नवाचार के माध्यम से दिव्यांगजनों का जीवन बदलने की दिशा में बड़ा कदम भोपाल (ईएमएस)। विकलांगजन व वृद्धजन की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एम्स भोपाल में अपना पहला असिस्टिव हेल्थ टेक्नोलॉजी (एएचटी) मेड-टेक हैकाथॉन 2025 आयोजित किया। यह आयोजन आईसीएमआर और एनसीएएचटी, एम्स नई दिल्ली के सहयोग से स्थापित इंटर-एम्स कोलैबोरेशन-कोलैबोरेटिंग सेंटर फॉर असिस्टिव हेल्थ टेक्नोलॉजी (सीसीएएचटी) के तहत किया गया। भारत में भी बड़ी संख्या में दिव्यांगजन और तेजी से बढ़ती वृद्ध आबादी किफायती एएचटी की मांग को बढ़ा रही है, परंतु आयातित उत्पादों की ऊंची लागत और सीमित स्थानीय उत्पादन इस आवश्यकता को पूरा नहीं कर पा रहे। उपलब्धता और वहनीयता के अंतर को कम करने के लिए सीसीएएचटी एम्स भोपाल ने 10 दिसंबर 2025 को पहला असिस्टिव टेक्नोलॉजी कॉफ़ी टेबल मेड-टेक हैकाथॉन आयोजित किया। इस हैकाथॉन में देशभर से आए प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत नवाचारों में से 12 परियोजनाओं का चयन किया गया, जिन पर अब डिजाइन, प्रोटोटाइप और परीक्षण के स्तर पर गहन कार्य होगा। ये प्रोजेक्ट विकलांगजनों की वास्तविक चुनौतियों जैसे चलने-फिरने, संवाद, सीखने, देखभाल और दैनिक गतिविधियों को आसान बनाने के लिए विकसित किए जा रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान यह संदेश भी स्पष्ट रूप से सामने आया कि विकलांगता (डिसएबिलिटी) और हैंडीकैप एक ही चीज नहीं हैं। विकलांगता व्यक्ति में मौजूद किसी कमी को दर्शाती है। जबकि हैंडीकैप वह बाधा है जो सामाजिक या पर्यावरणीय कारणों से उत्पन्न होती है। जब तक तकनीकी सहायता उपलब्ध नहीं होती, तब तक वही सीमाएं व्यक्ति की भागीदारी में रुकावट बन जाती हैं। एएचटी जैसे मोबिलिटी एड्स, प्रोस्थेटिक्स, ऑर्थोटिक्स, संचार उपकरण, संवेदी डिवाइस, डिजिटल हेल्थ सॉल्यूशन और एआई आधारित तकनीक इन बाधाओं को कम करके स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और समान अवसर सुनिश्चित करती हैं। एम्स भोपाल की यह पहल युवाओं, स्टार्टअप्स, शोधकर्ताओं और तकनीकी विशेषज्ञों को समाज उन्मुख नवाचारों के लिए प्रेरित करती है। कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने बताया कि दुनिया भर में 2.5 अरब से अधिक लोगों को किसी न किसी असिस्टिव प्रोडक्ट की आवश्यकता है, जबकि लगभग एक अरब लोग अब भी इन तकनीकों तक पहुंच से वंचित हैं। सुदामा नरवरे/13 दिसंबर 2025