15-Dec-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। आधुनिक युद्ध में हवाई शक्ति की भूमिका सर्वोपरि है। दुनिया भर के देश लंबी दूरी की मिसाइलें, ड्रोन और फाइटर जेट हासिल करने की होड़ में लगे हैं। भारत भी अपनी रक्षा क्षमता मजबूत करने में जुटा है। इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम और हाइपरसोनिक मिसाइलों के साथ-साथ पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट एएमसीए पर काम चल रहा है। इन प्रयासों में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) का तेजस लड़ाकू विमान कार्यक्रम महत्वपूर्ण है। पहले विशेषज्ञों की नजर में कम आंका जाने वाला यह प्रोजेक्ट अब भारतीय वायुसेना की रीढ़ बनता जा रहा है। अब तक इसके लिए कुल 220 विमानों के ऑर्डर दिए जा चुके हैं, जिनकी अनुमानित लागत करीब 1.19 लाख करोड़ रुपये है। भारतीय वायुसेना के पास स्वीकृत 42 स्क्वाड्रन की जगह वर्तमान में केवल 30-31 स्क्वाड्रन ही हैं। पाकिस्तान और चीन से लगी सीमाओं पर खतरा बना हुआ है, ऐसे में दो मोर्चों पर युद्ध की तैयारी जरूरी है। तेजस विभिन्न वैरिएंट में विकसित हो रहा है। इंजन आपूर्ति में देरी से चुनौतियां आईं, लेकिन अब उत्पादन गति पकड़ रहा है। तेजस एमके1ए में एईएसए रडार, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम, हवा में ईंधन भरने की सुविधा और स्वदेशी हिस्सों की बढ़ती हिस्सेदारी है। तेजस की यात्रा 2006 में 20 एमके1 विमानों के 2,813 करोड़ रुपये के ऑर्डर से शुरू हुई। 2010 में 20 एमके1 के लिए ऑर्डर मिला। 2021 में 83 एमके1ए के लिए 48,000 करोड़ रुपये का बड़ा सौदा हुआ। सितंबर 2025 में 97 और एमके1ए के लिए 62,370 करोड़ रुपये का अनुबंध हुआ। इससे कुल बेड़ा 220 विमानों का हो गया, जो करीब 11 स्क्वाड्रन के बराबर है। प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए नासिक में तीसरी लाइन शुरू की गई। इससे वार्षिक उत्पादन 16-24 विमानों तक पहुंच सकता है। इस कार्यक्रम से 500 से अधिक एमएसएमई और बड़ी कंपनियां जुड़ी हैं, जिससे निजी क्षेत्र को लाभ मिल रहा है। तेजस से पुराने मिग-21 स्क्वाड्रन को बदलने में मदद मिलेगी। आगे तेजस एमके2 और एएमसीए पर आधारित विकास होगा। निर्यात के अवसर भी खुल रहे हैं, खासकर दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में। तेजस आत्मनिर्भर भारत की मिसाल है। यह न केवल वायुसेना को मजबूत बनाएगा, बल्कि रक्षा उद्योग को नई ऊंचाई देगा। वीरेंद्र/ईएमएस 15 दिसंबर 2025