लेख
19-Mar-2023
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केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने शनिवार को कहा है, कि कुछ रिटायर्ड जज और कार्यकर्ता भारत विरोधी गैंग का हिस्सा हो गए हैं। कानून मंत्री ने यह भी कहा कि न्यायपालिका को विपक्षी दल की भूमिका निभाने के लिए मजबूर करते नजर आ रहे हैं। एक बार फिर कानून मंत्री रिजीजू ने कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करते हुए कहा, इसे बदलने की जरूरत है। कानून मंत्री दिल्ली के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा। इसी कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल हुए। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी बात रखते हुए कहा, कि न्यायपालिका पर कोई दबाव नहीं होता है। उन्होंने कहा, मुझे आज तक किसी ने नहीं कहा कि केस में फैसला कैसे किया जाए। उन्होंने अपने उदृबोधन में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर लिया फैसला, इसका एक सबूत बताया। उन्होंने भारतीय न्यायपालिका को आधुनिक बनाने की जरूरत बताते हुए कहा कि हमारा न्यायिक मॉडल अंग्रेजों के विरासत में मिले औपनिवेशिक मॉडल पर आधारित है। इसमें बड़े सुधार की जरूरत है। कानून मंत्री जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तथा कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सार्वजनिक बयान दे रहे है। सरकार से जुड़ा हुआ राजनीतिक दल के ट्रोलर जिस तरह से न्यायपालिका के खिलाफ एक अभियान चला रहे है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की व्यक्तिगत छवि और उनके न्यायिक फैसलों को जिस तरीके से ट्रोल किया जा रहा है। न्यायपालिका के साथ सरकार सीधे-सीधे टकराव की मुद्रा में समय-समय पर देखने में आ रही है। यहां तक तो ठीक था लेकिन अब रिटायर्ड जजों को भी कानून मंत्री ने निशाने पर लेकर, उन्हें भारत विरोधी गैंग का हिस्सा बता दिया है। कानून मंत्री के इस बयान की आम जनता के बीच में भी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। सरकार कॉलेजियम व्यवस्था के स्थान पर हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के जजों की नियुक्ति पर सरकार का सीधा अधिकार या हस्तक्षेप चाहती है। यदि ऐसा हुआ, तो भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर आम आदमी के मन में जो विश्वास बचा हुआ है। वह भी खत्म हो जाएगा। जिस तरह से न्यायिक अधिकार, राज्य सरकारों विभिन्न आयोग, कलेक्टर, कमिश्नर, तहसीलदार एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को दिए जाते हैं। उनके काम करने के तौर-तरीके और निर्णय पर आम जनता को कोई भरोसा नहीं होता है। क्योंकि उसमें सरकार का हस्तक्षेप अपरोझ रूप से बना रहता है। हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट से उन्हें न्याय मिलेगा समाज में जिस तरह का बदलाव होता है। सभी वर्गों के बीच उस बदलाव का असर पड़ता है, यह बात सही है। लेकिन न्यायपालिका को लेकर कॉलेजियम सिस्टम आने के बाद न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता बनी हुई है। यदि यह पारदर्शिता समाप्त हो गई, तो भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा उत्पन्न होगा। वर्तमान में सरकार के कुछ ऐसे बयान भी सामने आए हैं। विशेष रूप से कानूनविद एवं राज्यसभा के सभापति ने विधायिका को सर्वोच्च बताते हुए संविधान को एक मार्गदर्शक बता दिया है। संविधान में कभी भी सरकार को परिवर्तन करने के अधिकार को उन्होंने सर्वोच्च मानते हुए न्यायिक समीक्षा से बाहर करने की कोशिश की है। यह अपने आप में प्रमाणित करता है, कि वर्तमान सरकार संविधान में वर्णित न्यायपालिका की स्वतंत्र भूमिका को अपने अधीन करना चाहती है। जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं में पिछले वर्षों में सरकार नियुक्तियां की हैं। हाल ही में चुनाव आयुक्त की जिस तरह की नियुक्ति सरकार ने की है। यह मामला जब सामने आया तो सभी को आश्चर्य हुआ। यदि यही स्थिति हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के जजों में भी सरकार की मनमर्जी होगी। उसके बाद संवैधानिक संस्थाओं और न्यायपालिका के ऊपर आम जनता का विश्वास खत्म होगा। यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को तो समाप्त करेगा। सरकारी तंत्र की मनमानी बढ़ने और आम जनता का आक्रोशित होना तय है। इस सारे विवाद में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने धीरज के साथ सरकार के सामने अपनी बात रखते रहे हैं। कानून मंत्री की किसी भी टिप्पणी पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। फैसले में भी वह अपने ऊपर कोई दबाव नहीं आने दे रहे हैं। जिससे जनता के मन में उनके प्रति आदर एवं विश्वास बढ़ा है। ईएमएस / 19 मार्च 23