लेख
08-Feb-2023
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9 राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए एक बार फिर मंडल और कमंडल की राजनीति अपने चरम पर पहुंच रही हैं। हाल ही में एक खबर आई है कि रामलला की सेवा में दलित पुजारी और रसोइयों को नियुक्त किया जाएगा। विश्व हिंदू परिषद और भाजपा ने मंदिर निर्माण के साथ ही एक बड़ा दलित कार्ड खेलने की तैयारी कर रही है। अयोध्या के रामलला मंदिर में दलित पुजारी और रसोइयों की नियुक्ति बड़े पैमाने पर करने ‎विचार हो रहा है। इसका राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार भी किया जाएगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक बयान दिया था। उसके बाद भाजपा और विश्व ‎हिन्दू प‎रिषद दलितों को अपनी और आकर्षित करने के लिए भगवान राम का ही सहारा लेकर द‎तियों को जोड़ने के ‎लिये योजना बना रही है। विश्व हिंदू परिषद और रामजन्म तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने एक समाचार पत्र से बातचीत करते हुए कहा कि अभी इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। भविष्य में क्या होगा, पता नहीं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पहले जाति व्यवस्था को पंडितों द्वारा बनाई गई व्यवस्था बताया। बाद में उन्होंने स्पष्टीकरण भी दिया। मोहन भागवत के बयान से पंडित वर्ग नाराज होता हुआ दिखा। वहीं रामचरितमानस की एक चौपाई ढोल-गंवार-शुद्र-पशु-नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी पर पिछले कई महीनों से बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तथा उसके बाद अन्य राज्यों में दलित और जातीय राजनीति को लेकर बड़ा बवाल मचा हुआ है। 2024 के लोकसभा चुनाव के ‎लिये भारतीय जनता पार्टी धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर एजेंडा तय करेगी। वहीं जदयू, सपा, बसपा एवं अन्य क्षेत्रीय दल दलितों को हिंदुओं से अलग बताने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। द‎लित, ‎पिछड़े और अल्पसंख्यकों को एकजुट करके क्षेत्रीय दलों ने मंडल राजनी‎ति को हवा दे दी है। दलित और पिछड़े नेता अब आक्रमक होकर सामने आ रहे हैं। भाजपा नेताओं को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं कि वह रामचरित्र मानस की इस चौपाई को विधानसभा और लोकसभा में पढ़कर सुनाएं। निश्चित रूप से भारत में धार्मिक और जातीय राजनीति चुनाव के पूर्व अब अपने चरम पर पहुंच गई है। एक बार फिर 1989 जैसी स्थितियां देश में बन रही हैं। मंडल और कमंडल के कारण कांग्रेस कमजोर हुई थी। कांग्रेस कई राज्यों की सत्ता से बाहर हो गई थी। क्षेत्रीय दलों का बड़ी तेजी के साथ उदय हुआ था। इसमें जाति समीकरण बहुत बड़ा कारण था। बिहार उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जातीय समीकरण के कारण बड़ी तेजी के साथ उस समय राजनीतिक समीकरण बदले थे। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लगभग 9 साल पूरे होने जा रहे हैं। गुजरात जैसे राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता 25 साल से ऊपर की हो चुकी है। अन्य कई हिंदीभाषी राज्यों में भी 15 से 20 साल पुरानी भाजपा की सरकारें सत्ता में हैं। उत्तर प्रदेश बिहार इत्यादि राज्य में सपा, बसपा, जदयू, राजद और अन्य जाति आधारित राजनीतिक दल सत्ता में पहुंच चुके हैं। ऐसी स्थिति में अब भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हिंदू वोट बैंक को बचाना है। दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का पिछले 10 सालों में समर्थन भाजपा को बहुतायत में ‎हिन्दुत्व के कारण मिल रहा था। अब उसकी काट करने के लिए हिंदुओं को राम और रामच‎रित मानस की चौपाई को आधार बना कर बांटने की एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर पुरजोर कोशिश शुरू हो गई है। रामलला के मंदिर में राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए, दलित पुजारी और रसोईया रखे गए, तो निश्चित रूप से ब्राह्मणों सहित उच्च जातियों में इसका विरोध होगा। उन्हें संभालना भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत मुश्किल होगा। जिस तरह की राजनैतिक स्थितियां बन रही है। उसमें बांटो और राज करो की जो नीतियां अंग्रेजों ने शुरू की थी। अब वह जाति आधारित और छोटी-छोटी जाति के समूह में बंटते हुए दिख रही हैं। इससे राष्ट्रीय हितों को बड़ा नुकसान होना तय है। पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से धार्मिक एवं जाति समीकरण को लेकर भारतीय नाग‎रिकों का बिखराव हो रहा है। वह देश की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित करेगा। हिंदू धर्म की विभिन्न शाखाओं को भी आपस में बांटने का जो काम हो रहा है। यह स्थिति देश एवं सामा‎जिक व्यवस्था के सद्भाव को लेकर सबसे चिंताजनक है। एसजे/ 8 फरवरी 2023