राष्ट्रीय
16-Dec-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। भारतीय वायुसेना अपनी घटती स्क्वाड्रन क्षमता को मजबूती देने और भविष्य की जटिल सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने की तैयारी में है। इसी उद्देश्य से वायुसेना 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट की तलाश कर रही है। हालांकि इस दौड़ में कई अंतरराष्ट्रीय विमान निर्माता दावेदार हैं, लेकिन राफेल लड़ाकू विमान लगातार सबसे मजबूत दावेदार के रूप में उभर रहा है। राफेल की इस प्राथमिकता की वजह केवल उसकी अत्याधुनिक तकनीक नहीं है, बल्कि वह विश्वसनीयता और निरंतरता है जो यह प्लेटफॉर्म पहले ही भारतीय वायुसेना को प्रदान कर चुका है। राफेल जेट पहले से ही आईएएफ के बेड़े में सफलतापूर्वक ऑपरेशनल है। इसका मतलब है कि विमान के हथियार प्रणालियों, व्यापक मेंटेनेंस प्रक्रियाओं और पायलटों के प्रशिक्षण से जुड़ा पूरा इकोसिस्टम भारत में पहले ही स्थापित हो चुका है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, राफेल को वायुसेना के लिए सबसे लो-रिस्क विकल्प माना जाता है। किसी भी नए फाइटर जेट को बेड़े में शामिल करने में ऑपरेशनल और लॉजिस्टिक स्तर पर काफी अनिश्चितता और जोखिम होता है। एक विशेषज्ञ का मानना है कि राफेल के मामले में यह चुनौती पहले ही काफी हद तक हल हो चुकी है। मौजूदा समय में जब वायुसेना के सामने स्क्वाड्रन की कमी एक गंभीर चिंता बनी हुई है, राफेल तेजी से तैनाती और उच्च ऑपरेशनल रेडीनेस का एक सिद्ध समाधान प्रदान करता है। राफेल की दावेदारी को मजबूत करने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण कारक सरकार-से-सरकार (जी2जी) डील की संभावना है। पिछली खरीद के दौरान कीमत और अन्य शर्तों का एक बेंचमार्क पहले ही स्थापित हो चुका है। इससे नई बातचीत में लगने वाला समय और अनिश्चितता दोनों कम हो सकती हैं। वायुसेना को अपेक्षाकृत कम कॉन्ट्रैक्चुअल रिस्क के साथ तेजी से डिलीवरी मिलने की उम्मीद है, जो कि वर्तमान रक्षा जरूरतों के लिए बेहद अहम है। राफेल सौदा भारत में मेक-इन-इंडिया पहल को भी एक बड़ा बढ़ावा देता है। विमान के कुछ फ्यूजलाज सेक्शन के निर्माण की परियोजना पहले से ही भारत में चल रही है। यह महज सीमित ऑफसेट दायित्वों से आगे बढ़कर वास्तविक एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके अतिरिक्त, एक प्रमुख फ्रांसीसी एयरोस्पेस कंपनी हैदराबाद में एम88 इंजन के लिए मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल सुविधा स्थापित कर रही है। इससे भारत न सिर्फ अपने बेड़े को बल्कि क्षेत्रीय ऑपरेटर्स को भी लॉजिस्टिक सपोर्ट दे सकेगा, जिससे देश क्षेत्रीय रक्षा हब के रूप में उभरेगा। संकेत मिले हैं कि भारत राफेल के उन्नत एफ 4 वैरिएंट और भविष्य के एफ5 वैरिएंट पर भी विचार कर सकता है। बेहतर सेंसर, उन्नत नेटवर्किंग क्षमताओं और आधुनिक हथियारों से लैस ये संस्करण भारतीय वायुसेना को अगली पीढ़ी की युद्धक क्षमताओं के लिए तैयार कर सकते हैं। इसके अलावा, भारतीय नौसेना के लिए प्रस्तावित 26 राफेल-एम और वायुसेना के 114 राफेल का संयुक्त ऑर्डर इतना बड़ा हो सकता है कि देश में फुल-स्केल असेंबली लाइन की स्थापना आर्थिक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टियों से व्यवहार्य हो जाए। संक्षेप में, राफेल केवल एक लड़ाकू विमान नहीं है, बल्कि यह एक तैयार इकोसिस्टम, मजबूत रणनीतिक साझेदारी और औद्योगिक विकास का एक संपूर्ण पैकेज है। यही कारण है कि 114 राफेल भारतीय वायुसेना की पहली पसंद बनते दिख रहे हैं और देश का रक्षा कवच पहले से कहीं अधिक मजबूत होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। वीरेंद्र/ईएमएस 16 दिसंबर 2025