(06 दिसम्बर डॉ. अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस) विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले डॉ. अम्बेडकर पहले भारतीय थे, जब वे 1926 में भारत आए तब उन्हें मुंबई की विधानसभा का सदस्य चुना गया l अम्बेडकर आजाद देश के पहले कानून मंत्री थे, साल 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था l डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत के संविधान निर्माता भी थे, इसलिए आज़ाद भारत की लोकतांत्रिक राजनीतिक में उनका कद बहुत विशाल है, आज 06 दिसम्बर को डॉ. अम्बेडकर का परिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है, पुण्यतिथि को ही परिनिर्वाण दिवस कहते हैं l डॉ. अम्बेडकर संविधान निर्माता के साथ परम विद्वान, सामाजिक न्याय, एवं स्त्रियों के अधिकारों के लिए भी याद किए जाते हैं l आज हमारे देश में स्त्रियों की स्थिति में सुधार हो रहा है, इसका सबसे बड़ा श्रेय भी बाबा साहब अम्बेडकर को जाता है, डॉ. अम्बेडकर का कद भारतीय राजनीति में वही है जो नेहरू, पटेल, का है, देश दुनिया में उनके चाहने वाले बाबा साहेब कहकर संबोधित करते हैं l आज के दौर में लोगों की धारणा है कि डॉ. अम्बेडकर दलितों के नेता थे, लेकिन वे देश के अग्रणी नेता थे जो खुद एक विचार बन गए l किसी भी व्यक्ति का परिनिर्वाण दिवस मनाया जाना इसलिए महत्वपूर्ण कि इस दिन लोग उनकी बुराईयों की बजाय उनकी अच्छाईयों को याद करते हैं और उसे अपने जीवन में उतारने का संकल्प भी लेते हैं । बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर बिना भेदभाव के दलितों, पिछड़ों, महिलाओं और देश के सर्वांगीण विकास के लिए आजीवन समर्पित रहे । बाबा साहेब डॉ. की मृत्यु 6 दिसम्बर 1956 को हुई थी, यही कारण है कि डॉ. अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिन या पुण्यतिथि हर साल उन्हें 6 दिसम्बर को देश में ही नहीं विदेशों में भी श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिये मनाया जाता है । वे, “भारतीय संविधान के जनक” थे, उनके प्रयास और मेहनत के परिणाम के बाद ही भारत को अपना संविधान प्राप्त हो पाया है, डॉ. अम्बेडकर बचपन से ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत ही उत्साहित रहते थे, परन्तु महार जाति के होने के कारण उनके साथ भेद-भाव किया जाता था । उनकी मृत्यु विवादित रही कि उनकी मृत्यु स्वाभाविक थी या हत्या, जिसका आज तक पता न चल सका । इस दिन दलित वर्ग उनकी प्रतिमा पर फूल, माला, दीपक और मोमबत्ती जलाकर और संविधान की प्रति भेंट करके उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और एक सबसे प्रसिद्ध नारा “बाबा साहेब अमर रहें” लगाते हैं । इस अवसर पर बौद्ध भिक्षु सहित कुछ लोग कई पवित्र गीत भी गाते हैं l डॉ. अंबेडकर ने अपने जीवन के 65 सालों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक आदि क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया और आधुनिक भारत की नींव रखी थी, ऐसा एक सच्चा और समर्पित देशभक्त ही कर सकता है, उन्होंने कहा था “हम भारतीय हैं, सबसे पहले भी और अंत में भी ।” लेकिन देश उनके इस योगदान को लेकर आज भी जागरूक नहीं है । उनके विचार व सिद्धांत भारतीय राजनीति के लिए हमेशा से प्रासंगिक रहे हैं । दरअसल वे एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक अवसर दे तथा धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए । उनका यह राजनीतिक दर्शन व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों पर बल देता है । उनका कहना था “राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं चल सकता जब तक कि सामाजिक लोकतंत्र का आधार नहीं होता । सामाजिक लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसका मतलब जीवन का एक तरीका है जो जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को पहचानता है । उनका यह दृढ़ विश्वास था कि जब तक आर्थिक और सामाजिक विषमता समाप्त नहीं होगी, तब तक जनतंत्र की स्थापना अपने वास्तविक स्वरूप को ग्रहण नहीं कर सकेगी l दरअसल सामाजिक चेतना के अभाव में जनतंत्र आत्मविहीन हो जाता है । ऐसे में जब तक सामाजिक जनतंत्र स्थापित नहीं होता है, तब तक सामाजिक चेतना का विकास भी संभव नहीं हो पाता है । डॉ. अम्बेडकर भारतीय समाज में स्त्रियों की हीन दशा को लेकर काफी चिंतित थे । उनका मानना था कि स्त्रियों के सम्मानपूर्वक तथा स्वतंत्र जीवन के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है । अम्बेडकर ने हमेशा स्त्री-पुरुष समानता का व्यापक समर्थन किया । इस संबंध में उनका कहना था “पति-पत्नी के बीच का रिश्ता करीबी दोस्तों के जैसा होना चाहिए” और “मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है ।” यही कारण है कि उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री रहते हुए ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में प्रस्तुत किया और हिन्दू स्त्रियों के लिए न्याय सम्मत व्यवस्था बनाने के लिए इस विधेयक में उन्होंने व्यापक प्रावधान रखे । उल्लेखनीय है कि संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने पर उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया । इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की बात कही गई थी । दरअसल स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात व्यावहारिक धरातल पर इन अधिकारों को लागू नहीं किया जा सका है, वहीं आज भी महिलाएँ उत्पीड़न, लैंगिक भेदभाव हिंसा, समान कार्य के लिए असमान वेतन, दहेज उत्पीड़न और संपत्ति के अधिकार ना मिलने जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं । डॉ. अम्बेडकर ने अपनी विचारधारा, अपनी सोच एवं शिक्षा से सभी की ज़िन्दगी में सकारात्मकता फैलाई l डॉ अम्बेडकर के विचार हमारे देश के लिए महान विरासत हैं, जो हमेशा प्रासंगिक रहेंगें l ईएमएस / 05 / 12 / 2025