राष्ट्रीय
15-Dec-2025
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पटेल हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे, कभी मस्जिद का विरोध नहीं किया नई दिल्ली,(ईएमएस)। आज सरदार वल्लभभाई पटेल की 75वीं पुण्यतिथि है। ‘लौह पुरुष’ के नाम से देश के पहले गृहमंत्री ने भारत की आजादी के बाद 562 रियासतों को एकजुट करके एक अखंड भारत के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई। सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। वे एक किसान परिवार से थे, लेकिन अपनी मेहनत से बैरिस्टर बने और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। आजादी के बाद वे भारत के पहले गृह मंत्री बने। 15 दिसंबर 1950 को हृदयाघात से उनका निधन हुआ। उनकी दूरदर्शिता, निर्णायक क्षमता और साम्प्रदायिक सद्भाव की भावना ने देश को मजबूत किया है, लेकिन आज जब हम उनको याद करते हैं, तो एक ऐसा विवाद सामने आता है जो दशकों तक भारत की राजनीति और समाज को प्रभावित करता रहा… बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद। 1949 में अयोध्या की बाबरी मस्जिद में राम और सीता की मूर्तियां रखे जाने की घटना पर पटेल की क्या राय थी? क्या उन्होंने इसका समर्थन किया या विरोध? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हाल में दिए बयान के बाद एक बार फिर उठ खड़े हुए हैं। उन्होंने कहा था, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी खजाने से पैसा खर्च करके बाबरी मस्जिद बनवाने की चर्चा छेड़ी थी तो उसका भी विरोध सरदार पटेल ने किया था। उस समय उन्होंने सरकारी पैसे से बाबरी मस्जिद नहीं बनने दी। सरदार पटेल ने हमेशा कहा कि भारत की एकता विभिन्नता में है, और किसी भी विवाद को बलपूर्वक नहीं सुलझाया जाना चाहिए। यही दृष्टिकोण अयोध्या विवाद में भी झलकता है। 22 दिसंबर 1949 की रात को कुछ लोग अयोध्या की बाबरी मस्जिद में घुसे और केंद्रीय गुंबद के नीचे राम और सीता की मूर्तियां रख दीं। स्थानीय प्रशासन ने मूर्तियां हटाने से इनकार कर दिया और जिला मजिस्ट्रेट केके नैयर ने इसे ‘दिव्य चमत्कार’ करार दिया। इस घटना ने पूरे देश में हलचल मचा दी। पीएम जवाहरलाल नेहरू इससे बेहद नाराज थे। नेहरू आर्काइव्स में संरक्षित पत्रों से पता चलता है कि नेहरू ने यूपी के तत्कालीन सीएम गोविंद बल्लभ पंत को कई पत्र लिखे. 26 दिसंबर 1949 को नेहरू ने तार भेजा- ‘अयोध्या की घटनाओं से मैं परेशान हूं। आशा है कि आप व्यक्तिगत रूप से इस मामले में दिलचस्पी लेंगे। वहां एक ख़तरनाक उदाहरण पेश हो रहा है जो बुरे नतीजे देगा। उन्होंने खुद अयोध्या जाने की पेशकश की, लेकिन पंत ने कहा कि समय सही नहीं है। नेहरू ने फिर उसी साल अप्रैल में पंत को एक और पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि यूपी का माहौल साम्प्रदायिक हो रहा है और कांग्रेस के सदस्य हिंदू महासभा जैसे बोल रहे हैं। नेहरू का रुख स्पष्ट था कि मूर्तियां हटाई जाएं, कानून का पालन हो। सरदार पटेल भी इस घटना से चिंतित थे, लेकिन उनका दृष्टिकोण नेहरू से थोड़ा अलग था, उन्होंने पंत को पत्र लिखा- प्रधानमंत्री ने आपको पहले ही एक तार भेजा है जिसमें उन्होंने अयोध्या की घटनाओं पर चिंता जताई है। मैंने भी लखनऊ में आपसे इस पर बात की थी। मुझे लगता है कि यह विवाद बेहद अनुचित समय पर उठाया गया है। उन्होंने आगे कहा कि बड़े साम्प्रदायिक मुद्दों को हाल में सहमति से सुलझाया गया है, मुसलमान नए परिवेश में स्थिर हो रहे हैं। पटेल ने जोर दिया- मेरा मानना है कि इस मुद्दे को आपसी सहनशीलता और सद्भाव की भावना में शांतिपूर्वक सुलझाया जाना चाहिए। मैं समझता हूं कि जो कदम उठाया गया है उसके पीछे गहरा भावनात्मक तत्व है, लेकिन उन्होंने साफ कहा कि ‘ऐसी बातें तभी शांतिपूर्वक हल हो सकती हैं जब हम मुस्लिम समुदाय की स्वेच्छा को अपने साथ लें। ज़बरदस्ती से ऐसे विवाद नहीं सुलझाए जा सकते। उस स्थिति में कानून और व्यवस्था की ताकतों को हर हाल में शांति बनाए रखनी पड़ेगी। कुछ स्रोतों में कहा जाता है कि पटेल मूर्तियां हटाने के पक्ष में थे, लेकिन उनके पत्र से स्पष्ट है कि वे बल प्रयोग के खिलाफ थे, क्योंकि इससे दंगे हो सकते थे। पटेल की व्यावहारिकता यहां दिखती है। वे जानते थे कि विभाजन के बाद साम्प्रदायिक तनाव उच्च स्तर पर था और कोई भी कदम स्थिति बिगाड़ सकता था। पटेल की सोच को समझने के लिए उनके समग्र विचारों को देखें। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। पटेल ने कभी मस्जिद का विरोध नहीं किया, बल्कि वे सद्भाव पर जोर देते थे। अयोध्या विवाद पर उनके विचार हमें सिखाते हैं कि भावनाओं का सम्मान करें, लेकिन सहमति के बिना कोई कदम न उठाएं। आज जब राम मंदिर बन चुका है, पटेल की विरासत हमें याद दिलाती है कि शांति ही स्थायी समाधान है। सिराज/ईएमएस 15दिसंबर25 ----------------------------------