राज्य
09-Jun-2023
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सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है बुंदेली साहित्य जबलपुर (ईएमएस)। बुन्देली बोली ने समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जन बोली के कारण बुन्देली साहित्य में सांस्कृतिक वैभव समाहित है। इस बोली में बुन्देलखण्ड की धड़कने समाहित हैं। तदाशय के उद्गार अ.भा.बुन्देली संस्कृति परिषद द्वारा आयोजित बुन्देली संगोष्ठी में अतिथियों ने व्यक्त किये। समारोह के अध्यक्ष महाकवि आचार्य भगवत दुबे थे। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र मिश्रा एवं मंगलभाव व्यक्त कर रहे राजेश पाठक प्रवीण ने बुन्देली के महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ.सलमा जमाल की सरस्वती वंदना से जानकीरमण महाविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में बुन्देली परिषद की अध्यक्ष प्रभा विश्वकर्मा शील ने कहा कि तीज-त्यौहार एवं रीति-रिवाज के महत्व को स्थापित करती बुन्देली बोली आत्मीयता का प्रतीक है। इस अवसर पर राज सागरी, विजय जायसवाल को सम्मानित किया गया। द्वितीय सोपान में ऑनलाइन संगोष्ठी हुई जिसमें मनोज शुक्ल,राजेन्द्र जैन रतन,सुभाष शलभ, प्रतुल श्रीवास्तव, डॉ.सलपनाथ यादव,निर्मला तिवारी,यशोवर्धन पाठक,सुशील श्रीवास्तव,विनीता विधि,इन्द्रबहादुर श्रीवास्तव,अभय तिवारी,कुंजीलाल चक्रवर्ती, जयप्रकाश श्रीवास्तव,रत्ना ओझा,आरती पटेल,कृष्णकुमार निर्झर,तरूणा खरे, कल्याणदास साहू, रामवल्लभ गुप्ता, डॉ.शरद नारायण खरे,कालीदास ताम्रकार,डॉ.आशा श्रीवास्तव,नितिन शर्मा,कृष्णा राजपूत ने बुन्देली काव्य रस वर्षा की। संचालन आशुतोष तिवारी एवं ज्योत्स्ना शर्मा ने किया। संतोष नेमा संतोष ने आभार व्यक्त किया। सुनील // मोनिका // ०९ जून २०२३ // १.१०