सिडनी(ईएमएस)। रविवार को सिडनी के बॉन्डी बीच पर मानवता के दो विपरीत चेहरे देखने को मिले। एक तरफ नफरत की आग थी, तो दूसरी तरफ बेमिसाल इंसानियत का जज्बा। इस खौफनाक हमले के बाद दो नाम सामने आए नवीद अकरम और अहमद अल-अहमद। भले ही उनके नाम एक जैसे लग सकते हैं या उनकी जड़ें एक ही सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़ी हों, लेकिन रविवार की शाम ने यह साबित कर दिया कि इंसान की असली पहचान उसके नाम या धर्म से नहीं, बल्कि उसके कर्म और संस्कारों से होती है। एक शख्स हाथ में राइफल लेकर बेगुनाहों के खून का प्यासा बनकर आया था, तो दूसरा, निहत्था होकर भी, उसी मौत के सामने चट्टान बनकर खड़ा हो गया। रविवार शाम को ऑस्ट्रेलिया के बॉन्डी बीच पर यहूदी समुदाय हनुक्का त्योहार मना रहा था, खुशियां बांट रहा था। तभी 24 वर्षीय नवीद अकरम, हथियारों से लैस होकर वहाँ पहुँचा। उसका एकमात्र मकसद नफरत फैलाना और मासूमों की जान लेना था। उसने 12 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और वह हैवानियत का चेहरा बन गया। लेकिन ठीक उसी वक्त, वहाँ 43 वर्षीय अहमद अल-अहमद भी मौजूद थे। पेशे से फलों की दुकान चलाने वाले एक आम इंसान। गोलियां चलने के बावजूद, अहमद भागे नहीं। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना, हमलावर या पीड़ितों के धर्म की परवाह किए बिना, केवल इंसान और इंसानियत की रक्षा का फैसला किया। नवीद अकरम: शिक्षा प्राप्त हत्यारा रिपोर्ट्स के अनुसार, हमलावर नवीद अकरम पाकिस्तानी मूल का 24 वर्षीय युवक था। उसने प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की थी, उसके पास डिग्रियां थीं और जिंदगी जीने के कई अवसर थे। लेकिन उसके दिमाग में भरी नफरत ने उसे इस रास्ते पर धकेल दिया। उसने अपनी शिक्षा का उपयोग दुनिया को बेहतर बनाने के लिए नहीं, बल्कि उसे बर्बाद करने के लिए किया। उसने एक ऐसे त्योहार को चुना जो उम्मीद और रोशनी का प्रतीक है, और उसे खून से रंग दिया। नवीद अकरम उस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है जो मानती है कि अपने विचारों को थोपने के लिए किसी की जान लेना जायज है। वह एक क्रूर हत्यारा था, जो शिक्षा के बावजूद नैतिक रूप से जाहिल साबित हुआ। अहमद अल-अहमद: फलों की दुकान वाला असली नायक दूसरी तरफ, अहमद अल-अहमद हैं। वह कोई कमांडो नहीं, बल्कि एक साधारण पिता हैं और फलों की दुकान चलाते हैं। शायद उनकी शैक्षणिक योग्यता नवीद जितनी भारी न हो, लेकिन उनके संस्कार नवीद से कहीं ज्यादा ऊँचे साबित हुए। जब नवीद अकरम अपनी राइफल से आग उगल रहा था, तब सफेद शर्ट पहने अहमद ने जो किया, वह अद्वितीय साहस का प्रतीक है। वीडियो फुटेज में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि अहमद ने अपनी जान की बाजी लगाकर नवीद को पीछे से दबोचा, उसे जमीन पर पटक दिया और उसके हाथ से राइफल छीन ली। यदि अहमद उस निर्णायक पल में हिम्मत न दिखाते, तो शायद मरने वालों का आंकड़ा और भी भयावह होता। उन्होंने यह नहीं सोचा कि हमलावर हथियारबंद है। उन्होंने बस यह सोचा कि सामने खड़े लोग खतरे में हैं। वीरेंद्र/ईएमएस/15दिसंबर2025