लेख
26-May-2023
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जो व्यक्ति की जितनी अधिक आलोचना होती हैं उसे मतलब उसके गुणों में वृद्धि हुई हैं ऐसा कहा भी जाता हैं की नींव के पत्थर मीनार नहीं देखते पर उन्होंने जो नींव रखी उनके कारण भारत विश्व प्रसिद्ध हुआ.उन जैसा शिक्षित व्यक्ति जिन्होंने उच्च शिक्षा लेने के बाद अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया था.वर्तमान में जो भी शासक हैं वो अपने इतिहास पर नज़र डाले और चिंतन और मनन करे की उनका क्या योगदान देश के निर्माण में हैं। निर्माण के बाद ही विकास का क्रम शुरू होता हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 इलाहाबाद में हुआ था। उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था, जो एक धनाढ्य परिवार के थे और माता का नाम स्वरूपरानी था। पिता पेशे से वकील थे। जवाहरलाल नेहरू उनके इकलौते पुत्र थे और 3 पुत्रियां थीं। नेहरू जी को बच्चों से बड़ा स्नेह और लगाव था और वे बच्चों को देश का भावी निर्माता मानते थे। जवाहरलाल नेहरू को दुनिया के बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन से पूरी की थी। उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। हैरो और कैम्ब्रिज में पढ़ाई कर 1912 में नेहरूजी ने बार-एट-लॉ की उपाधि ग्रहण की और वे बार में बुलाए गए। पंडित नेहरू शुरू से ही गांधीजी से प्रभावित रहे और १९१२ में कांग्रेस से जुड़े। १९२० के प्रतापगढ़ के पहले किसान मोर्चे को संगठित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। १९२८ में लखनऊ में साइमन कमीशन के विरोध में नेहरू घायल हुए और १९३० के नमक आंदोलन में गिरफ्तार हुए। उन्होंने ६ माह जेल काटी। १९३५ में अलमोड़ा जेल में ‘आत्मकथा’ लिखी। उन्होंने कुल ९ बार जेल यात्राएं कीं। उन्होंने विश्वभ्रमण किया और अंतरराष्ट्रीय नायक के रूप में पहचाने गए। उन्होंने ६ बार कांग्रेस अध्यक्ष के पद (लाहौर १९२९, लखनऊ १९३६, फैजपुर १९३७, दिल्ली १९५१, हैदराबाद १९५३ और कल्याणी १९५४ ) को सुशोभित किया। १९४२ के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में नेहरूजी ९ अगस्त १९४२ को बंबई में गिरफ्तार हुए और अहमदनगर जेल में रहे, जहां से १५ जून 1945 को रिहा किए गए। नेहरू ने पंचशील का सिद्धांत प्रतिपादित किया और १९५४ में ‘भारतरत्न’ से अलंकृत हुए नेहरूजी ने तटस्थ राष्ट्रों को संगठित किया और उनका नेतृत्व किया। सन् १९४७ में भारत को आजादी मिलने पर जब भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार वल्लभभाई पटेल और आचार्य कृपलानी को सर्वाधिक मत मिले थे। किंतु महात्मा गांधी के कहने पर दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू १९४७ में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। आजादी के पहले गठित अंतरिम सरकार में और आजादी के बाद १९४७ में भारत के प्रधानमंत्री बने और २७ मई १९६४ को उनके निधन तक इस पद पर बने रहे। नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं कर पाए। उन्होंने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढ़ाया, लेकिन १९६२ में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। चीन का आक्रमण जवाहरलाल नेहरू के लिए एक बड़ा झटका था और शायद इसी वजह से उनकी मौत भी हुई। जवाहरलाल नेहरू को २७ मई १९६४ को दिल का दौरा पडा़ जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। स्वाधीनता और स्वाधीनता की लड़ाई को चलाने के लिए की जाने वाली कार्रवाई का खास प्रस्ताव तो करीब-करीब एकमत से पास हो गया। …खास प्रस्ताव इत्तफाक से ३१ दिसंबर की आधी रात के घंटे की चोट के साथ, जबकि पिछला साल गुजरकर उसकी जगह नया साल आ रहा था, मंजूर हुआ।’ -लाहौर अधिवेशन में स्वतंत्रता प्रस्ताव पारित होने के बारे में नेहरू की ‘मेरी कहानी’ से। पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करना, राष्ट्र और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को स्थायी भाव प्रदान करना और योजनाओं के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू करना उनके मुख्य उद्देश्य रहे। वो अजीबोगरीब शान का एक सितारा था वो सूर्य और चन्द्रमा जैसा रहा क्या उनमे ग्रहण नहीं लगता वो भी कितने समय का ? उसके बाद सदा देते हैं प्रकाश दिन और रात में जो जितना कर गए वो क्या कम हैं जो अभी हो रहा हैं वो क्या कम हैं मत उछालो पत्थर इतिहास पर वर्तमान को बढ़ाओ अपने हिसाब से। ईएमएस / 26 मई 23