अंतर्राष्ट्रीय
23-Dec-2025
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टोक्यो (ईएमएस)। दशकों की रिसर्च, कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसी आधुनिक तकनीकों के बावजूद अब तक कैंसर का कोई फुल-प्रूफ इलाज सामने नहीं आ पाया है। हाल ही जापान से आई एक नई वैज्ञानिक खोज ने लोगों के भीतर उम्मीद की नई किरण जगा दी है। वैज्ञानिकों ने मेंढक और छिपकली की आंतों में पाए जाने वाले कुछ खास बैक्टीरिया की पहचान की है, जो आंत के कैंसर के इलाज में बेहद कारगर साबित हो सकते हैं। यह अहम शोध जापान एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (जेएआईएसटी) की रिसर्च टीम ने किया है। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने जापानी ट्री फ्रॉग, जापानी फायर-बेली न्यूट और जापानी घास छिपकली की आंतों में मौजूद माइक्रोबायोटा का गहराई से विश्लेषण किया। इस रिसर्च में कुल नौ ऐसे बैक्टीरियल स्ट्रेन सामने आए, जिनमें कैंसर-रोधी गुण पाए गए। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावी बैक्टीरिया के रूप में ईविंगेल्ला अमेरिकाना की पहचान हुई है। शोधकर्ताओं ने कोलोरेक्टल कैंसर यानी आंत और मलाशय के कैंसर पर इस बैक्टीरिया का परीक्षण चूहों पर किया। नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। अध्ययन के अनुसार, ईविंगेल्ला अमेरिकाना का सिर्फ एक बार नस के जरिए दिया गया इंजेक्शन ही ट्यूमर को पूरी तरह खत्म करने में सफल रहा। रिसर्च में 100 प्रतिशत ‘कम्प्लीट रिस्पॉन्स’ रेट दर्ज किया गया, जो मौजूदा कैंसर उपचार पद्धतियों जैसे कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी माना जा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस बैक्टीरिया की ताकत दो स्तरों पर काम करती है। पहला, यह सीधे कैंसर कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें नष्ट करता है। दूसरा, यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करता है, जिससे एपोप्टोसिस की प्रक्रिया शुरू होती है। एपोप्टोसिस शरीर की वह प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसके जरिए वह खुद ही खराब या कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को खत्म करता है। इस डुअल एक्शन की वजह से इलाज ज्यादा प्रभावी और तेज हो जाता है। इस खोज का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह बैक्टीरिया सिर्फ ट्यूमर वाले हिस्से में ही जमा होता है और शरीर के बाकी अंगों में नहीं फैलता। इससे इलाज ज्यादा टार्गेटेड बनता है और साइड इफेक्ट्स का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। शोध में यह भी सामने आया कि इलाज के 24 घंटे बाद यह बैक्टीरिया खून में नहीं पाया गया और 72 घंटे के भीतर शरीर की सूजन संबंधी प्रतिक्रियाएं सामान्य हो गईं, जिससे इसके सुरक्षित होने के संकेत मिलते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि आगे की रिसर्च में इस बैक्टीरिया को ब्रेस्ट कैंसर और पैंक्रियाटिक कैंसर जैसे अन्य गंभीर कैंसरों पर भी आजमाया जाएगा। साथ ही इसे शरीर में देने के और ज्यादा सुरक्षित व प्रभावी तरीकों पर भी काम किया जाएगा। सुदामा/ईएमएस 23 दिसंबर 2025