अनुबंध पर नामांतरण करने वाले पूर्व अध्यक्ष, सीएमओ और इंजीनियर पर गिरी गाज; कलेक्टर ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला अवैध नामांतरण निरस्त, दोषियों से होगी 1.24 लाख की वसूली, ब्याज भी देना होगा, 5 सदस्यीय जांच टीम ने खोली भ्रष्टाचार की पोल गुना (ईएमएस)| नगरपालिका गुना में नियमों को ताक पर रखकर किए गए एक अवैध नामांतरण (हक अंतरण) मामले में कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट किशोर कुमार कन्याल की अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। कलेक्टर ने वर्ष 2016 में अनुबंध पत्र के आधार पर किए गए एक नामांतरण को न केवल निरस्त कर दिया है, बल्कि तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष, सीएमओ, सहायक यंत्री और राजस्व अधिकारियों को दोषी करार देते हुए उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही और वसूली के आदेश दिए हैं। क्या है पूरा मामला? यह मामला कस्तूरबा नगर वार्ड क्र. 20 स्थित सर्वे नंबर 353/1 के भूखंडों से जुड़ा है। अपीलार्थी उत्सव बिरथरे ने अधिवक्ता के माध्यम से कलेक्टर न्यायालय में अपील की थी कि नगरपालिका परिषद गुना ने 13 दिसंबर 2016 को मात्र एक अनुबंध पत्र के आधार पर महेंद्र कुमार जादौन के नाम नामांतरण कर दिया था। नियम यह है कि किसी भी संपत्ति का नामांतरण केवल रजिस्टर्ड सेल डीड (विक्रय पत्र) के आधार पर ही हो सकता है, लेकिन नपा के अधिकारियों ने साठगांठ कर नियमों की धज्जियां उड़ा दीं। जांच में फंसे ये दिग्गज अधिकारी और कर्मचारी कलेक्टर द्वारा गठित 5 सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि नोटशीट पर प्रक्रिया चलाने से लेकर अंतिम स्वीकृति देने तक सभी ने पद का दुरुपयोग किया। राजस्व को लगाई चपत, अब ब्याज सहित होगी वसूली जांच रिपोर्ट के अनुसार, 5 लाख रुपये मूल्य की संपत्ति पर 62,500 रुपये का मुद्रांक शुल्क बनता था, जिसे बचाने के लिए मात्र 100 रुपये के स्टांप पर खेल कर दिया गया। कलेक्टर ने अब दोषियों से 62,400 रुपये का अतिरिक्त मुद्रांक शुल्क और उतनी ही राशि 62,400 रुपये की शास्ति यानी कुल 1,24,800 रुपये वसूलने के आदेश दिए हैं। खास बात यह है कि यह राशि आदेश की दिनांक से वसूली तक ब्याज सहित देनी होगी। कलेक्टर के आदेश के मुख्य बिंदु: आदेश में 13.12.2016 को किया गया अवैध नामांतरण तत्काल प्रभाव से शून्य घोषित। वहीं वर्तमान सीएमओ को निर्देशित किया गया है कि वे दोषी अधिकारियों/कर्मचारियों पर नियमानुसार कठोर कार्यवाही करें। इसके अलावा यदि राशि जमा नहीं की जाती है, तो मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 के प्रावधानों के तहत कुर्की जैसी कार्यवाही कर वसूली की जाएगी। कोर्ट ने माना कि अनुबंध पत्र रजिस्टर्ड हो या नोटराइज्ड, उसके आधार पर हक अंतरण का कोई प्रावधान नगरपालिका अधिनियम 1961 में नहीं है। शहर में चर्चा सुर्खियों वाले कर्मचारी पर फिर गिरी गाज इस मामले में सबसे ज्यादा चर्चा उस विवादित कर्मचारी (राजस्व लिपिक) की है, जो पहले भी कई बार भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के चलते सुर्खियों में रह चुका है और निलंबित भी हुआ था। कलेक्टर की इस कड़ी कार्यवाही से नगरपालिका के गलियारों में हडक़ंप मच गया है, क्योंकि अब कई पुराने फाइलों के भी खुलने की संभावना बढ़ गई है। जांच में इन चेहरों को दोषी पाया - राजेन्द्र सिंह सलूजा, तत्कालीन अध्यक्ष (अंतिम स्वीकृति देने के लिए) - पी.एस. बुंदेला, तत्कालीन सीएमओ (प्रकरण स्वीकृत करने के लिए) - हरीश श्रीवास्तव, तत्कालीन सहायक यंत्री एवं प्रभारी राजस्व अधिकारी (हस्ताक्षरकर्ता) - राकेश भार्गव, तत्कालीन राजस्व लिपिक (विवादित कर्मचारी, जो पूर्व में भी निलंबित रह चुके हैं) - दिनेश नामदेव, सहायक राजस्व निरीक्षक - सीताराम नाटानी