भारत-रूस के दोस्ताना ताल्लुक सात दशक से बराबर चले आ रहे हैं। फिर चाहे राजनीतिक, आर्थिक या सांस्कृतिक संबंधों की बात ही क्यों न हो। हिन्दी सिने जगत ने तो दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में अहम भूमिका अदा की। वैश्विक धरातल पर फिल्मी जगत की बात करें तो राज कपूर का नाम जरुर आता है, जिन्होंने 70 एमएम के रुपहले पर्दे पर मेरा नाम जोकर फिल्म को प्रदर्शित कर भारत-रुस संबंधों को एक तरह से मजबूत करने में सहयोग प्रदान किया। भारत–रूस संबंध आज उस ऐतिहासिक विरासत के साथ खड़े हैं, जिसकी जड़ें बीते कई दशकों में गहराई तक जा पहुंची हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद हाउस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मुलाकात के दौरान जब इस दोस्ती को ध्रुव तारे जैसा अटल बताया, तो यह सिर्फ कूटनीतिक विनम्रता नहीं थी; बल्कि उन यादों, संघर्षों और वैश्विक उथल-पुथल का सम्मान था, जिनमें यह संबंध समय-समय पर परखे गए और हर बार पहले से अधिक मजबूत होकर उभरे। एक नया दौर वर्ष 2000 में शुरु हुआ, जब पुतिन और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रणनीतिक संबंधों का ढांचा तैयार किया। इसके मात्र दस वर्ष बाद इसे ‘स्पेशल एंड प्रिविलेज्ड स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप’ के स्तर तक उन्नत कर दिया गया। यह वही समय था जब दुनिया आतंकवाद, आर्थिक संकट और नई शक्ति-संरचनाओं के बीच खुद को पुनर्परिभाषित कर रही थी। इसके बावजूद भारत–रूस संबंध स्थिर रहे, एक ऐसे स्थायित्व का प्रतीक, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने ध्रुव तारा कहकर परिभाषित किया है। पिछले ढाई दशकों में रूस ने भारत के साथ रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष और विज्ञान के क्षेत्रों में गहरे सहयोग का ताना-बाना बुना। चाहे ब्रह्मोस मिसाइल की संयुक्त परियोजना हो, एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खरीद हो, या फिर कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र, इन सभी ने इस साझेदारी को वास्तविक और प्रभावशाली रूप दिया। ऊर्जा सुरक्षा के मोर्चे पर रूस भारत का एक विश्वसनीय स्तंभ रहा है। पीएम मोदी ने इसे साझेदारी का मजबूत स्तंभ बताया है और यह सही भी है, क्योंकि सिविल न्यूक्लियर ऊर्जा से लेकर क्रूड ऑयल तक, रूस ने भारत की दीर्घकालिक जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई है। आज जब दुनिया नई तकनीकों, स्वच्छ ऊर्जा और क्रिटिकल मिनरल्स पर आधारित नई औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ रही है, तो भारत और रूस का सहयोग एक बार फिर निर्णायक साबित हो गया है। क्रिटिकल मिनरल्स में संयुक्त पहलों से सुरक्षित सप्लाई चेन बनेगी, वहीं शिपबिल्डिंग सहयोग ‘मेक इन इंडिया’ को नई गति देगा। यह सहयोग सिर्फ औद्योगिक लाभ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि रोजगार, कौशल और क्षेत्रीय संपर्कता को लेकर भी गहरे प्रभाव डालेगा। इतिहास गवाह है कि भारत–रूस की दोस्ती संकटों और संघर्षों की भट्टी में तपकर बनी है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी पहलगाम पर हुए आतंकवादी हमले से लेकर रूस के क्रोकस सिटी हॉल हमले तक का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, कि आतंकवाद की जड़ें भले भिन्न भूभागों में हों, पर उद्देश्य एक ही होता है, मानवता पर हमला। यही कारण है कि भारत और रूस ने अंतरराष्ट्रीय मंचों, यूएन, जी-20, ब्रिक्स, एससीओ सभी पर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई है। दोनों देशों की यह नैतिक एकता वैश्विक राजनीति में एक संतुलनकारी भूमिका निभाती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते आतंकवादी हमले और शांतिप्रिय देशों की बढ़ती परेशानी के बीच जब आज प्रधानमंत्री मोदी यह कहते हैं, कि भारत न्यूट्रल नहीं है, भारत शांति के पक्ष में है।, तो यह वक्तव्य वैश्विक कूटनीति के एक नए दृष्टिकोण की ओर संकेत करता है। गुटनिरपेक्षता के धरातल पर चलते हुए भारत शांति को अपनी विदेश नीति का केंद्र मानता है और रूस के साथ मिलकर इस दिशा में काम करता रहा है। पुतिन द्वारा राजघाट पहुंचकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धासुमन अर्पित करना इसी संदेश को आगे बढ़ाता है कि शक्ति और शांति की अवधारणाएँ एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकती हैं। इस अवसर पर यह स्वीकारना आवश्यक है, कि रूस–भारत संबंध पुतिन के नेतृत्व में नई ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं। मोदी का यह कहना, कि हर परिस्थिति में पुतिन की दूरदर्शिता ने इस रिश्ते को मजबूती दी। केवल राजनयिक प्रशंसा नहीं, बल्कि संबंधों की निरंतरता के प्रति आभार है। दुनिया बहुध्रुवीय युग की ओर बढ़ रही है। ऐसे समय में भारत–रूस की यह स्थिर साझेदारी ध्रुव तारे की तरह ही मार्गदर्शक है, अटल, स्थिर और विश्व व्यवस्था में संतुलन का प्रतीक। आने वाले वर्षों में यह संबंध केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता की दिशा में निर्णायक भूमिका निभाएंगे ऐसी उम्मीद है। ईएमएस / 05 दिसम्बर 25