछले 10 वर्षों में जो आंकड़े जारी किए गए हैं उस पर प्रश्न चिन्ह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगाया जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक पर सरकार का भारी दबाव है। वित्त मंत्रालय भी राजनीतिक आधार पर निर्णय कर रहा है। वास्तविक आर्थिक स्थिति पर उसका कोई ध्यान नहीं है, जिसके कारण स्थिति दिनों-दिन खराब होती चली जा रही है। जिस तरह की स्थिति निर्मित हो रही है वह आर्थिक आपातकाल से कम नहीं है। अर्थव्यवस्था को संभालने आयात और निर्यात व्यापार में संतुलन बनाने और घाटे के बजट को संतुलित करने की दिशा में सरकार को गंभीरता के साथ काम करना होगा। अन्यथा जिस तरही की बैंकों की स्थिति है, लगातार एनपीए बढ़ते चले जा रहे हैं। भारत के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने जिस तरह से गलत निवेश किया है, उसके कारण देश की अर्थव्यवस्था महासंकट की स्थिति में पहुंच गई है। सरकार को सजग होकर ठोस और कठोर निर्णय लेने की जरूरत है। ईएमएस / 03 दिसम्बर 25