लेख
26-Dec-2025
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धन की तीन गति हैं. दान, भोग और नाश, तन से भी तीन दान यथा नेत्र दान अंग दान और देहदान किया जा सकता है अन्यथा इसका भी नाश होना तय है। जन्म और मृत्यु अटल सत्य है। आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर। साधु संत अपना पूरा जीवन अंतिम सफर आसान हो, इसकी तैयारी में लगा देते हैं। बकौल नीरज:- जितना कम सामान रहेगा सफर उतना आसान रहेगा, जितनी भारी गठरी होगी, उतना तू हैरान रहेगा। हैरानी की बात तो यह है कि कम संतानोपत्ति तथा उच्च शिक्षा पश्चात्त संतानों का विदेश गमन होने के कारण स्वदेश में बुजुर्ग माँ बाप, अकेले अपने अंतिम सफर की तैयारी करते रहते हैं, इस ऊहा-पोह के बीच कि बेटा मुखाग्नि देने आ पायेगा कि नहीं। कहीं ऐसा भी हुआ कि आने में कई दिन लग गये, अवकाश नहीं मिला. आ ही नहीं पाये। यह भी हुआ कि पुत्र आपस में सलाह कर यह निश्चित कर लेते हैं कि पिता जी के क्रिया कर्म में बड़ा भाई जाये और माँ के निधन के समय छोटा चला जायेगा। आपसी क्लेश में सौगंध पूर्वक कहा गया कि मेरी मिट्टी को हाथ मत लगाना, देहदान में यह सौगंध आसानी से पूरी हो जाती है। देहदान सर्वोत्तम दान, मरने के बाद न कोई झंझट न खींच तान। न किसी रिश्तेदार को खबर करना न किसी दूर के रिश्तेदार की रास्ता देखना, शव यात्रा में चार आदमी न जुड़े, इस कानाफूसी से भी मुक्ति। आप अपनी सुविधा अनुसार शव मेडिकल कॉलेज को सौंप दें, शवयात्रा, शवदाह आदि से मुक्ति। फूल विसर्जित करने गंगाजी जाने तथा तेरहवीं में सामाजिक भोज और तेरह ब्राहम्णो के महाभोज और दक्षिणा आदि की अनिवार्यता नहीं। फूफा नाराज हो जायेगा इसका भी डर नहीं। देहदान मतलब, प्रपंच-पाखंड से मुक्ति। न काहू से दोस्ती न काहू से वैर, निकला डोला घर से, अंतिम करने सैर। ध्यान रहे अनेक संत महात्मा, यथा दधीचि, कर्ण, शिवि आदि ने अपने शरीर से मॉस और हड्डियों तक निकाल कर दे दीं। अंतिम संस्कार, देहदान के पवित्र संकल्प के माध्यम से शिक्षा संस्कार से जुड़े, यह सामाजिक चेतना का प्रतीक होगा। मेडिकल में एनाटामी, शरीर रचना, अध्ययन के अंतर्गत स्थूल और सूक्ष्म शरीर रखना और उसके अनेक उपभाग है। मानव शरीर एक जटिल संरचना है। मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी साथ ही शरीर की सभी तंत्रिकाएं मुख्य भाग हैं। मेडिकल में पढ़ाई के लिये मृत मानव देह की भारी कमी है। जागरूक लोग देह दान करना चाहते हैं, पर इसकी प्रक्रिया के अभाव में लोग किनारा कर लेते हैं। देहदान समय की मांग है। शवदाह में लकड़ी का भारी मात्रा में प्रयोग हो रहा, जिससे जंगल तो उजड़ ही रहे, हमारा पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा। जंगली जीव-जंतुओं के प्राकृतिक आवास उजड़ने से प्रकृति चक्र प्रभावित हो रहा। ऋतु चक्र अनिश्वित हो रहा। जंगली जानवर शहर की ओर भाग रहा है। मित्रों देहदान में आज परिवार को गौरव की अनुभूति हो रही है, समाज में देहदान करने वाले की चर्चा होती है। देहदान करने वाले को शासन की ओर से राजकीय सम्मान दिया जा रहा है। समय रहते देहदान में रुचि नहीं ली तो वो दिन दूर नहीं जब हमें विदेशों से शव आयात करना पड़े। अंत में यही कहूँगा, देहदान से प्राप्त करें सम्मान, रूढ़िवादी परम्पराओं से बचे श्रीमान। ईएमएस, 26 दिसम्बर, 2025