बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट का मत जबलपुर, (ईएमएस)। उच्च न्यायालय के प्रशासनिक न्यायाधीश श्री विवेक रूसिया तथा न्यायाधीश श्री प्रदीप मित्तल की संयुक्तपीठ ने एक मामले में सुनवाई करते हुए अपनी टिप्पणी में कहा कि भारत जैसे इतने बड़े देश में, जहां कोई गुमशुदा व्यक्ति अपने माता-पिता या रिश्तेदार से संपर्क करने को तैयार नहीं है। वहां 140 करोड़ की आबादी में उसकी खोज करना बहुत मुश्किल है। न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में याचिका को बार-बार सूचीबद्ध करना और पुलिस से रिपोर्ट मंगवाने का कोई औचत्य नहीं है। इस मत के साथ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का यह निर्देश देते हुए अंतिम निराकरण कर दिया कि पुलिस गुमशुदा की खोजबीन जारी रखें। मामले में सुनवाई के दौरान बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाकर्ता सतना निवासी अजय शुक्ला की ओर से अधिवक्ता एचआर नायडू ने पक्ष रखते हुए दलील दी कि 5 जनवरी, 2025 को सुरेन्द्र तिवारी और हरिओम मिश्रा याचिकाकर्ता के नाबालिग पुत्र को मैहर ले गए थे। उसके बाद से वह घर नहीं लौटा।अगले दिन याचिकाकर्ता पिता ने नयागांव पुलिस थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। उच्च न्यायालय के निर्देश पर पुलिस ने इस मामले में चार बार रिपोर्ट पेश की। संयुक्तपीठ को बताया गया कि पुलिस ने गुमशुदा का पता लगाने के लिए पूरी कोशिश की है। गुमशुदा को ढूंढने वाले को पांच हजार रुपये का इनाम देने की भी घोषणा की गई। इसके अलावा प्रचार माध्यमों के जरिए भी खोजबीन की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। न्यायालय ने सुनवाई के बाद उक्त निदेश के साथ याचिका का निराकरण कर दिया। अजय पाठक / मोनिका / 13 दिसंबर 2025/ 01.57