लोकसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर तथ्यों के साथ उनकी असफलताओं को एक के बाद एक करके गिनाया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण चुपचाप उनके आरोपों को सुनती रहीं। लोकसभा में दीपेंद्र हुड्डा ने जिस तरह से अर्थव्यवस्था को लेकर निर्मला सीतारमण के दावों की पोल खोली है उस दौरान सत्ता पक्ष के सदस्य भी शांत बैठकर सुनते रहे। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा- वित्त मंत्री ने कई रिकॉर्ड एक साथ बना लिए हैं। इसी के साथ ही उन्होंने एक-एक करके रिकॉर्ड भी गिना दिए, उन्हीं रिकॉर्ड में एक रिकॉर्ड यह भी उन्होंने बताया, कि पिछले सालों मे अमीर और गरीब के बीच जो फासला बढा है, यह अंतर पिछले 100 सालों में कभी देखने को नहीं मिला था। जो अंतर वर्तमान में देखने को मिल रहा है। अमीर और अमीर हो रहे हैं। गरीब और गरीब होता चला जा रहा है। लोकसभा में अनुदान मांग पर चर्चा के दौरान सांसद दीपेंद्र हुड्डा का भाषण केवल राजनीतिक आरोप के रूप में नहीं थे। उन्होंने एनडीए सरकार की 11 वर्षों की आर्थिक नीतियों का एक विस्तृत रिपोर्ट कार्ड पेश कर दिया। इसी रूप में कई आरोप वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और मोदी सरकार पर लगाए। उन्होंने तथ्यों, आंकड़ों और सरकारी रिपोर्टों के हवाले से सवाल उठाया कि जिस “रिकॉर्ड ग्रोथ” का ढोल पीटा जा रहा है, वह जमीनी हकीकत से ठीक विपरीत है। हुड्डा ने सबसे पहले सरकार द्वारा पेश विकास दर की विश्वसनीयता पर तथ्यों के साथ सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि आईएमएफ ने हाल ही में भारत के सरकारी आंकड़ों को ‘सी ग्रेड’ की श्रेणी में डाल दिया है, जिससे स्पष्ट है सरकार के विकास के आंकड़े वास्तविकता से परे हैं। ग्रोथ के आंकड़ों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संदेह जताया जा रहा है। उनका तर्क था कि सरकार राजस्व के ग्रोथ के आधार पर विकासदर दिखा रही है। जबकि वास्तविक तस्वीर एक्सपेंडिचर ग्रोथ से सामने आती है, जो वास्तविकता में कम है। हुड़्डा ने कहा, एनडीए के कार्यकाल में रुपया ऐतिहासिक रूप से पिछले 75 साल में सबसे निचले स्तर पर पहुंचा है। राजकोषीय घाटा 78 वर्षों के रिकॉर्ड स्तर पर गया है। अमीर–गरीब की खाई 100 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है। देश की 40 प्रतिशत संपत्ति केवल 1प्रतिशत अमीरों के हाथों में पहुंच गई है। जो सरकार के “सबका साथ, सबका विकास” की नीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है। हुड्डा ने कॉरपोरेट कर्ज माफी, सरकारी नीतियों में पूंजीपतियों का प्रभाव सरकार के दौहरे कानून और दोहरी नीति पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा पिछले 10 वर्षों में 16 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बेंकों के राइट-ऑफ किए गए हैं। जिसके लाभ का बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट सेक्टर के हिस्से मे गया है। एविएशन, टेलीकॉम, पोर्ट्स, एयरपोर्ट और मीडिया जैसे सेक्टर कुछ गिनी-चुनी कंपनियों के हाथों में सिमटते जा रहे हैं, जिससे उपभोक्ताओं के विकल्प खत्म हो रहे हैं। प्रतिस्पर्धा के स्थान पर कंपनियों का एकाधिकार बढ़ता चला जा रहा है। रोजगार के मोर्चे पर सरकार की विफलता का उल्लेख करते हुए कहा मैन्युफैक्चरिंग में लगातार रोजगार घट रहा है। कृषि क्षेत्र में लोगों को लौटना पड़ रहा है। लौटती वर्कफोर्स विकास नहीं, बल्कि विफलता का संकेत है। केंद्र और राज्यों का कुल कर्ज जीडीपी के 82 प्रतिशत तक पहुंचना भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत है। हुड्डा यही नहीं रुके वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को खेलने का उन्होंने कोई अवसर नहीं छोड़ा। डिफेंस, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और खेल जैसे अहम क्षेत्रों में बजट कटौती को लेकर उन्होंने सरकार को घेरा। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक विकास के लिए गंभीर खतरा करार दिया। कुल मिलाकर, दीपेंद्र हुड्डा का भाषण एनडीए की सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को लेकर जो दावे किए जा रहे हैं, एक-एक करके उन सभी दावों की पोल खोल कर रख दी। नोटबंदी से लेकर अभी तक जो भी निर्णय सरकार ने लिए हैं उसमें देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है। जिस तरह से कर्ज बढ़ता चला जा रहा है, उस पर उन्होंने गंभीर चिंता जताई। हुड्डा का कहना था कि देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार द्वारा जो दावे किए जा रहे हैं, वह आंकड़ों में हेरा-फेरी करके एक प्रचार माध्यम बनकर रह गया है। अनुदान मांगों पर चर्चा करते हुए पहली बार कांग्रेस की ओर से जिस तरह से हुड्डा ने सिलसिलेबार मोदी सरकार और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को तथ्यों के साथ घेरा है, उससे स्पष्ट होता है कि निश्चित रूप से विपक्ष में रहते हुए सरकार को किस तरह से घेरा जाता है, यह कांग्रेस समझ चुकी है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह रही, जब हुड्डा अर्थ व्यवस्था को लेकर सरकार के दावों की एक-एक करके पोल खोल रहे थे, पिछले 75 वर्षों में अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी सरकार ने जो नए नए असफलता के रिकॉर्ड बनाए हैं, उसे बता रहे थे उस समय सत्ता पक्ष चुपचाप हुड्डा को सुन रहा था। निर्मला सीतारमण भी गौर से दीपेंद्र हुड्डा की बात सुन रही थीं। अब देखना है, अनुदान मांगों की चर्चा के बाद सदन मे सरकार क्या जवाब देती है। सत्ता पक्ष ओर विपक्ष दोनों की उत्सुकता बढ़ गई है। ईएमएस / 15 दिसम्बर 25