लेख
23-Dec-2025
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- सांप्रदायिक हिंसा बनी दोनों देशों के लिए चुनौती भारत और बांग्लादेश के संबंध 50 वर्ष तक के लंबे समय में आपसी विश्वास, सहयोग और साझा इतिहास की मजबूत बुनियाद पर टिके रहे। शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने भारत के साथ आतंकवाद विरोधी सहयोग, सीमा प्रबंधन और आर्थिक साझेदारी को प्राथमिकता दी। हाल के वर्षों में कुछ घटनाक्रमों और दोनों देशों के नीतिगत फैसलों मे भ्रष्टाचार को लेकर दोनों देशों के संबंधों में तनाव और दूरियों को पैदा किया है। जिसका असर दोनों देशों के सामाजिक एवं धार्मिक ताने-बाने पर भी दिखने लगा है। सबसे पहले राजनीतिक स्तर पर देखें, तो शेख हसीना सरकार पर यह आरोप लगा, कि उन्होंने चुनाव में धोखाधड़ी और आंतरिक राजनीति में कठोर रुख अपनाया। उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार बड़ी तेजी के साथ बढ़ा। आम जनता की असहमति की आवाज़ों को बर्बरता के साथ दबाया गया। इससे बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में असंतोष बढ़ा। जब किसी देश में आंतरिक अस्थिरता विद्रोह के रूप में बढ़ती है तो उसका सीधा असर उस देश के साथ ही साथ पड़ोसी देशों के रिश्तों पर भी पड़ने लगता है। बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ बगावत हुई, उन्हें अपना देश छोड़कर भागना पड़ा। भारत सरकार ने शेख हसीना को शरण दी। उसके बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंध बिगड़ना शुरू हो गए। धार्मिक आधार पर वैमन्नष्यता फैलाई गई और फिर गंदी राजनीति शुरू हो गई। जिसने दो देशों के वर्तमान संबंधों पर आग में घी डालने का काम किया। भारत के साथ कुछ मुद्दों— जैसे तीस्ता जल समझौता, सीमा पर गोलीबारी की घटनाएं और व्यापार असंतुलन को लेकर दूरियां बनना शुरू हो गई। अदानी के बिजली घर को लेकर भी भ्रष्टाचार और महंगी बिजली को लेकर बांग्लादेश में भारत के खिलाफ एक वातावरण बनना शुरू हुआ। जिससे दोनों देशों के नागरिकों और राजनेताओं के बीच में अविश्वास की भावना बढ़ती चली गई। जो अब दुश्मनी के रूप में देखने को मिल रही है। वर्तमान में जिस तरह की सांप्रदायिक हिंसा दोनों देशों में देखने को मिल रही है, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हमलों की खबरें सामने आ रही हैं। बांग्लादेश के हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़, हिंदुओं के घरों पर हमले और जबरन बांग्लादेश से हिंदुओं को भगाने की घटनाओं ने भारत में चिंता पैदा कर दी है। हद यह है कि बांग्लादेश मे हो रही घटनाओं की प्रतिक्रिया भारत में भी देखने को मिल रही है। सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर तीखी बयानबाज़ी के साथ बांग्लादेश विरोध देखने को मिल रहा है। भारत स्थित बांग्लादेशी दूतावास के समक्ष प्रदर्शन हो रहा है। उससे दोनों देशों के बीच में संबंध और भी बिगड़ते हुए दिख रहे हैं। इन तमाम घटनाओं को लेकर अब भारत में मुस्लिम समुदाय में डर, भय और असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। दोनों देशों में हिंदू और मुस्लिम वर्ग के बीच अविश्वास बढ़ा है। जो किसी भी सूरत में दोनों देशों के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका भी इस मामले में कम जिम्मेदार नहीं है। भ्रामक सूचनाओं और आधी-अधूरी खबरों तथा एक दूसरे के खिलाफ उत्तेजक बयानबाजी ने आग में घी डालने का काम किया है। सीमापार की घटनाओं को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है, जिससे सामाजिक एवं धार्मिक वेमनष्यता आम नागरिकों के बीच नफरत और भय फैलाने का कारण बन रहा है। बांग्लादेश और भारत के बीच का एक सच यह भी है। भारत और बांग्लादेश की जनता के बीच सांस्कृतिक, भाषाई और ऐतिहासिक रिश्ते बेहद गहरे हैं। शेख हसीना के कारण पैदा हुए तनाव को स्थायी मान लेना, दोनों देशों के लिए ठीक नहीं होगा। जरूरत इस बात की है, कि दोनों देश संयम के साथ संवाद और संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ें। बांग्लादेश को अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। वहीं भारत को भी प्रतिक्रिया में संतुलित और जिम्मेदारी भरा रुख अपनाना चाहिए। भारत–बांग्लादेश के बीच में जो संबंध बिगड़े हैं उसके पीछे शेख हसीना को भारत में शरण दिया जाना मुख्य कारण है। किसी एक नेता के कारण दोनों देशों की करोड़ों जनता को कष्ट में नहीं डाला जा सकता है। दोनों देशों को सांप्रदायिक सौहार्दृ और लोकतांत्रिक मूल्यों को प्राथमिकता देते हुए इस मामले का तुरंत निपटारा करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। वर्तमान तनाव को किस तरह एक बेहतर अवसर के रूप में बदला जा सकता है, जिसके कारण भारतीय उप महाद्वीप में शांति व स्थिरता का मार्ग प्रशस्त हो। भारत सरकार को बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति और शेख हसीना को लेकर अपनी स्थिति को स्पष्ट करना होगा। बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए शेख हसीना को भारत के स्थान पर अन्य किसी राष्ट्र में शरण लेनी चाहिए। ताकि भारत और बांग्लादेश में शांति स्थापित हो सके। दोनों देशों के बीच में जो रिश्ते थे, वह कायम रह सकें। यही वर्तमान समय की मांग है। भारत सरकार की बड़ी जिम्मेदारी है। वह इस मामले में गंभीरता के साथ विचार करते हुए किस तरह से दूरगामी रिश्ते बेहतर किये जा सकते हैं। इसके लिए कोई बीच का रास्ता समझौते के तौर पर निकालना होगा। इसकी पहल भारत को ही करनी होगी। ईएमएस / 23 दिसम्बर 25